scriptशिल्पग्राम में बन रही दुनिया की सबसे बड़ी सांझी | Sanjhi In udaipur, Shilpgram Sanjhi | Patrika News

शिल्पग्राम में बन रही दुनिया की सबसे बड़ी सांझी

locationउदयपुरPublished: Sep 14, 2019 12:38:18 pm

Submitted by:

Pramod

shilpशिल्पग्राम में बन रही दुनिया की सबसे बड़ी सांझी

शिल्पग्राम में बन रही दुनिया की सबसे बड़ी सांझी

शिल्पग्राम में बन रही दुनिया की सबसे बड़ी सांझी

प्र्र्रमाेद साेनी/ उदयपुर. (Shardh paksh)श्राद्ध पक्ष शुरू होने के साथ ही शुक्रवार से घरों के बाहर दरवाजे और दीवारों पर (sanjhi)सांझी बनना शुरू हो गई है। हालांकि यह परम्परा काफी हद तक लुफ्त हो गई है। सोलह दिनों तक गली-मोहल्लों में गूंजने वाले संझा के गीत और आरती अब कहीं-कहीं ही सुनने को मिलते हैं। इस लोक परम्परा एवं कला को पुनर्जीवित करने के लिए शिल्पग्राम के मुक्ताकांशी रंगमंच पर शुक्रवार से सांझी का बनाने का कार्य शुरू हुआ। सुखाडि़या विश्वविद्यालय के दृश्य कला विभाग की असिस्टेंट प्रो. दीपिका माली ने बताया कि यह विश्व की सबसे बड़ी सांझी होगी। यह स्टेज की दीवार पर बनाई जा रही है। उन्होंने बताया कि २५ गुणा २५ फीट की यह सांझी १५ सितम्बर तक तैयार होगी जिसमें सोलह दिनों में बनाए जाने वाले विविध रूपों को बनाया जाएगा। सांझी पर्व राजस्‍थान के मेवाड़, मध्यप्रदेश के मालवा व निमाड़, गुजरात, ब्रजप्रदेश तथा अन्‍य कई क्ष्‍ोत्रों में कुंवारी कन्याओं की ओर से मनाया जाता है। यह भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन मास की अमावस्या तक मनाया जाता है।यह पितरों को प्रसन्न करने व उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए बनाई जाती है। दीवार पर गोबर से विभिन्‍न प्रकार की आकृतियां बनाती हैं जिन्‍हें फूल-पत्तों, मालीपन्‍ना, सिन्‍दूर आदि से सजाया जाता है और संध्या के समय इसका पूजन किया जाता है। बाद में घर-घर जाकर संझा के गीत गाती हैं एवं प्रसाद वितरण करती हैं। भाद्रपक्ष पूर्णिमा का पाटला मांडकर संझा की शुरुआत की जाती है। एकम (प्रतिपदा) को केल, दुज को बिजोला, तीज को तराजू, चौथ को चौपड़, पांचम को पांच कुंआरे, छठ को फूल छाबड़ी, सप्तमी को स्‍वस्तिक, आठम (अष्टमी) को आठ पंखुडिय़ों का फूल, नवमी को डोकरा- डोकरी (वृद्ध दम्‍पती), दशमी को पंखा और ग्‍यारस को किलाकोट बनाया जाता है। यह किलाकोट अमावस्‍या तक नित नए ढंग से नई साज-सज्‍जा से बनाया जाता है। इस किलाकोट में सोलह दिन की आकृतियां बनाई जाती है। कुछ जगह अंतिम पांच दिनों में हाथी-घोड़े, किला-कोट, गाड़ी आदि की आकृतियां बनाई जाती हैं। सोलह दिन के पर्व के अंत में अमावस्या को संझा को विदा किया जाएगा।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो