बैनर्जी के साथ काम कर चुके सराड़ा के युवाओं ने बताया कि वे सरल, व्यावहारिक, मृदुभाषी हैंं और उनके साथ काम करने का अलग ही अंदाज था। उनके साथ काम करने के लिए हमेशा हर युवा तैयार रहता था। उनके चेहरे पर कभी काम को लेकर थकावट की लकीर दूर-दूर तक नजर नहीं आती थी। यह कहना है सराड़़ा़ के एक ऐसे युवा का जिसने कई प्रोजेक्ट में बैैनर्जी के साथ काम किया। सराड़़ा़ निवासी चंपालाल लोहार ने बताया कि नोबेल विजेता के साथ काम करने का अनुभव हमें आज भी उनकी याद दिलाता है । उनके बताए हुए मार्ग ,उनके काम करने का तरीका आज भी हम अपना रहे हैं।
चंपालाल लौहार ने बताया कि बैैनर्जी कभी भी अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटते दिखे, हर परिस्थिति में काम करने की लगन बिना किसी तरह भेदभाव किए वह करते नजर आए। वेे व्यावहारिक शोध को अमल मेंं लाने के लिये भारत को सबसे उपयुक्त देश मानते हैंं जिसमेंं विद्याभवन एवं सेवा मंदिर के साथ उदयपुर जिले के सुदूूरवर्ती स्थानोंं पर स्वास्थय एवं शिक्षा , टीकाकरण पर जोर देने की योजना और परियोजना की लागत भी कम हो गई। साथ ही अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र जिसमेंं बच्चों का ठहराव प्रतिशत बढ़़ा़या । साथ ही शिक्षकों के स्कूूलोंं मे ठहराव का भी प्रतिशत बढ़़ाया। शिक्षा के मूूलभूूत ढांचे मेंं बदलाव कर शिक्षा का स्तर बढ़़ा़या। साथ ही स्वास्थ्य केन्द्रोंं पर स्वास्थ्य कार्यकर्ता को सब सेन्टर पर ज्यादा से ज्यादा ठहराव करने के लिए प्रेेरित किया ताकि वहांं के जन समुदाय ज्यादा से ज्यादा लाभान्वित हो सके ओर बीमारियों का स्तर कम हो सके।
यह सभी अपनी तरह की अनूठी शोध परियोजनाएंं थी । विद्या भवन , एमआईटी समन्वयक जिला परियोजना सूत्रधार प्रमोद तिवारी , चंपालाल लोहार सराडा, अरविंद ,धर्मेंद्र ,दिनेश , महेश ,दीपक व अन्य सदस्य टीम मेंं थे। इन सभी योजनाओं का क्रियान्वयन मेंं महत्वपूर्ण भूूमिका अदा की थी जिन्होंने उदयपुर जिले के खेरवाड़ा, कोटडा ,बडग़ांव ,गिर्वा, झाडोल फलासिया के पंचायत समितियों में कार्य किया । इन सभी योजनाओं को तकरीबन 60 से 70 दलीय सदस्यों के साथ मिलकर 2002 से 2009 तक भिन्न भिन्न चरणों मेंं इन सभी शोध परियोजनाओंं को सम्पादित किया।