छोटे राजनीतिक दल व फैक्ट्री यूनियन के झगड़ों की वजह से शहर की बड़ी इसुजु फैक्ट्री 14 जनवरी 2013 को बंद हो गई। इसमें 500 श्रमिक नियमित रूप से काम कर रहे थे। इसके अलावा रीको में लगी 48 फैक्ट्रियां नियमित मजदूर नहीं मिलने तथा कच्चा-माल के चक्कर में बंद हो गई। कुशल कारीगर नहीं मिलने से इन फैक्ट्रियों में समय पर माल तैयार नहीं हो सका। साथ ही कच्चा माल भी एक बड़ी समस्या रही।
सरकार ध्यान दे
उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सबसे बड़ी आर्थिक मजबूती की जरूरत है, लेकिन उद्योगपतियों को सरकार की ओर से ऐसी सहायता नहीं मिल रही है। उद्योग लगाने के लिए सरकार की ओर से दिया जाना वाले ऋण का ब्याज भी अन्य जिलों के मुकाबले अधिक है। इसके अलावा विशेष प्रोत्साहन योजना भी जिले के लिए लागू नहीं है।
ऐसे हुई थी शुरुआत
टोंक में औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना जुलाई 1978 में हुई थी। उस समय 103 यूनिट शुरू हुई थी। उन दिनों काम करने वालों श्रमिकों की भी संख्या काफी थी। उन दिनों एक हजार लोग इन उद्योगों में काम करते थे, लेकिन धीरे-धीरे उद्योग बंद होने लगे। आज हालात यह हैं कि 103 में 48 औद्योगिक इकाई बंद हो गई हैं। बाकी बचे 55 उद्योगों में महज 500 श्रमिक ही काम कर रहे हैं।
प्रशासन की ओर से उद्योगों की मॉनीटरिंग नहीं की जा रही है। कई उद्योग बिना जानकारी दिए ही बंद व चालू हो जाते हैं। इसके अलावा श्रमिकों को भी मिलने वाली सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। ऐसे में साल में कई बार श्रमिक हड़ताल शुरू कर देते हैं और मजबूरन औद्योगिक इकाइयां बंद करनी पड़ती हैं। ऐसे में छोटे उद्योगों पर संकट खड़ा हो जाता है। जबकि श्रमिकों की हड़ताल तथा समस्याओं के लिए जिला प्रशासन को कमेटी बनाकर मॉनीटरिंग करनी चाहिए।
फैक्ट फाइल 1978 स्थापना हुई
1000 श्रमिक थे उन दिनों
149 से हुईथी शुरुआत
101 इकाई हुई थी शुरू
48 इकाई हो चुकी हैबंद
500 श्रमिक हैअभी
250 श्रमिक है पंजीकृत नियमित नहीं मिला काम
औद्योगिक क्षेत्र में सीजन के मुताबिक ही काम मिलता है। ऐसे में कईबार अन्य काम भी करने पड़ते हैं। उद्योग बढ़े तो काम नियमित मिल जाए।
रामलाल गुर्जर, श्रमिक
औद्योगिक क्षेत्र में कईसमस्याएं हैं। कईबार परिवहन भी भारी पड़ता है। बिजली व पानी की समस्या तो कईसालों से है। सरकार की ओर से भी कोई योजना ऐसी लागू नहीं की गईकि उद्योग आगे बढ़ सके।
विमल कुमार जैन, उद्योगपति।