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चुनाव में गुम हो रहा औद्योगिक विकास का मुद्दा, किसी भी प्रत्याशी ने बंद पड़ी इकाइयों को फिर से शुरू कराने को नही लिया एजेंडे पर

locationटोंकPublished: Dec 01, 2018 08:45:26 am

Submitted by:

pawan sharma

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चुनाव में गुम हो रहा औद्योगिक विकास का मुद्दा, किसी भी प्रत्याशी ने बंद पड़ी इकाइयों को फिर से शुरू कराने को नही लिया एजेंडे पर

टोंक. सरकार व प्रशासन की अनदेखी के चलते औद्योगिक क्षेत्र वीरान होते जा रहे हैं। सुविधाओं के अभाव में उद्योगपति उद्योगों को बंद कर रहे हैं। मजबूरी में श्रमिक भी जिले से पलायन कर रहे हैं। हालात ये हैं कि टोंक शहर में 103 इकाई में से 48 इकाई बंद हो चुकी हंै। पांच से दस हजार मजदूर बेरोजगार हो गए, जो यहां से पलायन कर गए।
अकेले जयपुर शहर में ही हजारों लोग मजदूरी कर रहे हैं। जबकि विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी ने ये मुद्दा नहीं बनाया है कि औद्योगिक क्षेत्र को विकासित कैसे किया जाए। जिला मुख्यालय पर 149 यूनिट वाले औद्योगिक क्षेत्र में महज 500 श्रमिक ही काम कर रहे हैं। इनमें से भी पंजीकृत महज 250 ही हैं। बाकी श्रमिक दिहाड़ी मजदूरी पर हैं।
उन्हें भी कब काम से निकाल दिया जाए इसका अंदाजा नहीं है। इसका कारण सरकार की ओर से औद्योगिक विकास पर ध्यान नहीं देना है। बड़ा कारण ये कि जिले में उद्योग लगाने वाले उद्योगपति को सरकार की ओर से अनुदान तथा सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। इसके चलते वे मुनाफा नहीं होने पर उद्योग नहीं लगा रहे हैं। सरकार इस ओर ध्यान दे तो जिला उद्योग की दृष्टि से विकसित हो सकता है।
बंद होने का कारण झगड़ा
छोटे राजनीतिक दल व फैक्ट्री यूनियन के झगड़ों की वजह से शहर की बड़ी इसुजु फैक्ट्री 14 जनवरी 2013 को बंद हो गई। इसमें 500 श्रमिक नियमित रूप से काम कर रहे थे। इसके अलावा रीको में लगी 48 फैक्ट्रियां नियमित मजदूर नहीं मिलने तथा कच्चा-माल के चक्कर में बंद हो गई। कुशल कारीगर नहीं मिलने से इन फैक्ट्रियों में समय पर माल तैयार नहीं हो सका। साथ ही कच्चा माल भी एक बड़ी समस्या रही।

सरकार ध्यान दे
उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सबसे बड़ी आर्थिक मजबूती की जरूरत है, लेकिन उद्योगपतियों को सरकार की ओर से ऐसी सहायता नहीं मिल रही है। उद्योग लगाने के लिए सरकार की ओर से दिया जाना वाले ऋण का ब्याज भी अन्य जिलों के मुकाबले अधिक है। इसके अलावा विशेष प्रोत्साहन योजना भी जिले के लिए लागू नहीं है।

ऐसे हुई थी शुरुआत
टोंक में औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना जुलाई 1978 में हुई थी। उस समय 103 यूनिट शुरू हुई थी। उन दिनों काम करने वालों श्रमिकों की भी संख्या काफी थी। उन दिनों एक हजार लोग इन उद्योगों में काम करते थे, लेकिन धीरे-धीरे उद्योग बंद होने लगे। आज हालात यह हैं कि 103 में 48 औद्योगिक इकाई बंद हो गई हैं। बाकी बचे 55 उद्योगों में महज 500 श्रमिक ही काम कर रहे हैं।
प्रशासन बनाए कमेटी
प्रशासन की ओर से उद्योगों की मॉनीटरिंग नहीं की जा रही है। कई उद्योग बिना जानकारी दिए ही बंद व चालू हो जाते हैं। इसके अलावा श्रमिकों को भी मिलने वाली सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। ऐसे में साल में कई बार श्रमिक हड़ताल शुरू कर देते हैं और मजबूरन औद्योगिक इकाइयां बंद करनी पड़ती हैं। ऐसे में छोटे उद्योगों पर संकट खड़ा हो जाता है। जबकि श्रमिकों की हड़ताल तथा समस्याओं के लिए जिला प्रशासन को कमेटी बनाकर मॉनीटरिंग करनी चाहिए।

फैक्ट फाइल

1978 स्थापना हुई
1000 श्रमिक थे उन दिनों
149 से हुईथी शुरुआत
101 इकाई हुई थी शुरू
48 इकाई हो चुकी हैबंद
500 श्रमिक हैअभी
250 श्रमिक है पंजीकृत

नियमित नहीं मिला काम
औद्योगिक क्षेत्र में सीजन के मुताबिक ही काम मिलता है। ऐसे में कईबार अन्य काम भी करने पड़ते हैं। उद्योग बढ़े तो काम नियमित मिल जाए।
रामलाल गुर्जर, श्रमिक
कई समस्याएं हैं
औद्योगिक क्षेत्र में कईसमस्याएं हैं। कईबार परिवहन भी भारी पड़ता है। बिजली व पानी की समस्या तो कईसालों से है। सरकार की ओर से भी कोई योजना ऐसी लागू नहीं की गईकि उद्योग आगे बढ़ सके।
विमल कुमार जैन, उद्योगपति।
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