नतीजा युवा तो शिक्षित हो गया लेकिन उसको रोजगार के अवसर दूर की कौडी साबित हो रहा है। लड़का लड़की में समान भाव के साथ जहां बेटियों को पढ़ाई के लिए बाहर भेजना बेहद चिंताग्रस्त करता है ,वही नैतिकता का पतन होने के कारण बेटियों को सुरक्षित रख पाना भी बेहद कठिन हो गया है।
आज के परिवेश में बच्चों के भविष्य को लेकर हर पिता चिंतित है। पुराने समय में स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा शामिल थी । जिससे सामाजिक सरोकारों की मजबूत नींव प्राइमरी से शुरू हो जाती थी ,लेकिन धीरे धीरे पाठ्यक्रम से ये विषय सुयोजित तरीके से गायब करके समाज को तथाकथित आधुनिकता में धकेला जा रहा है।
रोजगार पाने की जगह पैदा करने पर हो जोर
बच्चों के विकास और सुरक्षा को लेकर समाज में काम कर रहे मनोज बाबू कहते है कि वह दो बच्चों के पिता है। अपने बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा के साथ ही वह देखते है कि आर्थिक तंगी के शिकार परिवारों के नौनिहालों का बचपन बिखर रहा है।
चौबे कहते है कि जरूरत है आज कौशल विकास की ताकि केवल पढ लिखकर नौकर पैदा न हों बल्कि अपने हुनर की दम पर अपना रोजगार स्वयं पैदा कर सकें।आज समाज में बाल मजदूरी भी बडा अभिशाप है।
जिससे बच्चों का बचपन ही खत्म हो जाता है और देश का भविष्य गलत दिशा में चला जाता है। बच्चों का शोषण रोकने की दिशा में सबको मिलकर सार्थक कदम उठाने होंगे। समाजसेवी कहते है कि महानगरों से छोटे शहरों की ओर बढ़ रही आधुनिकता के कारण बेटियों के प्रति सम्मान की जगह गंदी सोच हावी है।
बुंदेलखण्ड़ में हमेशा से बेटियों को पूजने की परंपरा रही है। नैतिक शिक्षा के अभाव के कारण आज मां पिता को संतानों की चिंता करने की आवश्यकता होने लगी है।