देव स्थित सूर्य मंदिर को लेकर लोगों की मान्यता है कि यहां दर्शन के लिए आए श्रृद्धालु जो भी मांगते हैं उनकी सभी मुरादें जरुर ही पूरी होती है। मंदिर के बाहर लगे शिलालेख से स्प्ष्ट होता है कि इस मंदिर का निर्माण काल का एक लाख पचास हजार बारह वर्ष पूरा हो गया है। मंदिर की अद्भुत कलात्मकता भव्यता के कारण किंवंदती है कि मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथें से एक रात में किया था। इसके निर्माणकाल के विषय में सही जानकारी किसी के पास नहीं है। सूर्य मंदिर को देखने से ऐसा लगता है कि बिना किसी जुड़ाई के पत्थर से ही इस मंदिर का निर्माण करवाया गया है।
देव स्थित सूर्य मंदिर देश का एकमात्र पश्चिमोभिमुख सूर्य मंदिर है। यहां सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल (प्रात:), मध्याचल (दोपहर) और अस्ताचल (अस्त होते) के रूप में विराजमान है। काले और भूरे पत्थरों की अति सुंदर कृति देव के प्राचीन सूर्य मंदिर में देखने को मिलती है और दर्शन के लिए आए श्रृद्धालुओं को भावविभोर करती है। देव मंदिर दो भागों गर्भ गृह और मुख मंडप में बंटा है। करीब 100 फुट उंचे इस मंदिर का निर्माण बिना सीमेंट अथवा चूने-गारे का प्रयोग किए आयताकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार वगरेकार आदि कई रूपों में पत्थरों को काटकर बनाया गया है। इस मंदिर पर सोने का एक कलश है। किवंदंतियों के अनुसार यह सोने का कलश यदि कोई चुराने की कोशिश करता है तो वह उससे चिपक कर रह जाता है। हर साल चैत्र मास व कार्तिक मास में होने वाले छठ पर्व पर यहां लाखों श्रद्धालु छठ व्रत करने के लिए जुटते हैं।
वैसे तो सूर्य मंदिर का कोई प्रमाणित इतिहास नहीं है लेकिन फिर भी मंदिर के पुजारी बताते हैं की यह मंदिर सूर्य पुराण के अनुसार ऐल एक राजा थे जो किसी ऋषि के शाप के कारण श्वेत कुष्ठ से पीड़ित थे। एक बार शिकार करने वह देव के वनप्रांत में आ गए और रास्ता भटक गए। इस दौरान उन्हें बहुत जोर की प्यास लगी। यहीं पर एक छोटा सरोवर देख उन्होंने वहां का पानी पिया और उनका कुष्ठ ठीक हो गया। इसके बाद उन्होंने अपने राज की राजधानी यहीं बनाई थी तब इस इलाके का नाम देववेड़ा रखा गया था। आज भी यह सरोवर वहां मौजूद है, जहां लोग नहाने आते हैं। यहां आए लोगों का मानना है की कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है। मंदिर में मौजूद सरोवर में यूं तो हर दिन लोग यहां पूजा करने व स्नान करने आते हैं, लेकिन छठ के दौरान यहां लाखों की भीड़ इकट्टठा होती है। सूर्योपासना के लिए यहां बिहार-झारखंड ही नहीं बल्कि आसपास के राज्य से भी लोग आते हैं।