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यहां दीवाली पर खुले रखते हैं घरों के द्वार, सुबह आंगन में छपे होते हैं श्रीराम के पदचिन्ह

Published: Oct 15, 2017 02:58:19 pm

अयोध्या में खुले रखेंगे द्वार, पीड़ा हरने खुद आएंगे श्रीराम, देहरी पर बनाते हैं सीता-राम के पदचिह्न

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देश में दीपावली की अमावस्या की रात में स्याह अंधेरे के बावजूद लक्ष्मी के इंतजार में अधिकांश घरों के किवाड़ बंद नहीं होते हैं, लेकिन अयोध्या के दरवाजे प्रभु के इंतजार में खुले रहते हैं। आराध्य का इंतजार रहता है।
यूं तो हर बरस अपनी प्रजा की पीड़ा हरने के लिए प्रभु श्रीराम दीपावली की रात में अयोध्या आते हैं, लेकिन इस बार अयोध्या का उल्लास ज्यादा है। उम्मीद है कि त्रेतायुग जैसा नजारा देखकर प्रभु अयोध्या को ज्यादा सुख देंगे। घर की देहरी पर राजा राम और महारानी सीता के चरणचिह्न बनाकर भक्तों को बेसब्री से इंतजार है।
ज्यादा देर रहेंगे भगवान
हनुमानगढ़ी के करीब रहने वाले रमेश पाण्डेय कहते हैं कि इस बार त्रेतायुग जैसा नजारा होगा, इसलिए प्रभु देर तक अयोध्या में रहेंगे। सरयू तटवासी यकीन करते हैं कि प्रभु श्रीराम दिवाली पर घर-घर जाकर प्रजा की समस्या का समाधान करते हैं। करीब चार दशक से सरयू किनारे आश्रम बनाकर रामधुन में लीन संत तपेश्वरानंद 35 साल की उम्र में पश्चिम बंगाल से अयोध्या आए तो लौटकर नहीं गए। बताते हैं कि हुगली में एक दिन सपने में राम भगवान ने अयोध्या बुलाया तो घर-परिवार छोड़ आ गए।
उनका कहना है कि प्रत्येक दीपावली में प्रभु के पद चिह्नों के दर्शन आश्रम के मंदिर में होते हैं। 68 साल के संत बैरागी बाबा बोले कि लंका विजय के बाद भगवान राम ने पुष्पक विमान से हनुमान व अन्य वानर सेनानियों को अयोध्या दिखाते हुए कहा था कि यद्यपि सब बैकुंठ बखाना, वेद पुरान निगम सब जाना, जन्म भूमि सम नहीं प्रिय सोहूं, या प्रसंग जाने कोऊ कोऊ…।
मान्यता यह भी…
दिवाली पर हर घर की देहरी पर राम-सीता के पदचिह्न बनाए जाते हैं। इनमें से कुछ वास्तव में प्रभु के होते हैं।

देहरी पर सीता-राम के पदचिह्न
राम की पेड़ी पर पूजा-अर्चना कर रहीं वृद्ध देविका रवीन्द्रनाथ अयोध्या में राम की मौजूदगी की तमाम बातें बताती हैं। वे कहती हैं कि दीवाली के मौके पर हर घर की देहरी पर राम और सीता के पदचिह्न बनाए जाते हैं। मान्यता है कि इन्हीं में कुछ पद चिह्न वास्तविक रूप से प्रभु राम के होते हैं। ऐसी मान्यता भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा वृंदावन की भी है।
इसलिए होती है लक्ष्मी की पूजा
मान्यता के अनुसार, प्रभु के वनवास के दौरान अयोध्या का राज्य तंत्र भंग हो गया था और लक्ष्मी रुष्ट होकर निद्रा में चली गई थीं। जगन्नाथ मंदिर के महंत राघवाचार्य जी महाराज बताते हैं कि ऐसे में वनवास से लौटे प्रभु राम ने गणेश के साथ-साथ मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हुए वापस अयोध्या में निवास करने के लिए मनाया था। इस प्रकार दीपावली के दिन गणेश-लक्ष्मी की पूजा की परपंरा शुरू हुई।
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