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व्रतियों ने शुरू किया 36 घंटे का निर्जला उपवास

locationसूरतPublished: Nov 12, 2018 09:14:56 pm

Submitted by:

Dinesh Bhardwaj

अस्ताचलगामी सूर्य को अघ्र्य देंगे आज, घाटों पर लगने लगा श्रद्धालुओं का मेला

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व्रतियों ने शुरू किया 36 घंटे का निर्जला उपवास

सूरत. उत्तर भारतीयों का लोकपर्व छठ पूजा के हजारों व्रतियों ने सोमवार शाम खरना कर 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू कर दिया। शहर के विभिन्न क्षेत्रों में व्रतियों ने भगवान सूर्यदेव का स्मरण कर अरवा चावल, गुड़ और गाय के दूध से बनी खीर के साथ मिट्टी के चूल्हे पर तैयार रोटी का प्रसाद ग्रहण किया। खरना के बाद व्रतियों से उनके परिजनों समेत अन्य लोगों का आशीर्वाद लेने का सिलसिला भी घरों में खूब चला। वहीं, अस्ताचलगामी सूर्य को हजारों श्रद्धालु मंगलवार शाम शहर में तापी नदी के विभिन्न घाट व तालाब तट से अघ्र्य अर्पित करेंगे।
‘नहाय-खाय’ के साथ रविवार से शुरू हुए छठ पर्व के तीसरे दिन भगवान सूर्यदेव को अघ्र्य देने की परंपरा है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाए जाने वाले छठ पर्व की लोक पंरपरा को शहर में बसे प्रवासियों ने कायम रखा है। शहर में तापी नदी के विभिन्न घाटों के अलावा विभिन्न तालाबों पर पूजा आयोजक संगठनों की ओर से साफ-सफाई, पानी-रोशनी के अलावा पूजा सामग्री की भी व्यवस्था की गई है। सोमवार शाम को हजारों व्रतियों ने खरना किया और आवश्यक सामग्री से चुल्हे पर तैयार प्रसाद ग्रहण कर 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू किया। यह सभी व्रती निर्जला उपवास का पारणा बुधवार सुबह उदीयमान सूर्य को अघ्र्य देने के बाद ही करेंगे। खरना के बाद व्रतियों से आशीर्वाद और प्रसाद ग्रहण करने की परंपरा का निर्वाह भी सोमवार शाम शहर के गोडादरा, डिंडोली, पांडेसरा, खरवासा, कतारगाम, वेडरोड-डभोली, जहांगीरपुरा, पार्ले प्वाइंट समेत अन्य क्षेत्रों में श्रद्धालुओं ने किया। इस अवसर पर व्रती के हाथ की बनी रोटी और खीर का प्रसाद भी लोगों के बीच बांटा गया। वहीं, नदी-तालाब तट पर प्रसाद ग्रहण करने आए लोगों के बीच छठ माता के गीतों से माहौल भक्तिमय बना रहा।

समूह में मनाते हैं पर्व


छठ पर्व को समूह में मनाए जाने की परम्परा का निर्वाह सूरत में भी जगह-जगह देखने को मिलने लगा है। शहर के विभिन्न क्षेत्र में व्रती एकत्र होकर छठी मैया के गीत गाकर भगवान सूर्यदेव की आराधना करने लगे हैं वहीं, सभी के स्वस्थ और खुशहाल होने की कामना करते है। छठ पूजा के दौरान सगे-संबंधी व परिजन एक साथ रहकर छठी मैया को मनाते है।

शुद्धता पर विशेष ध्यान


छठ पर्व में व्रती व परिजन शुद्धता का विशेष ध्यान रखते हैं। पूजा घर के शुद्ध वातावरण के साथ वे प्रसाद बनने के स्थान को भी नदी आदि के जल से शुद्ध करने के बाद ही परंपरगत मिट्टी के चूल्हे पर प्रसाद तैयार करते है। जानकारों की मानें तो प्रसाद के लिए बाजार से लाए गए फल-सब्जी व अन्य सामग्री को भी नदी आदि के जल से शुद्ध करने के बाद उसे बांस की टोकरी में लेकर रखा जाता है।

हजारों सिर पर होगी पूजा टोकरी


छठ पर्व के पहले अघ्र्य के लिए व्रती के साथ चलने वाले सगे-संबंधी फलों और अन्य पूजन सामग्री की टोकरी को सिर पर लेकर नदी-तालाबों की ओर मंगलवार दोपहर बाद रवाना होंगे। मान्यता है कि सिर पर टोकरी ढोना पुण्यदायी और मनोरथों को पूरा करने वाला होता है। वाहन से लाए जाने वाली टोकरी को भी श्रद्धालु नदी व तालाब के घाट तक सिर पर ढोकर ले जाएंगे।

घाट-किनारों पर तैयारियां पूरी


मंगलवार अस्ताचलगामी व बुधवार सुबह उदीयमान सूर्य को अघ्र्य देने के लिए विभिन्न संगठनों की ओर से तापी के विभिन्न घाट व तालाब किनारे सभी व्यवस्था पूरी कर ली गई है। इसमें बिहार विकास परिषद ने जहांगीरपुरा में तापी नदी के इस्कॉन मंदिर घाट, बिहार विकास मंडल ने वेडरोड पर वियर-कम-कॉजवे, श्रीछठ पूजा सेवा समिति ने नानपुरा में नावड़ी घाट, समस्त बिहार-झारखण्ड समाज ट्रस्ट ने पार्ले पोइंट के पास अंबिकानिकेतन, श्रीछठ मानव सेवा ट्रस्ट ने डिंडोली में छठ सरोवर तथा श्री सार्वजनिक छठ पूजा समिति ने कराड़वा तालाब के निकट तैयारियां पूरी की है।
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