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सूरत

कृत्रिम लेबग्रोन हीरों का बेताज बादशाह बनेगा सूरत

नेचुरल की तुलना में कृत्रिम डायमंड का निर्यात तेजी से बढ़ा
बजट में भी सरकार ने सीमा शुल्क कर दिया था

सूरतJul 05, 2023 / 12:18 am

pradeep joshi

कृत्रिम लेबग्रोन हीरों का बेताज बादशाह बनेगा सूरत

कृत्रिम लेबग्रोन हीरों का बेताज बादशाह बनेगा सूरत

प्रदीप जोशी. सूरत। खदानों से कच्चे हीरे आयात कर दुनिया को 90% फिनिश्ड हीरे सूरत निर्यात करता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद प्रतिबंध के चलते रूस के खदानों से निकले तराशने के लिए विशेष किस्म के अलरोसा डायमंड की आपूर्ति बंद हो गई। जिसके चलते भारत में हीरा उद्योग लड़खड़ा गया। ऐसे में आपदा को अवसर बनाने वाले सूरत ने लेब में तैयार लेबग्रोन डायमंड का विकल्प दुनिया को देकर डायमंड इकोनॉमी को नई रफ्तार दी। कोरोना के बाद विश्व में आई मंदी के चलते अमेरिका, चीन सहित यूरोपीय देशों ने भी इसे हाथों हाथ ले लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका की प्रथम महिला डॉ. जिल बाइडेन को जो 7.5 कैरेट का हरे रंग का हीरा दिया था, वो सूरत की लैब में विकसित लेबग्रोन डायमंड ही था। यह उदाहरण है विश्व में लेबग्रोन की स्वीकार्यता और भारत की ब्रांडिंग का।
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एक नजर लेबग्रोन के एक्सपोर्ट पर :
कोरोना काल के 2 वर्षों के विपत्ति के समय में भी नेचुरल डायमंड की तुलना में कृत्रिम हीरों का निर्यात भारत के उद्यमियों ने 387 मिलियन डॉलर तक बढ़ाया।
जेम्स एंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के मुताबिक, पहले यहां आर्टिफिशियल हीरो का निर्यात बहुत कम था, जो तीन गुना बढ़ गया है। कमोडिटी वाइज अप्रैल 2021 से जनवरी 2023 के बीच 338.28 मिलियन यूएस डॉलर एक्सपोर्ट हुआ। यानी कुल ग्रोथ 31.66% हुई।
कारीगर भी लैबग्रोन की तरफ मुड़े :
सूरत में नेचुरल हीरो की कटिंग व फिनिशिंग आदि के लिए करीब 6000 यूनिट्स हैं। इनमें से अब 400 से 600 यूनिट लैबग्रोन का काम करने लगी है। जिनसे करीब डेढ़ लाख हीरा कारीगर जुड़ चुके हैं, जो पहले नेचुरल हीरे तराशते थे।
0 इसलिए बढ़ी मांग :
लॉकडाउन के चलते विश्व आर्थिक संकट में फंसा और लोगों की खरीद शक्ति कम हो गई थी। चूंकि लैबग्रोन डायमंड नेचुरल हीरो की तरह ही दिखते हैं। इसलिए इसे उसका सस्ता व अच्छा विकल्प माना गया। अमेरिका और हांगकांग सहित कुछ देशों में भी इसकी मांग अचानक बढ़ी।
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किफायती और पूंजी भी अधिक नहीं :
नेचुरल हीरो की तुलना में लैबग्रोन डायमंड में 30 से 40 प्रतिशत का अंतर होने के चलते ये किफायती हैं। इसका कारोबार करने में पूंजी बहुत कम लगती है और नगद का भी व्यवसाय है।
भारत सरकार ने भी बढ़ावा दिया :
गत केंद्रीय बजट में कच्चे माल के लिए प्रयोगशाला में तैयार लेब्रग्रोन हीरों पर सीमा शुल्क घटाकर शून्य कर दिया। इसके साथ ही डायमंड के लिए देश में ही मशीन बने और शोध के लिए बेंगलुरु या मुंम्बई आईआईटी को 5 वर्षों के लिए फंड मुहैया करवाएगी। जिन उद्योगपतियों ने लेब्रग्रोन डायमंड में इन्वेस्टमेंट किया है उन्हें भी राहत का प्रावधान रखा है।
– दिनेश नावडीया, रीजनल चेयरमैन जीजेआईपीसी, सूरत गुजरात।
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