स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के ३१ अक्टूबर को अनावरण से पहले प्रदेशभर में एकता यात्रा निकाली जा रही है। इस यात्रा में गांव-गांव गली-कूचे में घूम रहे रथ पर सरदार पटेल की तस्वीर के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के चेहरे भी नुमाया हैं। इसे मुद्दा बनाते हुए कांग्रेस पार्षदों ने सामान्य सभा में सत्तापक्ष को घेरने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि वह एकता यात्रा का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन उसका तरीका ठीक नहीं है। शून्यकाल में चर्चा के दौरान उन्होंने ऐलान किया कि सरदार पटेल कांग्रेस की थाती रहे हैं और आगे भी रहेंगे। सत्ता लोभ में भाजपा कांग्रेस के प्रतीकों पर कब्जा जमाने की कोशिश कर रही है। सरदार जिन ताकतों से उम्रभर लड़ते रहे, वही अब उनकी विरासत पर दावेदारी जता रहे हैं। भाजपा की यह कोशिश सफल नहीं होगी। उन्होंने भाजपा को गोडसे से जोडऩे का प्रयास भी किया। राज्य सरकार की एकता यात्रा को भी कांग्रेस पार्षदों ने इसी कोशिश का हिस्सा बताया।
एकता यात्रा के तरीके पर सवाल उठाने के क्रम में स्थानीय मुद्दे नेपथ्य में चले गए। माना जा रहा था कि कई दिनों से शहर में पानी आपूर्ति को लेकर लोगों को हो रही मुश्किल पर सत्तापक्ष को जवाब देना भारी पड़ जाएगा। चर्चा के दौरान ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस पार्षदों ने इस मुद्दे को सदन में उठाया. लेकिन इस पर गंभीर चर्चा नहीं हो पाई। गौरतलब है कि कई दिनों से लोग पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। कहीं पानी कम मिल रहा है तो कहीं अनियमित आपूर्ति हो रही है। कई सोसायटियों में पानी के टैंकर मंगाने पड़ रहे हैं। आए दिन मनपा प्रशासन को गंदे पानी की आपूर्ति की शिकायतें मिल रही हैं।
इसके अलावा शहर को कंटेनर फ्री बनाने के फेर में रास्तों पर बिखरी गंदगी भी चर्चा का एक बड़ा मुद्दा थी। मनपा प्रशासन ने इंदौर की तर्ज पर बगैर तैयारी शहर से कंटेनर हटाने शुरू कर दिए हैं। आधे से ज्यादा कंटेनर हटा लिए गए हैं। जहां से कंटेनर हटाए गए, विकल्प के अभाव में लोगों ने सड़क पर ही कचरा डालना शुरू कर दिया। माना जा रहा था कि पानी और गंदगी के मुद्दों पर सत्तापक्ष को बैकफुट पर आना पड़ सकता है। चर्चा का फोकस इन मुद्दों से हटकर एकता यात्रा पर आया तो सत्तापक्ष ने राहत की सांस ली।