ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित सरकारी स्कूलों में शिक्षा के अधिकार की जमीनी हकीकत, ग्रामीणों के साथ ही बच्चे भी बुझा रहे नाले के गंदे पानी से प्यास
Student drink water of river
अंबिकापुर/प्रतापपुर. सूरजपुर जिले के प्रतापपुर विकासखंड स्थित एक गांव से ऐसी तस्वीर सामने आई है जिसे देखते ही आपको तरस भी आ जाएगा और गुस्सा भी। स्कूल जाने वाले मासूम बच्चों को पढ़ाई के दौरान पानी नहीं मिल पाता है तो वे पास के नाले में जाकर अपनी प्यास बुझाते हैं। जिस पानी का उपयोग मवेशी करते हैं वही पानी बच्चे भी पीते हैं।
यही नहीं यहां के ग्रामीण भी इस पानी का उपयोग भी अपने दैनिक जीवन में करते हैं। ऐसा लगता है जैसे यहां के रहवासियों व उनके बच्चों तथा मवेशी में कोई फर्क ही नहीं है। सरकारी नुमाइंदों के यहां के जनप्रतिनिधि लिखित व मौखिक शिकायत कर चुके हैं लेकिन सब अब तक खामोश हैं।
बच्चे तो बेहतर भविष्य बनाने के लिए ही स्कूल भेजे जाते हैं ना। ये सवाल इसलिए क्योंकि शिक्षा के अधिकार का नारा बुलंद करने वाली सरकार के नुमाइंदे जमीन पर नौनिहालों की शिक्षा-दीक्षा के साथ खिलवाड़ ही करते नजर आ रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित सरकारी स्कूलों के भरोसे उज्ज्वल भविष्य का सपना संजोए किसान, मजदूर, गरीब के बच्चों को तालीम हासिल करने के लिए काफी तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है। सरगुजा जिले के बतौली विकासखंड के बाद अब सूरजपुर जिले के प्रतापपुर ब्लॉक के ग्राम पंचायत भेडिय़ा के महुआडांड़ से हैरान कर देने वाली तस्वीर सामने आई है।
यहां के एक माध्यमिक शाला के बच्चे उस नाले का गंदा पानी पीते हैं, जहां मवेशी भी प्यास बुझाते हैं। इन नौनिहालों को तो कंठ की प्यास बुझानी है, अब इन्हें क्या मतलब कि पानी गंदे नाले का ही क्यों न हो, लेकिन जिम्मेदारों की बेफिक्री पर तो गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
प्रतापपुर विकासखंड के ग्राम पंचायत भेडिय़ा के आश्रित ग्राम कोड़ाकूपारा व महुआडांड़ में कुल 50 घर हैं। इन दोनों ग्राम में पेयजल की विकराल समस्या है, कोड़ाकुपारा में लगा एक हैंडपंप काफी लंबे समय से खराब पड़ा है। महुआडांड़ में तो हैंडपंप नहीं है।
आश्रित ग्रामों में हैंडपंप के नहीं होने की समस्या तो अविभाजित सरगुजा के अधिकांश ग्रामीण इलाकों के लिए अब सामान्य बात सी हो गई है, लेकिन आश्चर्य तो इस बात का है कि महुआडांड़ में संचालित माध्यमिक शाला में भी हैंडपंप नहीं है। माध्यमिक शाला में बच्चों की कुल दर्ज संख्या 36 है, वहीं पास में मौजूद आंगनबाड़ी में बच्चों की संख्या 25 है।
महुआडांड़ व कोड़ाकुपारा के साथ ही स्कूल व आंगनबाड़ी के बच्चों को पीने के पानी की गंभीर समस्या से जूझना पड़ रहा है। गांव वाले तो हर दिन बर्तन लेकर 200 मीटर दूर स्थित गंदे नाले के पास पानी भरने पहुंचते हैं।
हैंडपंप के लिए न तो प्रशासन ने ध्यान दिया और न ही चुनाव के समय वोट मांगने पहुंचने वाले नेताओं ने। जिम्मेदारों की उदासीनता का खामियाजा ग्रामीण व मासूम भुगत रहे हैं। गंदे नाले में बनाते हैं गड्ढा माध्यमिक शाला के बच्चे हर दिन मध्यान्ह भोजन करने के बाद या फिर प्यास लगने पर गंदे नाले के पास पहुंचते हैं। फिर यहां गड्ढा बनाकर हाथों में पानी भरकर पीते हैं। न जाने इस दौरान उनके पेट में कितने कीटाणु जाते होंगे, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है, लेकिन उन्हें इससे क्या मतलब, वे तो बस प्यास बुझाते हैं।
ग्रामीण जानते हैं कि नाले का पानी कितना गंदा है, लेकिन वे मजबूर हैं, पेयजल का कोई विकल्प नहीं होने से वे बच्चों को भी नहीं रोकते हैं। मध्यान्ह भोजन खाने के बाद बच्चे थालियां भी इसी नाले के पानी से धोलते हैं। ये वही नाला है, जिसका पानी मवेशी भी पीते हैं फिर कुल मिलाकर मवेशी व इंसान में कोई फर्क नहीं हुआ।
शिकायत के बाद भी नहीं हुई सुनवाई हमने पानी की समस्या को लेकर कई बार जनपद में शिकायत की लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई, अब क्या करें। संगीता देवी, सरपंच भेडिय़ा आला अधिकारी भी नहीं दे रहे ध्यान मैंने पूरे ब्लॉक में पानी की समस्या को लेकर पत्र आला अधिकारी को प्रेषित किया है लेकिन अभी तक पहल नहीं हुई है। जनार्दन सिंह, बीईओ, प्रतापपुर
तत्काल कराई जाएगी व्यवस्था आपके माध्यम से इस समस्या की जानकारी मिली है। अगर वहां पानी की समस्या है तो तत्काल अधिकारियों से कहकर व्यवस्था कराई जाएगी। केसी देवसेनापति, कलक्टर, सूरजपुर