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ये है मान्यता भक्ति की मस्ती में नाचते-गाते और झूमते ये भक्तगण गौड़ सम्प्रदाय के अनुयायी हैं और ये गोवर्धन पर्वत की विशेष मुड़िया परिक्रमा देने के लिए गिरिराज धाम गोवर्धन आये हैं। गौरतलब है कि आज से लगभग 500 साल पहले गौड़ सम्प्रदाय के आचार्य श्रीपाद सनातन गोस्वामी जब चैतन्य महाप्रभु के आदेश पर ब्रजभूमि पधारे तो यहां वृन्दावन के बाद गोवर्धन ही उनका भजन स्थली बना। सनातन गोस्वामी अपने बालों का मुंडन कर भजन साधना में लीन रहते थे, इसीलिए सभी उन्हें मुड़िया बाबा के नाम से जानते थे। गोवर्धन-पर्वत की परिक्रमा करना उनके नित्यकर्म में शामिल था इसीलिए जब उन्होंने गुर-पूर्णिमा के दिन अपना शरीर छोड़ा तो गुरु की आज्ञा अनुसार उनके अनुयायियों ने अपने बालों का मुंडन कर इसी दिन शोभायत्रा निकाल गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा दी थी। तब से लेकर आज तक यही परंपरा चली आ रही है।
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परिक्रमा करने से पहले करते हैं पर्वत की पूजा और दुग्धाभिषेक राधा श्याम सुंदर मंदिर के महंत राम कृष्ण दास ने बताया मुड़िया संतों द्वारा गुरु पूर्णिमा के दिन दी जाने वाली इस विशेष परिक्रमा को ही मुड़िया परिक्रमा कहते हैं। मुड़िया परिक्रमा शुरू करने से पहले गोवर्धन पर्वत की पूजा कर दुग्धाभिषेक किया जाता है और उसके बाद शोभायात्रा में सभी मुड़िया संत ढोल-मजीरों की थाप पर झूमते हुए चलते हैं। गोवर्धन में सात दिन के मुड़िया मेले का यह मुख्य पर्व होता है।