लोगों ने अनुभव बताते हुए कहा कि संसद पर हमले के समय सेना ने माइंस बिछा दिए गए थे और ऐसा लगता था कि युद्ध कभी भी छिड़ सकता है, उस समय भी गांव के युवाओं के साथ बुजुर्ग भी सेना के जवानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सीमा पर तैनात होने को तैयार थे।
उन्होने बताया कि करगिल, उरी सेक्टर में हुए आंतकी हमले तथा अन्य आंतकी हमलों के बाद कई बार स्थिति तनावपूर्ण हो जाती है लेकिन उन्हे बिल्कुल भय नही लगता है अगर मौका मिला तो दुश्मन को धूल चटाने के लिए जवानों के साथ तैयार खडे रहेगे।
एक बुजुर्ग का कहना था कि पुलवामा हमला कायराना हरकत है। हमें खुलकर इसका जवाब देना चाहिए। जवान और किसान मिलकर एक बार फिर पाकिस्तान को धूल चटाने को तैयार है। महिलाओं ने कहा कि शहीद हुए जवानों की कमी को पूरा नही किया जा सकता है लेकिन शहीदों के परिवारों को सभी तरह की सुविधाएं मिलनी चाहिए।