government order challenging > कई अधिकारी तो सिर्फ अपने हितों के लिए सरकार के आदेशों को कानून के हथियार से खेलते है।
स्टे के सहारे टिके रहते है अधिकारी
प्रकरण-एक
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा.नऱेश बंसल का तबादला राज्य सरकार ने कर दिया और उनके स्थान पर डा.गिरधारीलाल मेहरड़ा को इस पद के लिए नियुक्ति दे दी गई। आदेश जारी होते ही चौबीस घंटे में डा. मेहरड़ा ने अपना पदभार ग्रहण कर लिया। एक सप्ताह का समय बीता ही था कि तत्कालीन सीएमएचओ डा.बंसल ने अपनी कुर्सी को फिर से हासिल करने के लिए हाईकोर्ट की शरण ली और स्टे ऑर्डर लाने में सफल हो गए। अब इस सीएमएचओ की कुर्सी पर दो दावेदार हो गए है।
प्रकरण- दो
शिक्षा विभाग माध्यमिक में तीन साल पहले अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक के दो पद थे। लेकिन वहां तीन अधिकारी दावेदार हो गए थे। इसमें मदनलाल सोनी और मनोहरलाल चावला को एडीईओ बनाया और यशपाल असीजा का तबादला हो गया था। तब असीजा कोर्ट से स्टे ऑर्डर लेकर आ गए। कुछ समय बाद अशोक वधवा को एडीईओ बनाया तो चावला का तबादला हो गया था, तब चावला ने भी स्टे के बलबूते पर अपनी कुर्सी पर काबिज हो गए। इस दौरान सोनी सेवानिवृत्त हो गए। लेकिन इस ऑफिस में दो पदों के मुकाबले तीन एडीईओ चावला, वधवा और असीजा जमे रहे।
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प्रकरण-तीन
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में अतिरिक्त मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा.आरएस पूनियां का कुछ साल पहले तबादला हो गया था। पूनियां स्थानान्तरण के बाद रिलीव होने की बजाय कोर्ट की शरण ली और स्थगनादेश हासिल कर लिया। यह सिलसिला कई अर्से तक चला। पूनियां एडिशनल सीएचएमओ के पद ही सेवानिवृत्त हुए। उनके स्थनागादेश को विभाग के उच्चाधिकारियों ने इस संबंध में फीडबैक तक नहीं लिया।
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प्रकरण- चार
जिला परिषद में सांख्यिकी सहायक अधिकारी दलीप जाखड़ ने तत्कालीन सीईओ चिन्मयी गोपाल के आदेश पर कई ग्राम पंचायतों में जाकर जांच की थी। इस जांच में कई ग्राम विकास अधिकारी और सरपंचों के खिलाफ रिकवरी लाखों रुपए की जारी हुई तो राजनीतिक एप्रोच के कारण जाखड़ का तबादला लोकसभा चुनाव से पहले यहां से अन्य जिले में कर दिया गया था। इस बीच जाखड़ अवकाश पर चले गए तो वे रिलीव नहीं हो पाए। जब डयूटी पर आए तो तब तक चुनाव की आचार संहिता लागू हो चुकी थी। चुनाव के उपरांत जाखड़ ने कोर्ट (
court ) से स्टे हासिल कर लिया। अब भी यही जमे है।
प्रकरण- पांच
नगर परिषद के लेखा सहायक और नंदीशाला के तत्कालीन प्रभारी मदनलाल डूडी को जब तत्कालीन आयुक्त सुनीता चौधरी ने लेखा शाखा की जगह अन्य शाखा में जिम्मेदारी दी तो उन्होंने अपनी कुर्सी से हटने की बजाय वही जमने का मानस बना लिया और कोर्ट में जाकर स्टे हासिल कर लिया। वे इसी पद पर अब भी जमे हुए है।
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श्रीगंगानगर ( Sri Ganganagar) प्रदेश में सरकार बदलते ही अधिकारियों के रवानागी की सूची तैयार हो जाती है। लेकिन कई अधिकारी अपनी कुर्सी छोडऩे की बजाय किसी न किसी आधार पर टिके रहने का जिद्द अपनाते है, जनप्रतिनिधियों और आला अफसरों की एप्रोच से पार नहीं पड़ती तो कानून का सहारा लेते है। कोर्ट से स्थनादेश की पालना में संबंधित विभाग में इन अधिकारियों और कार्मिकों को वहां टिके रहने का सहारा मिल जाता है। कई अधिकारी अपने परिजनों के बीमार या खुद के अस्वस्थ होने के आधार पर स्टे लाते है। लेकिन कई अधिकारी तो सिर्फ अपने हितों के लिए सरकार के आदेशों को कानून के हथियार से खेलते है। इलाके में ऐसे कई सरकारी विभागों में अधिकारियों के तबादले के बाद संबंधित कुर्सी उपहास बन चुकी है। ऐसे में सबसे ज्यादा संबंधित विभाग के मुखिया अफसर को सरकार के आदेश की पालना करवाना टेढ़ी खीर है। शिक्षा विभाग, चिकित्सा विभाग, नगर परिषद और जिला परिषद में ऐसे कई अधिकारी है जिन्होंने राजनीतिक एप्रोच से तबादला रुकवाने का प्रयास किया लेकिन जब पार नहीं पड़ी तो कोर्ट से स्थनादेश हासिल कर लिया। वहीं स्थनादेश लाने वाले अधिकारियों का कहना है कि कानून ने हर व्यक्ति को अधिकार दिया हुआ है, ऐसे में अधिकारों का हनन होते देख कोर्ट में शरण लेना गुनाह नहीं है।
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व्यवस्था को चुनौती की हो गहन जांच
वरिष्ठ अधिवक्ता सतीशचन्द्र जैन का कहना है कि तबादला रुकवाने के पीछे दो कारण होते है, पहला ये कि संबंधित अधिकारी के परिजन बीमार है या खुद अस्वस्थ है या असहाय होने पर और दूसरा उसी विभाग से अपना हित है। ऐसे में सरकार को भी चाहिए कि जिस जनसेवक की डिजायर आई है उसके पीछे सिर्फ राजनीतिक द्वेषता है या अन्य वजह। अपने हित के लिए कुर्सी पर टिके रहने की मानसिकता के आधार पर कोर्ट में सरकार के आदेश के खिलाफ यानी व्यवस्था को चुनौती ( Government Order Challenging