भोजन में इन मरु वनस्पतियों का उपयोग न केवल हरी व ताजी सब्जियों के रूप में होता है, वहीं सुखा कर साल भर किया जाता है। यह सूखी वनस्पतियां महानगरों व देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले मारवाड़ियों की पहली पसंद है। स्थिति यह है कि कभी प्रदेश में हरी सब्जियों की कमी को देखते हुए मजबूरी में सूखा कर उपयोग में लेने वाली ये वनस्पतियां आज अन्य प्रदेशों व बड़े होटलों व ढाबों में भी महंगी सब्जियों में शुमार होती हैं। जिनको लोग काफी पसंद भी करते हैं। यह मरुस्थलीय सूखी सब्जियां पूरी तरह से प्राकृतिक स्वाद व स्वास्थ्यवर्धक होती हैं। इन्ही वनस्पतियों में प्रदेश के बरानी खेतो में प्राकृतिक बाड़ के रूप में उपयोग होने वाले खींप पर लगने वाली कच्ची फलियों यानि खींपोली को बड़े बुजुर्ग बहुत गुणकारी बताते हैं।
पूरी तरह से ऑर्गेनिक है मरू सब्जियां
बारिश आधारित खेती पर निर्भर बरानी क्षेत्र में बिजाई की जाने वाली ग्वार, बाजरा, मोठ, तिल, सहित टिब्बा क्षेत्र में अपने आप उगने वाली वनस्पति कैर, फोग, खेजड़ी, देशी बबूल, खींप की खास बात यह है कि ये पूरी तरह से ऑर्गेनिक होती है। इन वनस्पतियों में खींप, फोग, देशी बबूल व खेजड़ी में मार्च से लेकर मई प्रथम सप्ताह तक फलियां व फूल लगते हैं। खींप की कच्ची फलियों व फोग के अधखिले फूलों से बनने वाली सब्जी व रायता रोगनाशक होता है।जानकारों के अनुसार आयुर्वेद में शरीर के विकार को दूर करने में कैर व खींपोली बहुत लाभकारी है। यह भी पढ़ें :
देश विदेश में बढ़ रही राजस्थान के इस कड़वे फल की मांग, किसानों की हो रही अच्छी कमाई विदेशों में भी है मांग, आय का साधन भी
बरानी क्षेत्र में उगने वाली प्रमुख वनस्पतियों कैर, सांगरी, फोगला, फोफलिया, खेलरी आदि की न सिर्फ देश मे बल्कि विदेशों में भी अच्छी मांग है। ग्रामीण व किसान इनको सूखा कर महंगे दामो में बेचकर कमाई भी करते हैं। मांग के हिसाब से इन सूखी सब्जियों के दाम बहुत अच्छे मिल जाते हैं। सूखी सांगरी, कैर, फोगला आदि 500 से 1200 रुपए प्रति किलो तक बिकता है। इन स्वास्थ्यवर्धक पूर्णत: ऑर्गेनिक सब्जियों के शौकीनों के लिए ये कीमत कोई मायने नही रखती जिसके कारण टिब्बा क्षेत्र के कई किसान इन सब्जियों से अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं।
लोकगीतों और लोक पर्व में भी जिक्र
मरू वनस्पतियों का जिक्र राजस्थानी गीतों में भी मिलता है। खींपोली का जिक्र इनके लगने की ऋतु में राजस्थानी लोकपर्व गणगौर के गीतों में आता है। गणगौर पूजन के दौरान युवतियां व महिलाएं अक्सर ’’खींपोली ए म्हारी खींपा छाई तारा छाई रात गीत गाती हैं, वहीं राजस्थानी लोकगीत बाजरे की रोटी उन पर फोफलिया गो साग जी..आदि गीत भी काफी लोकप्रिय हैं।