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श्री गंगानगर

Fathers day special : ‘पिता को जरूरत पड़ी तो बेटे हो गए बेगाने’

श्रीगंगानगर.

श्री गंगानगरJun 16, 2019 / 03:12 pm

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Fathers day special : ‘पिता को जरूरत पड़ी तो बेटे हो गए बेगाने’

सुरेन्द्र ओझा
पिता खुदा की नेमत है, पिता समझ का दरिया। पिता से है छांव सिर पर, वह राहत का जरिया।। किसी शायर की इन पंक्तियों ने भी पिता के महान व्यक्तित्व के महत्व का रेखांकित किया है। एक मां बच्चे को जितना प्रेम करती है, उतनी ही चिंता पिता को भी होती है। बस फर्क इतना होता है कि मां के प्रेम का पलड़ा भारी होता है और पिता के सुरक्षात्मक रवैये का, जो कई बार बच्चों को कठोर लगने लगता है। मां हमेशा दुलारती है और पिता हमेशा आपको बनाते हैं, आपके व्यक्तित्व को संवारते हैं। बुजुर्ग पिता को उनके जीवन के अंतिम पड़ाव में दुत्कार मिले तब आप इसे क्या कहेंगे। ऐसे बुजुर्ग जिला मुख्यालय पर महावीर इंटरनेशनल के वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर हैं। इन बुजुर्ग पिताओं ने अपने बच्चों की गलती पर सिर्फ इतना कहा कि किसका मन नहीं करता अपनों के संग रहने का। जिस समय दवा और सहारे की जरूरत पड़ी तब अपने ही बेगाने हो गए…ऐसा कभी सोचा नहीं था।
यहां आकर कुछ सुकून मिला
गांव ततारसर निवासी मनीराम की आयु 82 पार हो चुकी है। इसके दो बेटे और दो बेटियां हैं। बेटियों की शादी हो चुकी है लेकिन बेटे अपने धंधे के कारण इस बुजुर्ग की सेवा नहीं कर पाए तो घर में रोजाना घरेलू कलह रहने लगा। पत्नी की मौत हो चुकी है। एकांकीपन के कारण उसकी नाती ने यहां वृद्धाश्रम में आकर उसे भर्ती करवा दिया है। यहां आकर वह सुकून महसूस करता है लेकिन बेटों ने आकर संभाला तक नहीं, यह अफसोस रहता है।
अब अपना तो रब
ही सहारा
पत्नी और बेटे की मौत के बाद खुद बीमार इतना हुआ कि दुकान और मकान को बेचना पड़ा। जब जिन्दगी बची तो जीवन चलाने के लिए कोई सहारा नहीं मिला। हरियाणा के फतेहाबाद जिले की डींग मंडी निवासी ओमप्रकाश की यह कहानी है। 79 साल के इस बुजुर्ग को उसके भतीजे एक साल में मिलने आते हैं। नजदीकी रिश्तेदारों ने भी कन्नी काट ली है। यह बुजुर्ग अपने एक टांग के हुए दर्द को कहराते हुए बताने लगा कि अब तो अपना रब ही सहारा है।
गुमनामी जीवन काटने को मजबूर : सैंकिण्ड ईयर साइंस तक पढ़े और सादुलशहर में आढ़त की दुकान का संचालन किया लेकिन किस्मत में अपनों का साथ दूर रहने लगा। नतीजन गुमनामी जीवन को बीताने को मजबूर हो गए। यह हकीकत है 70 साल आयु पार हो चुके राजेन्द्र प्रसाद की। 89 एल ब्लॉक श्रीगंगानगर निवासी राजेन्द्र प्रसाद अविवाहित है। उसके छह भाई थे, इसमें सबसे बड़ा इंकम टैक्स ऑफिसर था। अब न भाई आते हैं और न भतीजे। वृद्धाश्रम में चार साल से रह रहा है।
बेटों ने किया बेदखल तो यहां पहुंचा
पुरानी आबादी वार्ड 10 निवासी 76 वर्षीय मोहम्म्द फारूक रंगाई का काम करता था लेकिन उसके दो बेटों ने उसे बेदखल कर दिया। जब उसने पुरानी आबादी पुलिस को भी शिकायत की तो सुनवाई नहीं हुई। पत्नी को पहले ही तलाक दे चुके इस बुजुर्ग ने इस वृद्धाश्रम को अपना डेरा मान लिया है। वह बात करता करता मौजूदा सिस्टम को कोसने लगता है। उसका कहना है कि बेटे और बहुओं ने उसे ही बेदखल कर दिया तो वह क्या करता।
बुजुर्गों में आकर ऐसा रमा कि चार साल बीते
मीरा चौक निवासी किशनलाल की आयु 65 साल हो चुकी है। वह चार साल से इस वृद्धाश्रम में रह रहा है। उसके तीन बेटे हंै, तीनों अपनी अपनी गृहिस्थी में है। अपनी मर्जी से यहां आया तो बुजुर्गों को देखकर उनके साथ यहीं रहने लगा। लक्कड़मंडी में सैल्समैन रह चुके किशनलाल का कहना है कि वह लेखा कार्य भी करता है, आश्रम के हिसाब से किताब में सहयोगी के रूप में अपनी सेवाएं देता है।
यह तो जिन्दगी
का मेला साब
उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के उरई निवासी रामसिंह की आयु 94 साल हो चुकी है। उसकी पत्नी और एक बेटे की मौत के बाद भी उसने पुरानी आबादी सब्जी मंडी रेहड़ी लगाना नहीं छोड़ा लेकिन रिश्तेदारों ने कभी संभाला नहीं तो वह अकेला पड़ गया। बीमार ज्यादा रहने लगा तो उम्र के इस पड़ाव में कहां जाएं ऐसे में किसी ने उसे वृद्धाश्रम में पहुंचा दिया। भजन गाते गाते बोला कि साब, जिन्दगी का यह मेला है..सब कुछ यही रह जाना है..।

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