गेहूं, सरसों, जौ, चारे की बुवाई के बाद यूरिया के लिए जिले में जगह-जगह कतार नजर आती थी। कई बार तो कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगडऩे की नौबत भी आती थी। कृषि विभाग को बकायदा परमिट जारी करने पड़ते थे। इन तमाम तरह की परेशानियों से अब निजात मिल गई है।
कृषि अनुसंधान अधिकारी डॉ. मिलिन्द सिंह के अनुसार यूरिया का पेंट, वार्निश, एसी प्लांट, लेदर जैसे कुछ गैर कृषि कार्यों में इस्तेमाल होता था। इस कारण कई बार किसानों की जरूरत के हिसाब से उपलब्धता कम हो जाती थी। परिवहन में देरी जैसे कई अन्य कारण भी कतार लगने की वजह बनते थे लेकिन जब से यूरिया को नीम लेपित किया गया है, कमी की समस्या पूरे राज्य में कहीं नजर नहीं आती।
हुए हैं कई लाभ
यूरिया को नीम लेपित करने से कई लाभ हुए हैं। गैर कृषि कार्यों में इस्तेमाल बंद हो गया साथ ही इसकी खेती में उपयोगिता दक्षता भी बढ़ी है। कृषि अनुसंधान अधिकारी डॉ. मिलिन्द सिंह के मुताबिक रिसाव से होने वाला नुकसान कम हो गया है। पहले वायुमंडल में वाष्पन के माध्यम से अमोनिया की हानि होती थी, अब ऐसा नहीं होता। नीम लेपित होने से पौधों को नाइट्रोजन धीरे-धीरे उपलब्ध होने से पूरा सदुपयोग होता है।
यही है पहली पसंद
नाइट्रोजन की मांग पूरी करने के लिए यूरिया ही पहली पसंद है। इसमें 46 प्रतिशत नाइट्रोजन पाई जाती है। इससे पौधे की वृद्धि, बढ़वार होती है। हरापन आता है। यूरिया सस्ता एवं सुलभ भी है। इसमें नाइट्रोजन एमाइड के रूप में पाई जाती है, पौधे नाइट्रेट के रूप में ग्रहण करते हैं। नाइट्रोजन की मात्रा अमोनिया सल्फेट में 20 प्रतिशत तथा केल्सियम अमोनिया नाइट्रेट (किसान खाद) में 25 प्रतिशत होती है।