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उन्होंने बताया कि फलों की तुड़ाई के बाद कंटाई-छंटाई अच्छी तरह करवानी चाहिए। पूरे पेड़ को पर्याप्त हवा एवं प्रकाश मिले यह सुनिश्चित करने के लिए एक टहनी कटवाने की जरूरत हो तो कटवानी चाहिए। गुल्ले एवं सूख नहीं रहनी चाहिए। उलझी हुई टहनियां आपस में रगड़ खाकर नुकसान पहुंचाती है, ऐसी टहनियों को सही करना चाहिए।
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डॉ. कौल के अनुसार क्षेत्र के कई बागों में सिट्रस सिल्ला एवं पेड़ पर बेल चढऩे से नुकसान हुआ है। अपने निरीक्षण के समय उन्होंने ऐसे कई पेड़ देखे और उनके पास की मिट्टी खुदवा कर बचाव के उपाय किसानों को बताए। उन्होंने कहा कि किन्नू के पेड़ एवं पौधे के नीचे घास नहीं रहनी चाहिए। सिफारिश के अनुसार गोबर की खाद, सुपर फास्फेट, पोटाश, मैग्नीज, फेरस सल्फेट डालने चाहिए।
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डॉ. कौल ने बताया कि बाग में अधिक पानी देने से लाभ के बजाए नुकसान होता है। पौधे-पेड़ की उम्र और जरूरत के हिसाब से पानी देना चाहिए। तने से पानी नहीं छूना चाहिए। पेड़ की ऊंचाई 10 फीट से ज्यादा नहीं होने देनी चाहिए। समय-समय पर मिट्टी एवं पानी की जांच भी करवानी चाहिए।