घोषणा से लगा झटका किसानों से संबंधित कई मांगों को लेकर किसान संगठनों ने 9 अगस्त को जिले भर में गिरफ्तारी दी। सर्वाधिक गिरफ्तारियां जिला मुख्यालय पर हुई और इसका श्रेय गया गंगनहर किसान समिति को। इसी दिन अखिल भारतीय किसान सभा के एक नेता ने 1 सितम्बर से श्रीगंगानगर में बेमियादी महापड़ाव की घोषणा कर दी जबकि एेसा कोई निर्णय सामूहिक रूप से नहीं हुआ था। गंगनहर किसान समिति के प्रवक्ता संतवीरसिंह मोहनपुरा ने जब इस घोषणा के बारे में मकपा के पूर्व विधायक हेतराम बेनीवाल से पूछा तो उन्होंने भी एेसी किसी घोषणा से अनभिज्ञता जताई। दरअसल सरकार को घेरने के लिए प्रदेश के कई जिला मुख्यालयों पर बेमियादी महापड़ाव डालने की योजना जयपुर में चल रही थी। माकपा नेता अमराराम इसके लिए किरोड़ीलाल मीणा और हनुमान बेनीवाल के संपर्क में थे। अभी बेमियादी महापड़ाव पर कोई निर्णय नहीं हुआ था और श्रीगंगानगर में इसकी घोषणा हो गई। किसान आंदोलनों से लगातार जुड़ी किसान संघर्ष समिति और गंगनहर किसान समिति ने प्रदेश स्तर पर कोई निर्णय होने से पहले आंदोलन की घोषणा करने पर गहरी आपत्ति जताए हुए स्वयं को बेमियादी महापड़ाव से अलग कर लिया है। माकपा नेता बेनीवाल अब भी यह बात कह रहे हैं कि बेमियादी महापड़ाव का निर्णय जयपुर स्तर पर होना था और अब तक कोई निर्णय नहीं हुआ।
पदमपुर पर हुआ विवाद अखिल भारतीय किसान सभा के पदमपुर में गिरफ्तारी के कार्यक्रम में पूर्व मंत्री गुरमीतसिंह कुन्नर का सहयोग लेने पर भी विवाद हुआ जो अब काफी गहरा गया है। कुन्नर का सहयोग लेने पर गंगनहर किसान समिति के दो कार्यकर्ताओं ने भारतीय किसान सभा के एक नेता पर टिप्पणी कर दी। इस पर उस नेता ने उन दोनों कार्यकताओं को गंगनहर किसान समिति के दो नेताओं का मरासी बता दिया। सोशल मीडिया पर इसे लेकर काफी विवाद हुआ तो भारतीय किसान सभा के उस नेता ने छह माह के लिए व्हाट्स गु्रप को अलविदा कह दिया।
दूरियां इसलिए बढ़ी किसान संगठनों के बीच बड़े विवाद की वजह पूछे जाने पर गंगनहर किसान समिति के प्रवक्ता संतवीर सिंह मोहनपुरा ने बताया कि हमारा संगठन गैर राजनीतिक है और हमने इसे किसानों के हित में उन्हीं के फायदे के लिए बनाया है। लेकिन अखिल भारतीय किसान सभा राजनीतिक पार्टी से जुड़ा हुआ संगठन है। इसके कई नेता महत्वाकांक्षी हैं और किसान आंदोलन का राजनीतिक फायदा उठाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने हेतराम बेनीवाल जैसे उस नेता को भी दरकिनार कर दिया जिसे आंदोलनों का पचास साल से भी अधिक पुराना अनुभव है। एेसे संगठनों और उससे जुड़े लोगों से दूरियां बढऩा स्वाभाविक है जो किसान आंदोलन को विधानसभा तक पहुंचने की सीढ़ी बनाना चाहते हैं।