किसी पिता को बेटों के लिए नहीं लिखना पड़े ऐसा शपथ पत्र
बेटों से न्याय की लड़ाई में हारे पिता की व्यथा
– जमीन नाम लगाते ही अपने हो गए बेगाने – ब्लड कैंसर से जूझते पिता की सुध तक नहीं ली श्रीगंगानगर. बीस रुपए के स्टाम्प पेपर पर एक पिता की यह शपथपूर्वक घोषणा मात्र दो-ढाई सौ शब्द नहीं। इन शब्दों में छिपी है दरकते रिश्तों की पीड़ा जो वर्तमान में कई मां-बाप भोग रहे हैं। बेटों की उपेक्षा के शिकार मनीराम राबिया का मौत से कुछ समय पहले लिखा हुआ यह शपथ पत्र उन पिताओं के लिए नसीहत है जो मोहवश अपना सब कुछ बेटों के नाम कर देते हैं। इस बुजुर्ग ने ऐसा ही किया था। बेटों के कहने पर अपनी पच्चीस बीघा नहरी भूमि उन्हें उपहार में दे दी।
उपहार में बेशकीमती जमीन मिलने पर छह महीने तक तो बेटों का रवैया पिता के साथ अपनी मां सुन्दर देवी के साथ ठीक-ठाक रहा। उसके बाद तो तीनों बेटों को बुजुर्ग मां-बाप बोझ लगने लग गए। एक के बाद एक तीनों बेटों के घरों के दरवाजे बंद हुए तो इस बुजुर्ग दम्पती को पांच साल तक बेटों के खिलाफ लड़ाई लडऩी पड़ी। कहानी का दुखद पहलू यह है कि इसमें हार हुई उस पिता की जो बेटों के साथ-साथ ब्लड कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से लड़ रहा था।
अनूपगढ़ तहसील के गांव १५ ए के मनीराम राबिया की मृत्यु १५ अक्टूबर को हो गई। मृत्यु से कुछ समय पहले ही उसने शपथ पत्र में अंतिम इच्छा के साथ वह लिखवाया जो बेटों को उपहार में जमीन देने के बाद उसने अपनी पत्नी के साथ भोगा। बेटों ने अन्याय किया तो शासन प्रशासन ने भी उसके साथ न्याय नहीं किया। बेटों के घरों के दरवाजे बंद हुए तो पति-पत्नी कभी अनाथ आश्रम में रहे तो कभी दो बेटियों और रिश्तेदारों के यहां। पिता की मौत हुई तो एक बेटा अंतिम संस्कार के लिए आया, जिसे बेटियों और रिश्तेदारों ने अंतिम संस्कार से पहले लौटा दिया। पिता ने देहांत के बाद बेटों और पौत्रों को किसी भी रस्म में शामिल नहीं होने देने का उल्लेख शपथ पत्र में किया था सो रिश्तेदारों ने उस इच्छा का मान रखते हुए दोनों बेटियों से सभी रस्में पूरी करवाई।
न्याय के लिए धरना बेटों ने घर से निकाल दिया तो मनीराम राबिया और उनकी पत्नी सुन्दर देवी के सामने रोटी और आवास दोनों की समस्या खड़ी हो गई। ब्लड कैंसर जैसी बीमारी के लिए नियमित दवा का सेवन भी जरूरी था। तब इस बुजुर्ग दम्पती ने गांव १५ ए के पुराने घर को अपना ठिकाना बनाया। रोटी की समस्या के समाधान के लिए दम्पती ने पंद्रह दिन तक अनूपगढ़ में उपखंड अधिकारी कार्यालय पर धरना दिया तब समाज के लोगों ने आगे आकर तीनों बेटों से पंद्रह-पंद्रह सौ रुपए के हिसाब से प्रतिमाह ४५०० रुपए गुजारा भत्ता दिलाने का फैसला उपखंड अधिकारी से करवाया। लेकिन यह व्यवस्था कुछ दिन ही चली।
गुजारा भत्ता नहीं मिलने पर बुजुर्ग दम्पती ने बेटों को उपहार में दी जमीन वापस दिलाने के लिए उपखंड अधिकारी से लेकर जिला कलक्टर तक गुहार लगाई। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला भी बुजुर्ग दंपती के काम नहीं आया। गौरव यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री को आखिरी ज्ञापन दिया पर वह ज्ञापन शायद सैकड़ों ज्ञापनों के ढेर में कहीं दब गया।
न्याय के लिए धरना बेटों ने घर से निकाल दिया तो मनीराम राबिया और उनकी पत्नी सुन्दर देवी के सामने रोटी और आवास दोनों की समस्या खड़ी हो गई। ब्लड कैंसर जैसी बीमारी के लिए नियमित दवा का सेवन भी जरूरी था। तब इस बुजुर्ग दम्पती ने गांव १५ ए के पुराने घर को अपना ठिकाना बनाया। रोटी की समस्या के समाधान के लिए दम्पती ने पंद्रह दिन तक अनूपगढ़ में उपखंड अधिकारी कार्यालय पर धरना दिया तब समाज के लोगों ने आगे आकर तीनों बेटों से पंद्रह-पंद्रह सौ रुपए के हिसाब से प्रतिमाह ४५०० रुपए गुजारा भत्ता दिलाने का फैसला उपखंड अधिकारी से करवाया। लेकिन यह व्यवस्था कुछ दिन ही चली।
गुजारा भत्ता नहीं मिलने पर बुजुर्ग दम्पती ने बेटों को उपहार में दी जमीन वापस दिलाने के लिए उपखंड अधिकारी से लेकर जिला कलक्टर तक गुहार लगाई। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला भी बुजुर्ग दंपती के काम नहीं आया। गौरव यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री को आखिरी ज्ञापन दिया पर वह ज्ञापन शायद सैकड़ों ज्ञापनों के ढेर में कहीं दब गया।