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स्टार्टअप में सौ फीसदी एफडीआई के फायदे हैं तो खतरे भी कम नहीं

Published: Sep 09, 2017 03:35:00 pm

Submitted by:

Mazkoor

सरकार ने स्टार्टअप के क्षेत्र में शत-प्रतिशत एफडीआई की मंजूरी देकर इसमें नए सिरे से जान फूंकने की कोशिश की है।

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स्टार्टअप इंडिया की शुरुआत 21 महीने पहले बड़े धूमधाम से हुई थी, पर उस स्तर पर उसे सफलता नहीं मिली जैसा अनुमान लगाया गया था। अब सरकार ने शत-प्रतिशत एफडीआई की मंजूरी देकर नए सिरे से इसमें जान फूंकने की कोशिश की है। सरकार की ये पहल दुधारी तलवार की तरह है। इससे स्टार्टअप्स इंडिया के को-फाउंडर्स के लिए फंडिंग हासिल करना आसान होगा, लेकिन इससे कई नुकसान भी हो सकते हैं।
नई फॉरेन इन्वेस्टमेंट पॉलिसी (एफडीआई) में पहली बार सरकार के एजेडों में स्टार्टअप्स सेक्टर को टॉप पर रखा गया है। इसके लिए अलग से एक सेक्शन बनाया गया है। इसमें फॉरेन वेंचर कैपिटल इनवेस्टर्स व अन्य इनवेस्टर्स के जरिए 100त्न विदेशी निवेश का प्रावधान शामिल हैं। अब नवाचार उद्यमी 25 लाख रुपए का कन्वर्टिवल नोट्स जारी कर फंड जुटा सकते हैं। इक्विटी या इक्विटी लिंक्ड बॉन्ड जारी कर सकते हैं। एफडीआई ऑटोमैटिक रूट के तहत नहीं आने की स्थिति में सरकार से मंजूरी लेकर कन्वॢटबल नोट्स जारी कर सकते हैं।

इकोसिस्टम की तैयारी
स्टार्टअप इंडिया को सफल बनाने के लिए सबसे बड़ी जरूरत तो अमरीका, इजरायल, कनाडा, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों की तरह बेहतर इकोसिस्टम डवलप करने की थी। लेकिन सरकार ने तेजी से स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए सौ फीसदी निवेश पर अमल करना ज्यादा बेहतर समझा। इससे आगे बढऩे में तो मदद मिलेगी, लेकिन इस अवसर का पूरा लाभ उठाने के लिए सरकार को ईज ऑफ बिजनेस डूइंस की पॉलिसी पर अमल करना होगा। इसके लिए न केवल लालफताशाही पर अंकुश लगाने की जरूरत है, बल्कि युवा उद्यमियों को जरूरी वित्तीय अनुदान भी मुहैया कराना आवश्यक होगा।

आयात-निर्यात संतुलन बिगडऩे का खतरा
भारत में वर्तमान में स्टार्टअप्स की संख्या करीब 10,000 है। योजना इसे 2020 तक 1,00,000 तक पहुंचाने की है। विदेशी निवेश ज्यादा होने पर जो खतरा भारतीय रिटेल सेक्टर के समक्ष है, उसी का सामना स्टार्टअप इंडिया को भी करना पड़ सकता है। क्योंकि नवाचार का क्षेत्र विदेशी धन्ना सेठों के हाथ में जाने से मुनाफे का पैसा विदेश चलाएगा। इससे देश का आयात-निर्यात का संतुलन बिगड़ सकता है। फिलहाल इससे निपटने के लिए सरकार के पास कोई पूर्व नियोजित रणनीति ही नहीं है।

डीआईपीपी बनी नोडल एजेंसी
नई एफडीआई पॉलिसी के हिसाब से डीआईपीपी अब नोडल या प्रशासनिक मंत्रालय की तरह काम करेगी। बीते डेढ़ साल से ज्यादा समय में डिफेंस, सिविल एविएशन, कंस्ट्रक्शन और डवलपमेंट समेत दर्जन भर सेक्टर्स में एफडीआई पॉलिसी को इसी के तहत बदला गया है। उक्त अनुभव के आधार पर ही नवाचार के सभी क्षेत्रों में 100% निवेश को मंजूरी दी गई है और इसमें डीआईपीपी की अहम भूमिका होगी।

किसे मिलेगा लाभ
अब भारतीय स्टार्टअप्स उद्यमी ज्यादा से ज्यादा वीसी इन्वेस्टर्स फंड जारी करने के लिए प्रोत्साहित होंगे। एनआरआई भी नॉन-रीप्रेट्रिएशन आधार पर कन्वर्टिबल नोट्स ले सकते हैं। निवेश की सीमा समाप्त होने से वित्तीय संकटों का सामना नहीं करना पड़ेगा। सरकार का हस्तक्षेप पहले की तुलना में कम होंगे। भारतीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।

100% एफडीआई इसलिए है जरूरी
बिना 100% एफडीआई के भारत वह तकनीक हासिल नहीं कर सकता, जो हमारी सेना या अन्य क्षेत्रों में युवा उद्यमियों को को चाहिए। क्योंकि इनमें से ज्यादातर तकनीक आईपीआर के दायरे में आती हैं। जब तक हथियार निर्माताओं को भारत आने की इजाजत नहीं दी जाएगी, तब तक हम अत्याधुनिक तकनीक हासिल नहीं कर पाएंगे।

पेटेंट फीस में 80% की छूट
नए नियमों के मुताबिक योग्य स्टार्टअप्स अब पेटेंट फीस में 80त्न का रियायत हासिल कर सकते हैं। स्टार्टअप्स की ओर से डीआईपीपी कॉस्ट का भुगतान करेगा व फाइ***** की एप्लिकेशन के लिए स्टेट्यूटरी फीस में भी रियायत उपलब्ध कराएगा। मार्च 2018 के बाद पेटेंट अवधि में कटौती की जाएगी।

रिटेल सेक्टर में लाना होगा निवेश
वर्तमान में देशभर में लगभग दो करोड़ खुदरा कारोबारी हैं। इसका बाजार तकरीबन 255 खरब रुपए से भी ज्यादा का है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का करीब 33% है। अगर भारतीय खुदरा बाजार की बात करें तो यहां अभी तक *****ंगठित क्षेत्र का दबदबा है और कुल बिक्री के 94% में अ संगठित क्षेत्र की ही भागीदारी होती है। इन क्षेत्र में करीब 4 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इसलिए इस क्षेत्र में सौ फीसदी निवेश की अनुमति देने से पहले सरकार को यह सोचना पड़ा है कि अगर इन 4 करोड़ लोगों के बजाए 4 या 5 धन्ना कंपनियों को रोजगार दे दिया जाएगा तो क्या इससे देश का भला होगा? अगर ऐसा हुआ तो भारतीय दुकानों को अपना बोरिया-बिस्तर समेटना पड़ सकता है। फिलहाल औद्योगिक नीति एवं संवद्र्घन विभाग (डीआईपीपी) ने एफडीआई से जुड़े जिन व्यापक मुद्दों पर चर्चा पत्र पेश किया है और उस पर सभी अंशधारकों से राय जानने का काम बाकी है। उसके बाद ही तस्वीर पूरी तरह स्पष्ट होगी।

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