scriptमंच पर थिएटर, डांस और फोक म्यूजिक का अद्भुत संगम | Amazing confluence of theater, dance and folk music on stage | Patrika News

मंच पर थिएटर, डांस और फोक म्यूजिक का अद्भुत संगम

locationजयपुरPublished: Nov 21, 2018 07:06:25 pm

Submitted by:

Anurag Trivedi

जेकेके में आयोजित दो दिवसीय नाट्य संध्या ‘फुहार’ का समापन, नाटक ‘पति गए री काठियावाड’ और ‘नुगरा का तमासाÓ का प्रभावी मंचन

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मंच पर थिएटर, डांस और फोक म्यूजिक का अद्भुत संगम

जयपुर. पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र उदयपुर और क्युरियो परफ ॉर्मिंग आर्ट सोसाइटी की ओर से आयोजित राष्ट्रीय नाट्य संध्या ‘फुहार’ का समापन हुआ। जेकेके के सहयोग से हुए इस कार्यक्रम की शुरुआत निधि तिवारी कि नटराज वंदना पर नृत्य प्रस्तुति से हुई। इसके बाद दिल्ली कि स्पर्श नाट्य रंग संस्था के सुधीर कुलकर्णी द्वारा अनुवादित और अजीत चौधरी निर्देशित नाटक ‘पति गए री काठियावाड’ का मंचन किया गया।
नाटक कि कहानी पूना के पास के एक गांव भांबुर्दा की है, जहां सूबेदार सर्जेराव सालाना वसूली के लिए लंबे समय के लिए काठियावाड की योजना बनाते हैं। एेसे में उनकी पत्नी जानकी सूबेदार की गैर मौजूदगी में कुछ काम करने कि इच्छा जाहिर करती है। हंसी-हंसी में सर्जेराव अपनी गैर मौजूदगी में एक वारिस और एक शीशमहल बनवाने की मांग रखते है, वो भी बिना रुपयों के खर्च हुए। अपने पति के मजाक को गंभीरता से लेते हुए जानकी अपनी दासी से मिलकर किस तरह अपने पति कि मांग को पूरा करती है। इसके बाद शुरू होता है, पति-पत्नी के विश्वास और रिश्तों के बिगडऩे का खेल। नाटक में दिखाया गया है कि विश्वास ही दाम्पत्य जीवन के मूल में है, साथ ही यह नाटक पुरुष प्रधान समाज कि छवि को भी दर्शाता है। नाटक में राजेन्द्र शर्मा, कर्नल धीरेन्द्र गुप्ता, अपूर्वा चौधरी, नितिन गुप्ता, सौरभ पांडे, अंजू और मनोज ने बेहतरीन अभिनय से तालियां बटोरी।
लोक कला के रंग
अंतिम दिन कि दूसरी प्रस्तुति रंगायन सभागार में राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष अशोक पांड्या के लोक गायन की रही, जिसमें उन्होंने राजस्थानी परम्परा के लोक गीतों को बड़े ही सहज अंदाज में सुनाकर दाद पाई। इसके बाद कला मंडली के सुमन कुमार के निर्देशन में नाटक ‘नुगरा का तमाशा’ प्रस्तुत हुआ। विजयदान देथा के देशज लोक कथा पर आधारित यह नाटक कई रोचक तथ्यों को प्रस्तुत करता है। नाटक मंे दिखाया गया कि अलबेला के जन्म लेते ही ज्योतिषियों ने एलान किया कि अगर अलबेले ने 6 साल से 24 साल की उम्र तक किसी कुंवारी कन्या का मुख देखा तो सांप डस लेगा। एेसे में अलबेले का ब्याह 4 साल की उम्र में ही कर दिया और दुल्हन को २४ साल का होने तक उसके घर में बंद करके रखा जाता है। जब अलबेला अपनी दुल्हन को गौना करवाकर लाने को जाता है, तब शुरू होता है असली खेल।
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