सिंगरौली रीजन में वन क्षेत्र की बहुलता है। यहां प्राकृतिक औषधियों की भरमार है। आयुर्वेदिक डॉक्टरों के लिए रिसर्च की अनुकूल परिस्थितियां हैं। इसके बावजूद प्रदेश सरकार आयुर्वेद को लेकर गंभीर नहीं है। यहां वर्षो पहले आयुष विभाग की एक क्लीनिक नवजीवन बिहार सेक्टर नंबर एक विंध्यनगर में खोली गई। इसके साथ ही सरई, खुटार, माड़ा, करौंटी, चरगोड़ा, देवरीबांध सहित 1४ स्थानों पर छोटी-छोटी डिस्पेंशरी बना दी गई।
इसमें जो पद डॉक्टरों के स्वीकृत किए गए थे वह 8 ० फीसदी खाली पड़े हैं। ये डिस्पेंशरी केवल आउटडोर जैसी हैं। इनमें मरीज को भर्ती कर उपचार की सुविधा तक नहीं है। स्थिति ये है कि जिला आयुष अधिकारी का पद भी प्रभार पर है। आयुर्वेद के विशेषज्ञों का कहना है कि यह बड़ी बिडंबना है कि रीवा संभाग में एक आयुर्वेद कॉलेज है। जहां से हर साल 60 डॉक्टर तैयार होते हैं। लेकिन इनकी सेवाएं संभाग के सिंगरौली जिले को नहीं मिल पाती हैं। दरअसल, रीवा को छोड़ दें तो आयुर्वेद चिकित्सा को बढ़ावा देने की दिशा में प्रदेश सरकार ने कोई काम नहीं किया है।
कमियां महसूस कर रहे लोग
सिंगरौली में अगर एक अदद जिला स्तरीय आयुर्वेद औषधायल खुल जाता तो आयुर्वेद चिकित्सा को यहां बढ़ावा मिलता। लंबे समय से इसकी कमी जिले के वाशिंदे महसूस कर रहे हैं। प्रदूषित होने के कारण यह क्षेत्र बीमारियों का गढ़ है। लम्बे समय तक लोग एलोपैथी इलाज कराते हैं। जिससे साइड इफेक्ट भी होता है। मर्ज ठीक न होने पर मरीज के पास दूसरा विकल्प होना चाहिए। जो आयुर्वेद है, लेकिन यहां पर औषधालय नहीं होने के कारण मरीज को उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड तक इलाज के लिए जाना पड़ता है।
सिंगरौली में अगर एक अदद जिला स्तरीय आयुर्वेद औषधायल खुल जाता तो आयुर्वेद चिकित्सा को यहां बढ़ावा मिलता। लंबे समय से इसकी कमी जिले के वाशिंदे महसूस कर रहे हैं। प्रदूषित होने के कारण यह क्षेत्र बीमारियों का गढ़ है। लम्बे समय तक लोग एलोपैथी इलाज कराते हैं। जिससे साइड इफेक्ट भी होता है। मर्ज ठीक न होने पर मरीज के पास दूसरा विकल्प होना चाहिए। जो आयुर्वेद है, लेकिन यहां पर औषधालय नहीं होने के कारण मरीज को उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड तक इलाज के लिए जाना पड़ता है।
स्टॉफ नहीं, रोग नियंत्रण का दावा
सरकार की कथनी करनी तो देखिए…जिले की आयुर्वेद डिस्पेंशरियों में स्टॉफ नहीं है पर वह दावे खूब करती है। उच्च रक्तचाप, आमवात संधिवात, मधुमेह, अर्श, रक्तापता, मलेरिया, डेंगू और स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियों पर नियंत्रण की बात आयुर्वेद चिकित्सा के बलबूते की जा रही हैं। यहां तक कि कुपोषण से मुक्ति में भी आयुर्वेद को ही तरजीह दी जा रही है। पर सवाल ये है कि जब कोई करने वाला है नहीं, तो यह संभव हो कैसे रहा है। रिपोर्टें केवल कागजी बनाकर जनता से छलावा किया जा रहा है।
सरकार की कथनी करनी तो देखिए…जिले की आयुर्वेद डिस्पेंशरियों में स्टॉफ नहीं है पर वह दावे खूब करती है। उच्च रक्तचाप, आमवात संधिवात, मधुमेह, अर्श, रक्तापता, मलेरिया, डेंगू और स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियों पर नियंत्रण की बात आयुर्वेद चिकित्सा के बलबूते की जा रही हैं। यहां तक कि कुपोषण से मुक्ति में भी आयुर्वेद को ही तरजीह दी जा रही है। पर सवाल ये है कि जब कोई करने वाला है नहीं, तो यह संभव हो कैसे रहा है। रिपोर्टें केवल कागजी बनाकर जनता से छलावा किया जा रहा है।