भाई व पत्नी के साथ हैं भगवान राम
हर्ष स्थित दो मूर्तियों में एक में भगवान राम भाई लक्ष्मण के साथ खड़े हैं। उनके सिर पर मुकुट व हाथ में धनुष व बाण है। माला पहले भगवान राम इस मूर्ति में राजा के रूप में दर्शाए गए हैं। इसी तरह दूसरी मूर्ति में वे पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण के साथ नाव में खड़े हैं। उनके हाथ में नाव चलाने का चंपू है। पुरातत्व वेत्ता गणेश बेरवाल ने बताया कि ये मूर्तियां हमारी सांस्कृतिक धरोहर है।
इसलिए है सबसे पुरानी
दोनों तस्वीर उपलब्ध करवाने वाले पुरातत्ववेत्ता गणेश बेरवाल ने बताया कि भगवान राम व कृष्ण को विष्णु का अवतार काफी पहले से माना गया था। मूर्ति रूप में उनकी व्यापक पूजा 15वीं सदी में रामनुजाचार्य की शिष्य परंपरा में 14वीं पीढ़ी के शिष्य स्वामी रामानंद के बाद शुरू हुई। यही वजह है कि 15वीं सदी से पहले की भगवान राम की मूर्ति बेहद दुर्लभ है। हर्ष से 10वीं सदी में मिली ये राम की मूर्ति सबसे पुरानी कही जा सकती है।
चौहान राजा ने 961 में रखी थी मंदिर की नींव
इतिहासविदों के अनुसार हर्ष का संबंध पौराणिक काल से माना जाता है। मान्यता है कि वृत्तासुर संग्राम में इंद्र बाकी देवताओं के साथ इसी पहाड़ पर छुपे थे। उसे मारने पर देवताओं की हर्ष से की गई भगवान शिव की स्तुति के कारण ही इस पर्वत शिखर का नाम हर्ष कहलाया। जय हर्षनाथ- जय जीण भवानी पुस्तक के अनुसार अजमेर सांभर के चौहान वंश के शासक सिंहराज ने विक्रम संवत 1018 यानी सन 961 में हर्षनाथ के रूप में शिव मंदिर की नींव रखी। संवत 1030 में लोकार्पण के साथ पहाड़ की गोद में हर्षा नगरी बसाई गई। इतिहासकार डा. सत्यप्रकाश ने इसे अनन्ता नगरी भी कहा। यहां सदा बहने वाली चंद्रभागा नदी भी थी। मंदिर का निर्माण सुहास्तु के सलाहकार सांदीपिता के मार्गदर्शन में वास्तुकार वाराभद्र ने वैज्ञानिक ढंग से किया था।