-अब तक के कुल 16 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां सात, और भाजपा ने चार चुनावों में जीत हासिल की है। वहीं, जनता दल, जनता पार्टी, बीजेएस, बीएलडी, और आरआरपी एक- एक बार जीत का स्वाद चख चुकी है।
-1951 के पहले आमचुनाव में आरआरपी के नंदलाल ने कांग्रेस के बजाज कमल नयन जमना लाल को 4 हजार 185 मतों से हराया, तो 1957 में कांग्रेस के रामेश्वर टांटनिया ने निर्दलीय प्रतिद्वंदी सागर मल को 9 हजार 663 मतों से हराया। -1962 में भी कांग्रेस के रामेश्वरलाल टांटनिया ने ही जीत का अंतर बढ़ाते हुए 33 हजार 107 मतों से जीत हासिल की। -1967 में यही रामेश्वर टांटनिया बीजेएस के एस साबू से 20 हजार 160 मतों से उस समय हार गए, जब इंदिरा गांधी कांग्रेस की नेतृत्वकर्ता बनी। हालांकि 1971 में कांग्रेस के श्रीकिशन ने फिर बीजेएस के सुरेन्द्र कुमार तापडिय़ा को 1 लाख 33 हजार 909 से हरा दिया। लेकिन, 1977 में श्रीकिशन बीएलडी के जगदीश प्रसाद माथुर से 1 लाख 57 हजार 193 के भारी मतों से पराजित हो गए। इसके बाद सीकर की जनता ने 1980 में किसान नेता कुंभाराम आर्य को 34 हजार 132 से आगे कर फिर कांग्रेस के श्रीकिशन को पछाड़ दिया।
-1984 में कांग्रेस के दिग्गज नेता बलराम जाखड़ ने यहां से चुनाव लड़ा। जिन्होंने भाजपा के घनश्याम तिवाड़ी को 1 लाख 79 हजार 559 मतो से हराकर लोकसभा में अध्यक्ष पद भी संभाला। लेकिन, इसके अगले चुनाव यानी 1989 के चुनाव में हरियाणा में ताऊ नाम से प्रसिद्ध चौधरी देवीलाल ने जनता दल से चुनाव लडकऱ बलराम जाखड़ को 46 हजार 756 मतों से शिकस्त दे दी। और देश के उप प्रधानमंत्री का पद भी हासिल किया।
-हालांकि 1991 में भाजपा के हरलाल सिंह खर्रा को 1 लाख 10 हजार 685 मतों से हराकर बलराम जाखड़ ने फिर से वापसी की। जिस पर पीवी नरसिम्हाराव सरकार में देश के कृषि मंत्री का प्रभार भी मिला।
-इसके बाद 1996 मेें भी यह सीट हरि सिंह ने सुभाष महरिया को 38 हजार 9 मतों से हराकर कांग्रेस से फिसलने नहीं दी। लेकिन केंद्र में अटल बिहारी वाजपयी की 13 दिन की सरकार के बाद रहे अल्पकालीन सरकारों के दौर के बाद 1998 के चुनाव में यहां स्थिति बिल्कुल उलट हो गई। भाजपा के सुभाष महरिया के पक्ष में बाजी पलटते हुए जनता ने हरिसिंह को 41 हजार 322 मतों से हरा दिया। महरिया की जीत का यह सिलसिला 1999 और 2004 के चुनाव में भी जारी रहा।
-1999 में महरिया ने 28 हजार 173 मतों से कांग्रेस के बलराम जाखड़ को शिकस्त दे दी। तो 2004 में कांग्रेस के दिग्गज नेता नारायण सिंह को 54 हजार 683 मतों से हराने के बाद ग्रामीण विकास मंत्री भी बने। यही वो चुनाव भी था, जिससे पहले अटल बिहारी वाजपयी ने सीकर से ओबीसी को आरक्षण दिए जाने की घोषणा भी की थी। लगातार तीन जीत के बाद सुभाष महरिया हालांकि 2009 में कांग्रेस के महादेव सिंह खंडेला से एक लाख 49 हजार 443 मतों से हार गए। महरिया को हराने वाले महादेव सिंह खंडेला को मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय सडक़ एवं परिवहन राज्य मंत्री की जिम्मेदारी भी सौंपी गई।
-इसके बाद 2014 के पिछले चुनाव में फिर यहां की जनता ने शिक्षक से संत बने सुमेधानंद सरस्वती पर विश्वास जताया और मोदी लहर में भाजपा से टिकट मिलने पर 2 लाख 39 हजार 196 मतों से सांसद बना दिया।