वे हिटलर के खिलाफ द्वितीय विश्व युद्ध में विजेता रहे। उनका युद्ध के दौरान तीन साल तक घर वालों से कोई संपर्क नहीं हुआ। अंत तक मस्तिक पर गोली का निशान भी था। पिता हरी सिंह ने 1962 भारत-चीन,1965 व 1971 भारत-पाक युद्ध विजेता रहे है।
उत्तरी बंगाल के दिनाजपुर जिले में तैनात सज्जन सिंह ने बताया कि 12 अप्रेल 2015 को 171वीं बटालियन के कंपनी ऑपरेटिंग बेस छोटेबेटिया से पैदल गश्त के लिए निकले दल में शामिल थे। इस दल पर नक्सलियों ने घात लगाकर हमला कर दिया। मुख्य आरक्षक रमेश चंद के साथ दल की अग्रिम पंक्ति में शामिल मुख्य आरक्षक महावीर सिंह की टुकड़ी पर भारी तादाद में फायर आया।
पार्टी कमांडर मुख्य आरक्षक रमेश चंद के घायल होने के बाद की जवाबी कार्रवाई में दल की अग्रिम पंक्ति में तैनात सज्जन सिंह ने अपनी हिम्मत, रणचातुर्य और आयुष कौशल से नक्सलियों के हौसले पस्त कर दिए। सज्जन सिंह द्वारा प्रदर्शित टीम भावना, ओजपूर्ण सामरिक कार्रवाई एवं रणक्षेत्र में शौर्य के अनुपम प्रदर्शन से आभारी राष्ट्र ने सीमाओं के इस सजग प्रहरी को वीरता के लिए राष्ट्रपति ने पदक देकर सम्मानित किया।
स्वतंत्रता संग्राम की कहानी सेनानियों की जुबानी
2 अक्टूबर को गांधी जयंति के साथ ही अपना 100वां जन्म दिन मनाने का इंतजार कर रहे पुरोहित का बास निवासी स्वतंत्रता सेनानी भींव कल्याण महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रह चुके हैं।
मकराना से गुजरात के विभिन्न इलाकों में उनक साथ पैदल यात्रा कर स्वतंत्रता आंदोलन की अलख जगाने वाले भींव बताते हैं कि बहुत सी जगह गांधी जी के भाषण का विरोध होता था। उन्हें सुनकर लोग उन्हें सिरफिरा कहकर वहां से चले जाते थे। लेकिन, वे फिर भी यह कहकर बोलते रहते कि मुझे दीवार, पेड़-पौधे व पशु पक्षी तो सुन रहे हैं।
चंद्र शेखर व भगत सिंह की बैठकों का हिस्सा रह चुके तथा अंग्रेजों की सैंकड़ों लाठियां खाकर जेल यात्रा तक कर चुके भींव को अंग्रेजों के जुल्मों की भी याद है। कहते हैं कि अंग्रेज खुद घरों में चोरी चकारी करवाते थे। बेमतलब लोगो को डंडों व कोड़ों से पीटते थे। बहु- बेटियों की इज्जत से खिलवाड़ करते थे। उनके खिलाफ बोलने वालों को तो जान से मार दिया जाता था। बकौल भींव एक अंग्रेज अधिकारी यातना देने के लिए उनके भी कंधे पर चढ़ गया था। जिससे हुआ पीठ का दर्द उन्हें आज तक परेशान करता है।