यहां कोई लाडला शहीद होता है तो उसका मासूम बेटा कहता है पिता की जैसी ही वर्दी अब मैं पहनूंगा। पीछे नहीं हटूंगा, बल्कि पिता की शहादत का बदला लूंगा। मां कहती है फर्क है मुझे मेरे लाल पर जिसने दूध को लजाया नहीं। पिता कहता है एक और बेटा होता तो उसे भी सेना में भेज देता। करगिल के दौरान दुश्मनों को धूल चटाने वालों में सर्वाधिक फौजी शेखावाटी के ही थे। करगिल विजय दिवस 2018 पर पेश है शेखावाटी की फौजियों की यह विशेष रिपोर्ट।
फैक्ट फाइल सीकर जिला
पूर्व सैनिक करीब 26000
वर्तमान सैनिक 150000
अशोक चक्र 02
महावीर चक्र 02
कीर्ति चक्र 01
वीर चक्र 06
शौर्य चक्र 07
सेना मेडल 34
मेंशन इन डिस्पेच 07
वायुसेना मेडल 01
पुलिस मेडल फोर 01
करगिल में शहीद
सीकर 9
चूरू 7
झुंझुनूं 12
जिला चूरू
युद्ध/ऑपरेशन शहीद
द्वितीय विश्व युद्ध 05
भारत-चीन युद्ध 10
भारत-पाक युद्ध 20
ऑपरेशन पवन 04
अन्य 44
राजकुमार पहला करगिल शहीद
चूरू में करगिल का पहला शहीद राजगढ़ तहसील के गांव भैंसली निवासी 18 ग्रनेडियर यूनिट का डब्यू ग्रनेडियर राजकुमार है, जो 24 मई 1999 को शहीद हुआ था। राजकुमार के अलावा ऑपरेशन विजय में दूधवाखारा निवासी एल सूबेदार सुमेरसिंह, राजगढ़ के गांव सूरतपुरा निवासी हवलदार महेन्द्रसिंह, रामपुराबेरी निवासी राइफल मैन सत्यवीरसिंह, हरपालूताल निवासी लांस नायक विनोद कटेवा, सुलखनिया बड़ा निवासी गनर बजरंग लाल, नौरंगपुरा निवासी सैनिक शीशराम नीमड़ शहीद हुए थे। वहीं शहीदों की सूची में आखिरी शहीद रतनगढ़ के गांव गौरीसर निवासी सीआरपीएफ कांस्टेबल राजेन्द्र कुमार नौण है, जो 31 दिसंबर 2017 में आतंकी हमले में शहीद हुआ।
अभी तक सहायता का इंतजार
झुंझुनूं/बगड़. देश की रक्षा के लिए 17 सितम्बर 1999 को करगिल में दुश्मनों से लोहा लेते शहीद होने वाले जयपहाड़ी के लाडले लांस नायक जगदीशसिंह शेखावत के परिजन आज भी सरकारी सहायता के इंतजार में हैं। इतने साल बीत जाने के बावजूद इन्हें सरकार की ओर से घोषित पैकेज नहीं मिला है। वीरांगना सुनील कंवर ने पत्रिका को बताया कि उस वक्त सरकार ने उन्हें पेट्रोल पंप या फिर गैस एजेंसी अलॉट करने की घोषणा की थी। लेकिन उन्हें यह कह दिया गया कि उनकी शैक्षणिक योग्यता 12वीं तक नहीं है।ऐसे में उनकी पुत्री 18 साल की हो जाएगी तब उन्हें पंप या एजेंसी अलॉट की जाएगी। जब पुत्री 18 की हो गई तो 21 साल की होने के बाद अलॉट की बात कही गई है। उन्हें सरकार से केवल आश्वासन के सिवाय कुछ भी नहीं मिला है।
13 माह गरिमा
वीरांगना बताती हैं कि करगिल से पहले 24 जून 1999 को ही छूट्टी बिताकर गए थे। जब वे शहीद हुए तब उनकी बेटी गरिमा 13 महीने की थी, जो अब कोटा से पीएमटी की तैयारी कर रही है।