बताया गया है कि गत वर्ष रणथंभौर से निकले पांच टाइगरों में से तीन तो श्योपुर के सामान्य व कूनो के जंगल में मौजूद होने की पुष्टि हुई। हालांकि बाद में ये वापस भी चले जाते हैं। लेकिन श्योपुर के जंगलों में टाइगर दिखने के मामले यदा-कदा सामने आते रहते हैं। अभी पिछले दिनों ही श्योपुर-शिवपुरी हाइवे पर कराहल के निकट एक शिक्षक को कूनो के बफर जोन में बाघ नजर आया। वहीं श्योपुर जिले के सामान्य वनमंडल के क्षेत्र में वीरपुर के जंगल अक्सर टाइगर दिख जाते हैं, जहां रणथंभौर से निकलकर बाघ चंबल नदी को पार करके जिले के नदीगांव और हीरापुरा होते हुए वीरपुर के जंगल में पहुंचते है। जहां कुछ टाइगर रुक जाते हैं, वहीं कुछ वापस लौट जाते हैं। जबकि कई टाइगर वीरपुर के जंगल से कूनो सेंचुरी पहुंच जाते या फिर वापस चंबल नदी पार करके रणथंभौर सेंचुरी में चले जाते हैं।
सितंबर 2010 में आया था टी-38
वर्तमान में कूनो में स्थाई ठिकाना बना चुका रणथंभौर का टाइगर टी-38 सितंबर 2010 में चंबल क्रॉस कर श्योपुर के जंगल में पहुंचा था। इसके बाद कुछ दिनों तक तो वीरपुर के जंगल में पगमार्ग मिले, लेकिन बाद में कूनो के जंगल में पहुंच गया। यही वजह है कि फरवरी 2011 में टाइगर कैमरे में कैद हुआ। इसके स्थाई ठिकाना बनाने के कारण ही तत्कालीन डीएफओ एके मिश्रा ने इसका नाम केटी-1 भी रख दिया था।
वीरपुर में बाघ दिवस पर कराई प्रतियोगिताएं
अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस की पूर्व संध्या पर शनिवार को डब्ल्यूडब्ल्यूफ की पश्चिमी भारत की एक टीम ने वीरपुर के शासकीय हायरसेकंडरी स्कूल में एक कार्यक्रम आयोजित किया। इस दौरान कक्षा 9वीं से 12वीं के बच्चों के लिए चित्रकला, निबंध लेखन, प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताएं कराई गई और विजेता छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत भी किया गया। इस दौरान छात्र-छात्राओं को बाघ दिवस के बारे में भी जानकारी दी। कार्यक्रम के दौरान लैंडस्केप कॉर्डिनेटर अभिषेक भटनागर, अर्श मरवाह, के दिनेश आदि मौजूद रहे।