काकोरी कांड में दी गई थी फांसी
अशफाक उल्ला खाँ ने पंडित रामप्रसाद बिसमिल के साथ 9 अगस्त, 1925 को काकोरी में ट्रेन डकैती कांड को अंजाम दिया। इसी काकोरी काण्ड के दोष में ब्रिटिश हुकूमत ने 19 दिसंबर, 1927 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल और अशफाक उल्ला खान को फ़ैज़ाबाद जेल में एक साथ फांसी के फंदे पर लटका दिया था ।
अशफाक उल्ला खाँ ने पंडित रामप्रसाद बिसमिल के साथ 9 अगस्त, 1925 को काकोरी में ट्रेन डकैती कांड को अंजाम दिया। इसी काकोरी काण्ड के दोष में ब्रिटिश हुकूमत ने 19 दिसंबर, 1927 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल और अशफाक उल्ला खान को फ़ैज़ाबाद जेल में एक साथ फांसी के फंदे पर लटका दिया था ।
यज्ञ के साथ नमाज
22 अक्टूर 1900 को पैदा हुए आशफाक उल्ला खां और 1897 में पैदा हुए पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल बचपन से ही गहरे दोस्त थे। अलग अलग मजहब के होने के बावजूद दोनों शाहजहांपुर के आर्य समाज मंदिर में एक साथ रहते, एक ही थाली में खाना खाते थे। रामप्रसाद हिन्दू तो अशफाक पाँच वक्त के पक्के नमाजी मुसलमान थे। शाहजहांपुर के आर्य समाज मंदिर में जहाँ पंडित रामप्रसाद बिस्मिल यज्ञ करते थे तो वही यज्ञशाला के पास अशफाक उल्ला खा नमाज अदा करते थे। साथ-साथ ही स्कूल भी जाते थे ।
22 अक्टूर 1900 को पैदा हुए आशफाक उल्ला खां और 1897 में पैदा हुए पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल बचपन से ही गहरे दोस्त थे। अलग अलग मजहब के होने के बावजूद दोनों शाहजहांपुर के आर्य समाज मंदिर में एक साथ रहते, एक ही थाली में खाना खाते थे। रामप्रसाद हिन्दू तो अशफाक पाँच वक्त के पक्के नमाजी मुसलमान थे। शाहजहांपुर के आर्य समाज मंदिर में जहाँ पंडित रामप्रसाद बिस्मिल यज्ञ करते थे तो वही यज्ञशाला के पास अशफाक उल्ला खा नमाज अदा करते थे। साथ-साथ ही स्कूल भी जाते थे ।
अशफाक ने कहा, राम-राम
शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला खां के मुताबिक़ एक बार जब अशफाक उल्ला खाँ और पंडित जी की लंबे समय तक मुलाकात नहीं हुई। अशफाक उल्ला खाँ की तबियत भी बहुत ज्यादा खराब हो गयी। अशफाक को कई वैद्य हकीम को दिखाया पर दवाइयाँ असर ही नहीं कर रही थी। अशफाक बिस्तर पर पड़े हुए राम-राम कह रहे थे। तब एक व्यक्ति ने कहा कि ये पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को याद कर रहे हैं। जब पंडित जी आए तो उनकी एक आवाज़ सुनकर ही अशफाक उल्ला उठकर बैठ गए। धीरे-धीरे अशफाक के स्वास्थ्य में सुधार हो गया।
शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला खां के मुताबिक़ एक बार जब अशफाक उल्ला खाँ और पंडित जी की लंबे समय तक मुलाकात नहीं हुई। अशफाक उल्ला खाँ की तबियत भी बहुत ज्यादा खराब हो गयी। अशफाक को कई वैद्य हकीम को दिखाया पर दवाइयाँ असर ही नहीं कर रही थी। अशफाक बिस्तर पर पड़े हुए राम-राम कह रहे थे। तब एक व्यक्ति ने कहा कि ये पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को याद कर रहे हैं। जब पंडित जी आए तो उनकी एक आवाज़ सुनकर ही अशफाक उल्ला उठकर बैठ गए। धीरे-धीरे अशफाक के स्वास्थ्य में सुधार हो गया।
अशफाक और पंडित रामप्रसाद बिस्मिल दोनों ने शाहजहाँपुर के एक ही स्कूल में पढ़ाई की थी। फिरंगियों को देश से खदेड़ने के लिए आजादी के हजारों दीवानों को पैसों की जरूरत पड़ी तो दोनों भारत माता के सपूतों ने शाहजहाँपुर के अपने एक और साथी ठाकुर रोशन सिंह के साथ सरकारी खजाने को लूटने की रणनीति बना डाली। इसके बाद 9 अगस्त 1925 को इन लोगों ने काकोरी काण्ड को अंजाम दिया और ट्रेन में जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया। इसके बाद पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह तीनों नौजवान फिरंगियों की गिरफ्त में आ गये। काकोरी ट्रेन लूट काण्ड के आरोप में तीनों को फैजाबाद, गोरखपुर और इलाहाबाद की अलग-अलग जेलों में फांसी दे दी गई। जिस वक्त इन अमर सपूतों को फांसी दी गई, उस वक्त उनके होठों पर आजादी की खुशी थी, क्योंकि उनकी कुर्बानी में ही देश की आजादी का जज्बा छिपा था। उनकी इस कुर्बानी पर आज देश के हर किसी का सीना फख्र से चौड़ा है।