ये था मामला
दरअसल 23 वर्षीय रंजीत वर्मा जनपद अम्बेडकर नगर के ब्लॉक जलालपुर के ग्राम सुराही का रहने वाला है। रंजीत के पिता राम सिधार वर्मा गांव में चाय का होटल चलाते थे। बचपन में रंजीत का पढ़ाई में मन नहीं लगता था। इसके कारण स्कूल में उसे टीचर मार लगाते थे। एक दिन होमवर्क न पूरा करने पर उसके पिता ने भी उसकी खूब पिटाई लगाई। इससे नाराज होकर रंजीत रेलवे स्टेशन पर आ गया और एक ट्रेन पर बैठ गया। रंजीत का कहना है कि तब उसकी उम्र दस वर्ष थी और उसे ये भी नहीं पता था कि वो ट्रेन से आखिर जा कहां रहा है।
दरअसल 23 वर्षीय रंजीत वर्मा जनपद अम्बेडकर नगर के ब्लॉक जलालपुर के ग्राम सुराही का रहने वाला है। रंजीत के पिता राम सिधार वर्मा गांव में चाय का होटल चलाते थे। बचपन में रंजीत का पढ़ाई में मन नहीं लगता था। इसके कारण स्कूल में उसे टीचर मार लगाते थे। एक दिन होमवर्क न पूरा करने पर उसके पिता ने भी उसकी खूब पिटाई लगाई। इससे नाराज होकर रंजीत रेलवे स्टेशन पर आ गया और एक ट्रेन पर बैठ गया। रंजीत का कहना है कि तब उसकी उम्र दस वर्ष थी और उसे ये भी नहीं पता था कि वो ट्रेन से आखिर जा कहां रहा है।
ट्रेन हिमाचलप्रदेश मे रुकी तो वहां पर वो एक युवक से मिला। युवक उसे अपने साथ ले गया। रंजीत उसके घर में रहकर काम करने लगा। कुछ समय बाद जम्मू का रहने वाला एक शख्स हिमाचल प्रदेश आया और रंजीत को काम दिलवाने के लिए अपने साथ जम्मू ले गया। जम्मू में रंजीत ने कई सालों तक काम किया।
दो माह पहले बजरंगी भाईजान बनकर जिंदगी में आए धनीराम
दो माह पहले उसकी मुलाकात राज मिस्त्री धनीराम से हुई। वो धनीराम के साथ जम्मू में ही काम करने लगा। धनीराम ने उसके रहने व खानेपीने की भी पूरी व्यवस्था की थी। एक दिन काम के दौरान उसे उदास देखकर धनीराम ने वजह पूछी तो उसने परिवार से मिलने की इच्छा जाहिर की। जब धनीराम ने उससे जगह पूछी तो पता चला कि रंजीत को न अपना शहर पता है, न थाना और न ही कोई लैंडमार्क। उसे सिर्फ परिवारवालों के नाम और सुराली गांव में लगने वाली बाजार सहजादपुर का नाम याद था। उसके बाद धनीराम ने अपना सारा काम छोड़कर रंजीत को परिवार से मिलाने की ठान ली।
दो माह पहले उसकी मुलाकात राज मिस्त्री धनीराम से हुई। वो धनीराम के साथ जम्मू में ही काम करने लगा। धनीराम ने उसके रहने व खानेपीने की भी पूरी व्यवस्था की थी। एक दिन काम के दौरान उसे उदास देखकर धनीराम ने वजह पूछी तो उसने परिवार से मिलने की इच्छा जाहिर की। जब धनीराम ने उससे जगह पूछी तो पता चला कि रंजीत को न अपना शहर पता है, न थाना और न ही कोई लैंडमार्क। उसे सिर्फ परिवारवालों के नाम और सुराली गांव में लगने वाली बाजार सहजादपुर का नाम याद था। उसके बाद धनीराम ने अपना सारा काम छोड़कर रंजीत को परिवार से मिलाने की ठान ली।
शाहजहांपुर से मिला सुराग
वे उसे जम्मू से लेकर पहले मध्यप्रदेश स्थित अपने घर गए, फिर महोबा, सीतापुर और शाहजहांपुर पहुंचे। शाहजहांपुर में धनीराम ने मीडिया कर्मचारियों से मिलकर पूरा वाक्या बताया। तब मालूम पड़ा कि सुराली गांव अम्बेडकर नगर में है। उसके बाद वे अम्बेडकर नगर पहुंचे और 13 साल बाद रंजीत को उसके परिवार से मिलवाया। रंजीत के लौट आने की खबर मिलते ही रंजीत के घर में उसको देखने के लिए पूरा गांव इकट्ठा हो गया। सभी ने धनीराम को मसीहा बताते हुए शुक्रिया अदा किया।
वे उसे जम्मू से लेकर पहले मध्यप्रदेश स्थित अपने घर गए, फिर महोबा, सीतापुर और शाहजहांपुर पहुंचे। शाहजहांपुर में धनीराम ने मीडिया कर्मचारियों से मिलकर पूरा वाक्या बताया। तब मालूम पड़ा कि सुराली गांव अम्बेडकर नगर में है। उसके बाद वे अम्बेडकर नगर पहुंचे और 13 साल बाद रंजीत को उसके परिवार से मिलवाया। रंजीत के लौट आने की खबर मिलते ही रंजीत के घर में उसको देखने के लिए पूरा गांव इकट्ठा हो गया। सभी ने धनीराम को मसीहा बताते हुए शुक्रिया अदा किया।