इन्हे नहीं किसी की परवाह, इनके हौसले से ही मिल रही उड़ान
शाहडोलPublished: Sep 12, 2018 11:57:55 am
25 मूक बधिर व 15 नेत्रहीन बच्चे छात्रावास में ले रहे शिक्षा
They do not care about anyone, they get their flight from the fresh ai
शहडोल। ईश्वर ने किसी की जुवान छीन ली तो किसी की आंखे फिर भी हार नहीं माने। अब वह मन की आंखो से शब्द गढ़ते हैं और इशारो-इशारों में अपने भावों को समझाने का प्रयास करते हैं। इन्ही सबके बीच इनका बचपन कट रहा है। कहीं न कहीं उपेक्षित हैं लेकिन जो और जैसा माहौल इन्हें मिला वह उसमें ही खुश है। हम बात कर रहे हैं पाण्डवनगर स्थित सीडब्ल्यूएसएन हास्टल में रह रहे ऐसे लगभग ५० बच्चों की। प्रेरणा फाउण्डेशन व शासन की मदद से चल रहे इस छात्रावास में रह रहे बच्चों में से कुछ देख नहीं पाते तो कुछ सुन और बोल नहीं पाते हैं। इनमें से कुछ ऐसे भी है जो मान्सिक रूप से कमजोर है। इसके बाद भी इन्हे इनके तरीके से शिक्षा व सामान्य जीवन जीने की कला सिखाने का प्रयास छात्रावास में किया जा रहा है।
बुन रहे शब्दों का जाल
छात्रावास में रह रहे 50 बच्चों में से 15 बच्चे ऐसे भी हैं जो देख नहीं पाते हैं। लेकिन इन्हे प्राथमिक शिक्षा मुहैया कराने के लिए ग्वालियर की पूजा साहू द्वारा ब्रेल लिपि से अक्षरों को बनाना सिखाया जा रहा है। इनमें से कई बच्चों ने ब्रेल लिपि के माध्यम से शब्दों का जाल बुनना सीख भी लिया है और वह बड़ी आसानी से शब्द लिख पा रहे हैं। वहीं कुछ बच्चे अभी प्रारंभिक स्थिति में लिखना सीख रहे हैं।
इशारों से कहते हैं मन की बात
मूक-बधिर होने के बाद भी यहां रह रहे लगभग २५ बच्चे इशारों की इशारों में अपनी मन की बात कह देते हैं। यहां पदस्थ शिक्षक मोहित लाल द्वारा इन्हे साइन लैंग्वेज के माध्यम से प्राथमिक स्तर की शिक्षा प्रदान की जा रही है। जिसमें फलों के नाम, दिनो के नाम, महीनो के नाम के साथ ही सामान्य बोल-चाल की कला बच्चों को साइन लैैंग्वेज में सिखाई जा रही है। जिसमें कई बच्चे पूरी तरह से दक्ष भी हो चुके हैं।
तराशने की आवश्यक्ता
छात्रावास में रहकर प्रारंभिक शिक्षा, रहन, सहन व बोल-चाल सीख रहे इन मूक बधिर व नेत्रहीन बच्चों को तराशने की आवश्यक्ता है। प्राथमिक स्तर पर तो इन्हे यहां शिक्षा मिल रही हैं लेकिन इसके आगे शिक्षा के लिए यहां कोई ऐसी वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है। जिसके चलते इनका जीवन एक बार फिर उसी अंधेरे में डूब जाता है जहां से वह निकलते हैं। इस दिशा में पहल की आवश्यक्ता महसूस की जा रही है लेकिन अभी तक कोई ऐसे प्रयास हुए नहीं हैं।