scriptमातृभूमि छूटी लेकिन मातृभाषा को पीढ़ी दर पीढ़ी सहेज रहा सिंधी समाज | Sindhi imposes fines for talking in other languages in society, watch | Patrika News

मातृभूमि छूटी लेकिन मातृभाषा को पीढ़ी दर पीढ़ी सहेज रहा सिंधी समाज

locationशाहडोलPublished: Feb 21, 2019 12:34:47 pm

Submitted by:

brijesh sirmour

देखे वीडिओ, मातृ भाषा दिवस पर विशेष : आपस में बातचीत, प्रशिक्षण और प्यार के दम पर सिंधी को जिंदा रखने में रहे कामयाबप्रचलन में बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं ङ्क्षसधी समाज के जागरूक लोग

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शहडोल. देश के बंटवारे के बाद सिंधी समाज को अपनी मातृभूमि को तो छोडऩा पड़ा लेकिन समाज ने बहुत सी ऐसी रवायतें, अपनी संस्कृति और भाषा को आज भी सहेजकर रखा है। सिंधी समाज ने आपस में सिंधी में ही बात करने, उसके साहित्य, नई पीढ़ी को प्रशिक्षण देकर सिंधी भाषा को सहेजकर रखा है। आज भी समाज के जागरूक लोग सिंधी को भाषा को पुष्पित-पल्लवित करने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं। नई पीढ़ी को अपनी परंपराओं से अवगत कराने के साथ-साथ भाषा को भी सहेज रहे हैं।
आदिवासी अंचल में सिंधी समुदाय के लोग बड़ी संख्या में हैं। यहां पर इस समाज ने व्यापार में तो लोहा मनवाया ही है, अपनी जड़ों को भी जिंदा रखा हुआ है। ये समाज यहां के स्थानीय समाज में घुला-मिला है। यहां की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषा और साहित्य को अंगीकार कर लिया है लेकिन अपनी विरासत को भी सींच रहा है। भाषा को सहेजने के लिए समाज के प्रबुद्ध लोग कई जतन कर रहे हैं। इसमें अपनी भाषा में बातचीत की अनिवार्यता भी शामिल है। यहां एक संगठन ने तरकीब अपनाई है कि जो भी मातृभाषा में बात नहीं करेगा उस पर एक रुपए जुर्माना लगाया जाएगा। खास बात ये है कि गलती करने वाला व्यक्ति भी विनम्रता से क्षमा मांगते हुए जुर्माना की राशि अदा करता है। समाज के लोगों ने यह ठान रखा है कि ङ्क्षसधी समाज का कोई भी आयोजन हो या फिर वह कहीं एकत्र हों, आपस में बातचीत के दौरान सिंधी भाषा का ही प्रयोग करेंगे। साथ ही सिंधी भाषा को जीवंत बनाए रखने के लिए समाज के जागरूक लोग बच्चों और महिलाओं को हमेशा ङ्क्षसधी भाषा का इस्तेमाल करने की प्रेरणा देते हैं।
सिंधी भाषा को संविधान में मान्यता
सिंधी, भाषा के रूप में सिंध क्षेत्र में बोली जाती है, जो 1947 में भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान का हिस्सा बन गया था। परिणामस्वरूप, उस समय के सामाजिक-राजनीतिक संकट से मजबूर होकर 12 लाख सिंधी भाषी हिन्दुओं को भारत में शरण लेनी पड़ी थी। भारत में सिंधियों का कोई विशेष भाषाई राज्य नहीं है, लेकिन उनकी न्यायोचित माँग को देखते हुए 10 अप्रैल 1967 को सिंधी को संविधान की 8वीं अनुसूची में मान्यता प्रदान की गई।

नहीं मिलते सिंधी भाषी शिक्षक
सिंधी भाषा को बढ़ावा देने के लिए हम लोगों ने हर स्तर पर प्रयास किया है और कई सेवानिवृत्त अधिकारियों व शिक्षकों के माध्यम से बच्चों को भाषा सिखाने का काम किया जाता है। इसके बाद भी हमें सिंधी भाषी शिक्षक नहीं मिल पाते हैं, जिससे सिंधी भाषा की विधिवत शिक्षा देने में काफी परेशानी आती है। अरबी सिंधी थोड़ा कठिन है, इसलिए अधिकांश लोग अब देवनागरी सिंधी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं।
लालचंद कुंदनानी, 80 वर्ष

आयोजनों में करते हैं जागरूक
सिंधी भाषा को जीवंत बनाए रखने के लिए मैने सिंधु नीति कल्चर सोसायटी का गठन कर पिछले कई वर्षों से साहित्यिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से समाज को जागरूक करने का बीड़ा उठाया है। जिसमें समाज के अन्य कई लोग भरपूर सहयोग कर रहे हैं। खासतौर पर झूलेलाल चालीसवां महोत्सव में इसका व्यापक प्रचार-प्र्रसार होता है।
चंन्दन बहरानी, 65 वर्ष

महिलाओं व बच्चों को करते हैं प्रेरित
हमने सिंधी भाषा का प्रचार प्रसार करने के लिए बकायदा एक ग्रुप बनाकर रखा है। जो छुट्टी के दिन लोगों के घरों मे जाकर बच्चों और महिलाओं को सिंधी भाषा का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करता है। इसके अलावा समाज के किसी भी कार्य में यदि कोई अन्य भाषा का प्रयोग करता है, तो मैं स्वयं उस पर एक रुपए का जुर्माना लगाता हूं और जुर्माना की राशि का एकत्र कर गरीबों को बांट देता हूं।
विजय लाहोरानी,49 वर्ष

अचो त मातृ भाषा सिखूं
मातृभाषा को सीखने व सिखाने के लिए हम लोगोंं ने युवाओं पर ज्यादा जोर दिया है। जिसका परिणाम यह रहा है कि अधिकांश लोग देवनागरी लिपि में सिंधी भाषा के अलफ अंब बे बला को समझकर लिखने व बोलचाल में ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं। हमने बाहर से भी शिक्षकों को बुलाकर शिविर लगाया है, ताकि लोगों की भाषा संबंधी समस्याओं का समाधान हो सके।
महेश फबियानी, 48 वर्ष

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