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डेढ़-डेढ़ महीने की थानेदारी में पुलिस क्या रिजल्ट देगी?

locationशाहडोलPublished: Sep 26, 2018 09:27:32 pm

Submitted by:

shivmangal singh

थोक के भाव तबादलों से उठ रहे सवाल

Police

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शिवमंगल सिंह
पुलिस महकमे में 23 सितंबर को फिर से तबादलों की सूची जारी की गई। शहडोल में तीन महीने के अंदर ऐसा चौथी मर्तबा हुआ है कि थोक के भाव तबादले किए गए हैं। इसमें कई थानों के प्रभारी भी शामिल हैं। काबिलेगौर बात ये है कि महज डेढ़-डेढ़ महीने की थानेदारी के बाद उनको हटा दिया गया। तबादला यूं तो किसी भी महकमे का अंदरूनी मामला है और हरेक कप्तान को अपने हिसाब से अपनी टीम चुनने का हक भी है। लेकिन ये तबादले ऐसे वक्त किए जा रहे हैं जब विधानसभा के चुनाव सिर पर हैं। चुनाव की तैयारियों को लेकर आयोग लगातार बैठकें कर रहा है। सुरक्षा की तैयारियों का जायजा ले रहा है। ऐसी स्थिति में हर महीने थोक के भाव तबादला सूची जारी करना कहां तक समझदारी भरा कदम है। जिस टीम को चुनाव कराना है उस टीम को आखिर क्षेत्र में अपनी पैठ बनाने के लिए कुछ समय तो दिया जाना चाहिए। तबादला बेशक विभाग का अंदरूनी मामला है लेकिन इन सभी को फील्ड में काम करना है, इनसे जनता सीधी प्रभावित होती है। अधिकारी डेढ़ महीने की थानेदारी में पुलिस से कौन सा रिजल्ट चाह रहे है? जिले के चार महत्वपूर्ण थानों सोहागपुर, जयसिंहनगर, केशवाही और अमलाई में डेढ़ महीने के अंदर बदलाव कर दिया गया। एक सब इंस्पेक्टर का तो दो महीने में तीसरी बार तबादला किया गया, जिसमें दो बार बतौर थाना प्रभारी भी उसने काम किया। सिपाही का भी डेढ़ महीने में दो बार तबादला कर दिया गया। आखिर ऐसी क्या परिस्थिति है? जिले में इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर, प्रधान आरक्षक, आरक्षक की इतनी बड़ी संख्या भी नहीं है कि उनमें बेस्ट चुनने के लिए बार-बार रद्दोबदल करना पड़े। यदि किसी थाने का प्रभारी बदलता है तो वहां की पूरी टीम को उसके साथ फिर से तालमेल बैठाना पड़ता है। थानेदार को भी अपनी टीम को समझने में समय लगता है। नेटवर्क तैयार करना होता है। वहां की सामाजिक, भौगोलिक परिस्थितियां भी समझनी होती हैं। लेकिन जैसे ही इलाके से परिचित होता है उसे हटा दिया जाता है। हाल ही में कुछ घटनाएं हुईं उनको लचर पुलिसिंग के तौर पर पेश किया जा सकता है। २२ सितंबर को एक दिव्यांग बालिका के साथ बलात्कार हुआ, आरोपी अभी तकनहीं पकड़ा गया। पुलिस अंधेरे में तीर चला रही है। ये खराब नेटवर्किंग का ही नतीजा है कि बलात्कार का आरोपी पकड़ से दूर है। एक और घटना ६ सितंबर को हुई। शांतिपूर्ण आंदोलन पर पुलिस ने लाठियां चलाईं। इसके बाद पूरे दिन प्रशासन और पुलिस को फजीहत झेलनी पड़ी। ये भी लचर तालमेल और खराब फीडबैक का नमूना था। अवैध खनन पर तो बात करना ही बेमानी है। खनिज संपदा को बेरोक-टोक लूटा जा रहा है, नदियों को छलनी किया जा रहा है। इन हालात को देखकर सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि माफिया के आगे पुलिस कितनी बौनी है।

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