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शांतिसागर महाराज ने दिगम्बरत्व का किया संरक्षण

locationसिवनीPublished: Mar 23, 2019 08:31:49 pm

Submitted by:

santosh dubey

संयम शताब्दी वर्ष पर द्विदिवसीय कार्यकम आयोजित

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शांतिसागर महाराज ने दिगम्बरत्व का किया संरक्षण

सिवनी. दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति के प्रथम मुनि संघ बिहार प्रवश्र्रक शतकालीन प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर महाराज के सौवें दीक्षा दिवस को समग्र भरत वर्ष में प्रतिष्ठित जैन समाज संयम शताब्दी वर्ष के रूप में विभिन्न आयोजनों के साथ मना रही है।
इसी श्रृंखला में नगर में विराजमान परम पूज्य आचार्य विद्यासागर मुनि महाराज की सुशिष्या आर्यिका दृढ़मति माता एवं तपोमति माता के ससंघ सानिध्य में संयम शताब्दी वर्ष पर द्वि-दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किए गए।
प्रथम दिवस पूज्य आचार्य के संयम दिवस पर आर्यिका दृढ़मति माता ने अपने केशलोंच कर उपवास ग्रहण किया। इस अवसर पर आचार्यश्री के चित्र का अनावरण एवं दीप प्रज्जवलन, मंगलाचरण के माध्यम से पूजन की गई। इस अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए आर्यिका तपोमति माता ने कहा कि 20वीं शताब्दी के प्रारंम्भ होने तक जैन मुनियों का प्रादुर्मव कम होने लगा तब ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में आचार्य शांतिसागर महाराज ने न सिर्फ दिगम्बरत्व का संरक्षण किया अपितु शास्त्रानुसार आदर्श श्रमण परम्परा का निर्वहन किया। वर्तमान में भरतवर्ष में जितने भी श्रमण-श्रमणियां रत्त्रय धर्म का आराधन कर रहे हैं वे सब उन्हीं के वंशज है। गुरुवर आचार्य विद्यासागर ने मात्र नौ वर्ष की आयु में दक्षिण मरत के शेडवाल में दर्शन कर आचार्य शांतिसागर महाराज को अपना वैराग्य गुरु स्वीकार किया। सिवनी में जन्में पंडित सुमेरूचंद दिवाकर द्वारा रचित उनकी जीवनी चारित्र-चक्रवर्ती ग्रंथ प्रत्येक श्रमण एवं श्रावकों को पढऩा चाहिए। उक्त उद्गार आर्यिका साधनामति माता ने आचार्य के प्रति व्यक्त किए। आर्यिका दृढ़मति माता ने इस अवसर पर उनके द्वारा किए गए धर्म, शास्त्र, तीर्थ एवं जिनालयों के संरक्षण के साथ दिगम्बरत्व का सम्पूर्ण भारत में निर्बाध विहार, एवं दिगम्बर जैन संस्कृति को दैदीप्यमान रखने वाले प्रकाश स्तम्भ के रूप में स्मरण किया।
चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ को वर्ष 1953 में प्रथम संस्करण के रूप में प्रकाशित करने वाले वरिष्ठ विद्वान अधिवक्ता पं. अभिनन्दन दिवाकर ने कहा कि अनेक बार मुझे उनके दर्शनों एवं धार्मिक चर्चाओं का सौमग्य अपने अग्रज पं. सुमेरूचंद दिवाकर के साथ प्राप्त हुआ। आचार्य शांतिसागर महाराज की जीवनी चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ के अब तक 10 संस्करण प्रकाशित हो चुके है। मराठी एवं कन्नड़ में भी यह ग्रंथ अनुवादित है। इस ग्रंथ का स्वाध्याय कर अनेक श्रावक, श्रमण मार्ग पर अग्रसर हुए।
मंच संचालन करते हुए पारस जैन ने कहा कि हम सभी का सौभाग्य कि आज की मांगलिक बेला में पूज्य आर्यिका संघ के सानिध्य में हम इस संयम उत्सव को संयम महामहोत्सव के रूप में मना रहे हैं।
इस अवसर पर सनत कुमार बाझल, नरेन्द्र गोयल, अनिल नायक, डॉ. अशोक खजांची, प्रभात सेठ, सुबोध बाझल, यशोधर दिवाकर, नरेन्द्र जैन, पवन दिवाकर, प्रदीप सेठ, सुरेन्द्र गोयल, जिनेश बागड़, संदीप बाझल, प्रफुल्ल बंटी, नितिन जैन सोनू, नितिन गोयल, नीरज बाझल, सुधीर जैन, आदि मौजूद थे।

 

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