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बच्चों ने जलाई कंडों की होली, प्रकृति संरक्षण का दिया संदेश

locationसिवनीPublished: Mar 24, 2019 11:14:16 am

Submitted by:

santosh dubey

प्राकृतिक संसाधन हमारी जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति के उपादान हैं, लूट-खसोट की वस्तु नहीं:-पाण्डेय

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बच्चों ने जलाई कंडों की होली, प्रकृति संरक्षण का दिया संदेश

सिवनी. नगर मे गौ, गीता, गंगा महामंच की प्रेरणा से बच्चों द्वारा गाय के गोबर से बने कंडों की होली बनाकर पूजन कर होलिका दहन किया गया। महामंच द्वारा बताया गया कि अगर गाय के गोबर से बने कंडों का प्रयोग होली दहन जैसे आयोजनों में किया जाए तो प्रकृति में पेड़ों को नुकसान भी नहीं पहुंचेगा और आने वाली पीढ़ी को भी इससे गोमाता का महत्व पता चलेगा। बच्चो को पर्यावरण में पेड़ों को नुकसान न पहुंचाने पर्यावरण को शुद्ध रखने की बात महामंच द्वारा कही गयी।
गौ, गीता, गंगा महामंच के अध्यक्ष पं. रविकान्त पाण्डेय ने कहा कि हमारी प्राचीन संस्कृति, प्रकृति में दैवी स्वरूप का दर्शन कर, उसकी अर्चना करती थी, प्रकृति को माता की संज्ञा प्रदान की गयी, पर आज की मूल्य विहीन जीवनशैली में हम अपनी पहचान भूल गए हैं, मूल्यों की रक्षा का तो प्रश्न ही नहीं और इसी का दुष्परिणाम यह है कि आज मानव और प्रकृति के रिश्ते नापाक हो गए हैं और हमने अपने पर्यावरण को बिगाड़ लिया है। आज के वर्जनाहीन समाज में न तो जल शुद्ध रह गया है, न हवा।
महामंच की पहल पर बच्चो द्वारा परम्परागत तरीके से स्वंय ही इस होलिका का निर्माण कंडो द्वारा किया जाकर गाय के गोबर से बने कंडों से ही होलिका दहन की गयी। बच्चों की इस पहल का लोगों में असर दिखाई दिया बच्चों द्वारा कई जगह अपने-अपने स्तर से संदेश देने का प्रयास किया गया जिससे आसपास के इलाके पर भी बड़ा असर हुआ है। आसपास के कई कस्बों-गांवों से भी अब भविष्य में लकडिय़ों की जगह कंडों की ही होली जलाने की बात कही गयी।
पं रविकान्त पाण्डेय ने कहा कि भारतीय चिंतकों की मान्यता थी कि संसाधन हमारी जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति के उपादान हैं, लूट-खसोट की वस्तु नहीं। हमारी लालसा ने पर्यावरण में भयानक रूप से कुछ ऐसी तब्दीलियाँ कर दी हैं कि वे आज हमारे अस्तित्व की रक्षा के लिए घातक बन बैठी हैं। हमारी अगली पीढ़ी अपने पुरातन गौरवशाली मूल्यों, परंपराओ की विरोधी धारा में जी रही होगी। आइए, ऐसे क्षण में हम अपनी पुरातन थाती और वैदिक ऋषियों की वाणी की रक्षा का शुभ संकल्प लें। भारतीय संस्कृति में होलिका दहन की परम्परा बहुत पुरानी है। प्राचीन समय में जब आबादी कम थी, जंगल घने थे और समाज के लोगों में जंगलों में गिरी हुई सूखी लकडिय़ों को बीन कर होलिका दहन किया जाता था। तब पर्यावरण की चुनौती हमारे सामने नहीं थी। आज जब जंगलों में पेड़ों की संख्या में बहुत कमी आई है और बढ़ती आबादी के कारण हरे-भरे वनों को काटा जा रहा है, ऐसी स्थिति में लकडिय़ों से होलिका दहन हमारे पर्यावरण संकट को बढ़ाता है। इस संकट से बचने के लिये गोबर के कंडों की होली एक सार्थक पहल है। इससे गौवंश का सम्मान बढ़ेगा और देश में समाज द्वारा संचालित गौशालाओं को अतिरिक्त आय का साधन भी मिलेगा।
गौ, गीता, गंगा महामंच की पहल मे नगर, गांव मे भी कई जगह पर्यावरण के हित में होली पर लकडिय़ों की जगह कंडे से होलिका दहन की शुरूआत की गयी। महामंच के सुमित चौबे ने कहा कि भविष्य में इस प्रकार के पर्व त्यौहारो के लिए शहर के कई जनसंगठन, सामाजिक संस्थाएं, मीडिया समूह, पर्यावरण हितैषी और आम लोगों की भी सहभागिता निर्धारित की जाएगी। इसके लिए विशेषतौर पर जन जागरूकता अभियान भी चलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि होलिका दहन में बड़ी तादाद में लकडिय़ां जलाने से जंगल खत्म हो रहे हैं, वहीं इसका धुआं पर्यावरण को भी प्रदूषित कर रहा है।

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