जानकारी के अनुसार स्कूली छात्रा की सुरक्षा को लेकर जिला प्रशासन दो बार निजी स्कूल संचालक और वाहन चालकों के साथ बैठक कर चुका है, वहीं परिवहन अमला हर दो-तीन दिन में कार्रवाई कर रहा है। शुक्रवार को तो जिलेभर में एक साथ मोबाइल कोर्ट लगाकर न्यायाधीशों ने वाहनों की चैकिंग की। मोबाइल कोर्ट ने २६२ प्रकरण का निराकरण कर ९३ हजार २०० रुपए का अर्थदण्ड वसूल किया गया। इस दौरान मजिस्ट्रेट शिवलाल केवट तो एक वैन में क्षमता से अधिक बच्चे बैठे देख इतने भावुक हो गए कि उन्होंने वैन से बच्चों को उतारकर अपने वाहन से स्कूल तक पहुंचवाया, लेकिन दूसरे दिन ही यह पहल कोई काम नहीं आई। न्यायाधीशों की समझाईश के बाद भी वाहन चालक अपनी हरकत से बाज नहीं आए हैं। वाहनों में क्षमता से अधिक बच्चों को बिठाकर दौड़ते दिखाई दिए।
डीटीओ की एडवाइजरी नहीं आई काम
जिला परिवहन अधिकारी अनुराग शुक्ला ने २३ जून को स्कूल खुलते ही बच्चों की सुरक्षा को लेकर पालकों के लिए एडवाइजरी जारी की। एडवाइजरी में डीटीओ ने कहा था कि पालक स्वयं स्कूल वाहनों का निरीक्षण करें और सुरक्षा इंतजामों की स्थिति देखें। स्कूलों में एलपीजी से चलने वाले वाहन पूरी तरह प्रतिबंधित हैं, यदि कोई स्कूल संचालक एलपीजी से चलने वाले वाहनों का उपयोग कर रहा है तो उसकी शिकायत तत्काल परिवहन विभाग में की जाए। बच्चों के माता-पिता मारूति वेन से बच्चों को स्कूल नहीं भेजें और ऐसे वाहनों में भी बच्चों को नहीं भेजा जाए, जो डबल फ्यूल से संचालित होते हैं। डीटीओ ने स्कूल में सीसीटीवी कैमरा आदि को लेकर भी पालकों को सचेत किया है, लेकिन वाहन चालकों के साथ पालक भी लापरवाह बने हुए हैं, जिसके कारण कभी भी गंभीर हादसे का सामना करना पड़ सकता है।
ऑटो और वैन चालकों की मनमानी
डीटीओ शुक्ला ने बताया कि ऑटो में 12 साल से कम उम्र के 5 और 12 साल से अधिक उम्र के ३ बच्चे बिठाए जा सकते हैं और वैन पूरी तरह प्रतिबंधित है। शनिवार को जब पत्रिका की टीम ने स्कूल वाहनों की हालत देखी तो पता चला कि ऑटो सात-सात, आठ-आठ बच्चे बिठे दिखे। मारूति वैन भी स्कूली बच्चे भरकर दौड़ती दिखीं हैं। इन मारूति वैन पर न तो स्कूल का नाम लिखा है और न ही मोबाइल नंबर। कुछ वैन तो ऐसी मिलीं जो प्राइवेट स्कूल से अनंबंधित हैं। यह वैन केवल स्कूली बच्चों को स्कूल से घर और घर से स्कूल तक पहुंचाने के लिए ही उपयोग की जाती है, लेकिन स्कूल का नाम और मोबाइल नंबर इन पर नहीं लिखा है। सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के मुताबिक बच्चों को उतारने के लिए सहायिका तो दूर की बात इन गाडिय़ों में स्पीड गवर्नर भी नहीं लगे हैं।
ये है सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन
– स्कूल बस का रंग पीला होना चाहिए।
– बस के आगे व पीछे स्कूल बस लिखा होना चाहिएा।
– बस किसी ऑपरेटर से ली गई है तो उस पर स्कूल ड्यूटी लिखा होना चाहिए।
– खिड़कियों पर ग्रिल और शीशा होना चाहिए।
– आग बुझाने का इंतजाम बस में होना जरूरी है।
– बस में फ स्र्ट एड बॉक्स का होना चाहिए।
– बस पर स्कूल का नाम, पता और फ ोन नंबर लिखा होना चाहिए।
– बच्चों को चढ़ाने उतारने स्कूल का एक सहायक या सहायिका होना जरूरी।
– स्पीड गवर्नर लगा होना चाहिए, स्पीड 40 किमी प्रति घंटे होना चाहिए।
वर्जन….
– परिवहन अमला लगातार कार्रवाई कर रहा है। स्कूल वाहन चालकों से शपथ पत्र भी लिए हैं। इस पर अंकुश लगाने के लिए पालकों को भी मदद करनी चाहिए। परिवहन अमले की कार्रवाई और सख्त की जाएगी।
अनुराग शुक्ला, डीटीओ सीहोर