मेले मे रंग-बिरंगे परिधानों मे आदिवासी युवक-युवतियां झूले, चकरी का आनंद लेते दिखाई दिए। वहीं बांसुरी की तान फाल्गुन मास का सुरों से जैसे स्वागत करती प्रतीत हुई। मेले में ढोल-मादल की थाप पर आदिवासी युवक-युवतियां जमकर थिरकीं। टोलियां मेले की खूबसूरती मे चार चांद लगा रही थीं। इस बार डीजे की अगुवाई मे जुलूस निकला जिसमें आदिवासी समाज प्रमुख साफा बांधकर निकले। ब्रिजिशनगर के नागरिकों ने सरपंच प्रतिनिधि ज्ञानसिंह राठौर, सुखराम बारेला के नेतृत्व मे पुष्प वर्षा कर जुलूस का स्वागत किया। समाज का होली पूर्व लगने वाला भगोरिया मेला महत्वपूर्ण होता है। मेले में लगे झूलों का आदिवासी बच्चे, महिलाएं व पुरुष लुत्फ उठाते नजर आए। इस दौरान उन्होंने जमकर खरीदारी की।
तहसील का पहला भगोरिया हाट ब्रिजिशनगर मे जोरदार उत्साह से मना, जहां ग्राम फांगिया, गुराड़ी, अलीपुर, नादान, मोयापानी, बावडिय़ा चोर, बलोंडिया, रामगड़, सोहनखेड़ा, कनेरिया, मंडलगड़, जामली, बालुपाट, मगरपाट, पांगरी, बोरदी खुर्द सहित करीब दो दर्जन आदिवासी गांवों के लोग पहुंचे। तहसीलदार आरएस मरावी, टीआई अरविंद कुमरे पूरे समय मेला स्थल पर स्थिति का जायजा लेते रहे। सुरक्षा व्यवस्था के दृष्टिकोण से मेले मे विशेष पुलिस बल तैनात किया गया था। 5-6 जेब कतरों को भी पुलिस ने स्पाट पर ही धरदबोंचा।
इस बार भाग कर विवाह करने की पुरातनी प्रथा प्राय: विलुप्त नजर आई। पान का बीड़ा मौके पर गुलाबी होंठों से कुछ मन की बात अवश्य कहता नजर आया। युवक-युवतियां अपने शारीरिक अंगों पर खुद के या अपने प्रेमीजन के नाम गुदवाती नजर आई।
मेले में परंपरा और आधुनिकता का मिश्रण देखने को मिला। भगोरिया हाट मे परंपरागत आदिवासी वेशभूषा मे युवतियां पहुंची तो वहीं युवक आधुनिक जींस-शर्ट के परिधान मे दिखाई दिए। मेले में आदिवासी गोदना प्रथा भी दिखाई दी। महुआ की मंदिरा भी मेले मे मादकता घोले रहीए उम्र दराज लोगों पर भी मदिरा के सांथ भगोरिया हाट का नशा छाया दिखाई देता रहा। जैसे-जैसे समय बड़ता गया। वैसे वैसे मेला शबाब पर आता रहा।