जनीनी कहते हैं, ”जिस तरह दर्द को मापने के लिए उपकरण नहीं है, वैसे ही ऑर्गेज़्म को मापने के लिए भी कोई मशीन या उपकरण नहीं है।
उन्होंने कहा कि दुनिया भर में दर्दनिवारक दवाइयों को एनालॉग स्केल के तहत मापकर ही बेचा जाता है. दर्द और आनंद दोनों एक ही सिक्के के अलग-अलग पहलू हैं. इसीलिए इन्हें मापने के लिए किसी मशीन की जगह स्केल का इस्तेमाल किया जा सकता है।
”जिस तरह के स्केल से दर्द की मात्रा का पता लगाया जाता है हमने उसी स्केल के ज़रिए ऑर्गेज़्म की मात्रा मापी क्योंकि इन दोनों एहसासों का संबंध दिमाग़ के एक ही हिस्से से होता है. कोई एक चीज़ किसी इंसान के लिए दर्दनाक हो सकती है जबकि दूसरे के लिए उसमें सुख छिपा हो सकता है।
इस स्केल को बनाते वक्त जनीनी ने एक स्टडी की, इस स्टडी में 526 महिलाओं को शामिल किया गया. इनमें से 112 महिलाएं सेक्सुएलिटी क्लीनिक में मरीज़ थीं जिन्हें सेक्स संबंधी कोई न कोई समस्या थी।
इसके अलावा बाकी 414 महिलाओं को सेक्स संबंधी कोई समस्या नहीं थी। इन महिलाओं को एक ऑनलाइन माध्यम के ज़रिए चुना गया।
रिसर्चरों की टीम ने एक सवालों की फेरहिस्त बनाई जिसमें सवालों के जवाब इन महिलाओं को देने थे।
इन सवालों को एक बेवसाइट पर अपलोड किया गया। दरअसल ये एक स्मार्ट वेबसाइट है जिसके ज़रिए महिलाओं के व्यवहार को समझने में मदद मिली। जैसेकि अगर कोई महिला बाइसेक्सुअल है तो उससे पूछा गया कि पुरुष और महिला के साथ उसके अलग-अलग अनुभव कैसे रहे।
इसी तरह के कई और सवालों में से एक सवाल ऑर्गेज़्मोमीटर से जुड़ा भी था. इस सवाल के ज़रिए महिलाओं से उनके ऑर्गेज़्म सुख को 0 से 10 के बीच एक उचित नंबर देने को कहा गया। इसमें 0 का मतलब था कोई ऑर्गेज़्म नहीं जबकि 10 का मतलब पूरी तरह से संतुष्टि।
इस स्टडी में जिन महिलाओं ने हिस्सा लिया उनकी उम्र 19 से 35 के बीच थी। स्टडी में यह भी पता चला कि ऑर्गेज़्म की मात्रा उम्र के साथ बढ़ती जाती है। इसी के साथ इस बात पर भी जनमत मिला कि यौन सुख में स्त्री के सुख को कम मायने मिलते हैं या पुरुष का सुख ही ज्यादा मायने रखता है।