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वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि आखिर कहां जाता है हिंद महासागर का जमा हुआ कचरा…

locationनई दिल्लीPublished: Apr 27, 2019 12:18:50 pm

Submitted by:

Navyavesh Navrahi

हिन्द महासागर है डम्पिंग ग्राउंड का दूसरा अड्डा
ऑस्ट्रेलिया की एक यूनिवर्सिटी ने लगाया इसका पता
इस जगह जाकर इकट्ठा हो रहा है समुद्र का सारा प्लास्टिक

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वैज्ञानिको ने पता लगाया कि आखिर कहां जाता है हिंद महासागर का जमा हुआ कचरा ..

नई दिल्ली। पृथ्वी के अलावा हिन्द महासागर ( hind mahasagar ) भी डम्पिंग ग्राउंड का दूसरा अड्डा बनता जा रहा है। वैज्ञानिकों ने खोज कर ऐसी जगह को ढूढा है, जहां कूड़े का अंबार जमा पड़ा था। अब उनके सामने यह बड़ा स्वाल था कि आखिर समुद्र का प्लास्टिक जाता कहा है ?
ऑस्ट्रेलिया ( Austreliya ) की एक यूनिवर्सिटी ( university ) के शोधकर्ताओं ने हिंद महासागर में प्लास्टिक ( plastic ) के कचरे को मापने और उसे ट्रैक करने के लिए एक संक्षिप्त शोध किया। जिसमें उनकी टीम ने पता लगाया की प्लास्टिक दक्षिणी हिंद महासागर से होता हुआ पश्चिमी हिस्से में जाकर इक्ट्ठा हो रहा है। यह प्लास्टिक का कचरा दक्षिण अफ्रीका ( Africa ) से दक्षिण अटलांटिक महासागर ( atlantic ) में बह जाता है।
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यूडब्ल्यूए की पीएचडी की स्टूडेंट मिरिजाम वैन डेर महीन ने कहा, ‘एशियाई मॉनसून प्रणाली की वजह से दक्षिणी हिंद महासागर में दक्षिण-पूर्व हवाएं प्रशांत और अटलांटिक महासागर की हवाओं की तुलना में अधिक तेज चलती हैं।’ जिस कारण यह सारा प्लास्टिक पश्चिमी हिस्से में जाकर एकत्रित हो जाता है।
यह भी कहा कि ‘ये तेज हवाएं प्लास्टिक कचरे को पश्चिम हिंद महासागर से पश्चिम की ओर धकेलती हैं।’ उत्तरी हिंद महासागर की संरचना से लगता है कि यह बंगाल की खाड़ी में एकत्रित हो सकता है। यह भी हो सकता है कि तैरता हुआ प्लास्टिक आखिर में जाकर तटों पर जमा होता हो। शोधकर्ताओं के अनुसार- मानसूनी हवाओं द्वारा भी यह बहाया जाता होगा।
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यूडब्ल्यूए की चारी पैट्टीराची ने कहा, ‘दूरदराज में प्लास्टिक का पता लगाने के लिए अभी तक कोई तकनीक विकसित नहीं हुई है, हमें हिंद महासागर में प्लास्टिक का पता लगाने के लिए परोक्ष तरीकों का इस्तेमाल करना होगा।’ पैट्टीराची ने कहा कि हर वर्ष अनुमानित तौर पर 1.5 करोड़ टन प्लास्टिक अवशेष तट और नदियों के माध्यम से समुद्र में आता है। उन्होंने कहा, ‘इसके 2025 में दोगुना होने की आशंका है।’ यह अध्ययन ‘जनरल ऑफ जियोलॉजिकल रिसर्च’ में प्रकाशित हुआ था।
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