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विज्ञान और टेक्नोलॉजी

उद्योगों से निकलने वाले कचरे से बनेगी ऑस्ट्रेलिया की सड़क

ऑस्ट्रेलिया के शहर सिडनी में सडक़ बनाने की तैयारी
रिपोर्ट के मुताबिक कंक्रीट से बनने वाली सडक़ों की वजह से सात फीसदी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन अधिक होता है।

Jul 30, 2019 / 03:23 pm

manish singh

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ऑस्ट्रेलिया में दुनिया की पहली सडक़ उद्योगों से निकलने वाले कचरे से बनेगी

नई दिल्ली। प्रदूषण का बढ़ता स्तर पूरी दुनिया के लिए चुनौती बन चुका है। एक रिपोर्ट के मुताबिक कंक्रीट से बनने वाली सडक़ों की वजह से सात फीसदी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन अधिक होता है। दुनिया का हर देश इसके स्तर को कम करने की कोशिश में लगा है जिससे भविष्य की पीढ़ी के लिए वातावरण को सुरक्षित बनाया जा सके। इसी कड़ी में ऑस्ट्रेलिया में दुनिया की पहली सडक़ उद्योगों से निकलने वाले कचरे से बनाने की तैयारी चल रही है।

कोयले से संचालित होने वाले बिजली संयत्रों और स्टील उत्पादन में लगे उद्योगों से निकलने वाले कचरे से ऑस्ट्रेलिया के शहर सिडनी में सडक़ बनाने की तैयारी चल रही है। इसका उद्देश्य सडक़ों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले कंक्रीट से वातावरण में ग्रीन बढऩे वाले हाउस गैसों के स्तर को कम करना है। यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ वेल्स और कॉरपेटिव रिसर्च सेंटर फॉर लो कार्बन लिविंग (सीआरसीएलसीएल) जियोपॉलीमीर कंक्रीट के लिए उद्योगों के लिए गाइडलाइन तैयार करने में लगी है।

5 साल तक सडक़ की निगरानी
स्कूल ऑफ सिविल एंड एनवॉयरमेंटल इंजीनियरिंग के हेड स्टीफन फॉस्टर का कहना है कि औद्योगिक कचरे से तैयार सडक़ की अगले पांच साल तक निगरानी की जाएगी। शुरुआत के 3 से 12 महीनों में इसकी क्षमता की जानकारी मिल जाएगी जिस आधार पर सुधार और बदलाव किया जा सकता है।

फिर भारत में ऐसा क्यों नहीं?
ऑस्ट्रेलिया में औद्योगिक कचरे से सडक़ निर्माण के बाद अब पूरा ध्यान भारत पर है कि यहां पर इस तरह की सडक़ का निर्माण क्यों नहीं संभव है? देशभर में कुल करीब 43,936 औद्योगिक ईकाइयां हैं जिनसे करीब 70 लाख टन प्रदूषित कचरा निकलता है। एसोचैम की एक रिपोर्ट के अनुसार 1.4 लाख टन कचरा हर दिन पैदा हो रहा है। इसमें 10 से 15 फीसदी कचरा जानलेवा है जिसका सीधा असर पर्यावरण और मनुष्यों पर पड़ रहा है।

2018 में 3.5 बिलियन टन सीओ-टू
कार्बन उत्सर्जन से जुड़े एक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2018 में कुल 4.1 बिलियन टन सीमेंट का उत्पादन पूरी दुनिया में हुआ। इससे करीब 3.5 बिलियन कार्बनडाई ऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ। शोधकर्ताओं के अनुसार जियोपॉलीमर जो कोयले की आग से चलने वाले फरनेंस से बनता है वे एक टन सीमेंट के उत्पादन में करीब 300 किलोग्राम कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन करता है। वहीं मशीनीकरण से जिस सीमेंट का निर्माण होता है उससे 900 किग्रा. कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। कोयले की तकनीक बिजली बचाने में भी कारगर है। इससे औसतन एक घर में दो हफ्ते में इस्तेमाल होन वाली बिजली की बचत होगी।

2030 तक कार्बन उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य
यूनाइटेड नेशन क्लाइमेंट चेंज कॉन्फ्रेंस में नीति निर्माताओं और पर्यावरणविदो ने कहा था कि 2030 तक सीमेंट से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को 16 फीसदी कम करना होगा। सिडनी की मेयर क्लोवर मुरे का कहना है कि जियोपॉलीमर से सडक़ निर्माण को लेकर चल रहा ट्रायल सफल होता है तो भविष्य में कार्बन उत्सर्जन की दर बहुत कम होगी। उन्होंने कहा कि सिडनी में कार्बन उत्सर्जन की दर को कम करने के लिए कंक्रीट आपूर्ति करने वालों से भी बात कर रहे हैं जिससे सडक़ निर्माण के दौरान प्रदूषण और ग्रीन हाउस गैसों के उज्सर्जन को कम किया जा सके।

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