लेकिन अब नई तकनीक आ गई है जिसके जरिए खाई जाने वाली एंटीबायोटिक की असलियत जान पाएंगे। जी हां, वैज्ञानिकों ने ऐंटीबायॉटिक दवाओं की प्रमाणिकता की जांच के लिए पेपर पर आधारित एक ऐसी जांच प्रणाली विकसित की है जिससे कुछ ही मिनट में पता चल जाएगा कि दवाई असली है या नकली। दवाई नकली होने पर यह कागज खास तरह के लाल रंग में तब्दील हो जाता है।
विकासशील देशों में बड़े पैमाने पर घटिया दवाओं का उत्पादन और वितरण होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) का अनुमान है कि दुनियाभर में लगभग 10 फीसदी दवाइयां फर्जी हो सकती हैं और उनमें से 50 फीसदी ऐंटीबायॉटिक के रूप में होती हैं।
नकली ऐंटीबायॉटिक दवाइयों से न केवल मरीज की जान को खतरा पैदा होता है बल्कि दुनिया भर में ऐंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध की बड़े पैमाने पर समस्या भी पैदा होती है। अनुसंधानकर्ताओं ने कागज आधारित जांच का विकास किया है जो तेजी से इस बात का पता चल सकता है कि दवाई असली है या नहीं या क्या उसमें बेकिंग सोडा जैसी चीजें मिलाई गई हैं।
इसके अलावा आप केवल व्हाट्सएप मैसेज के जरिए भी दवा के असली या नकली होने की पहचान कर सकते हैं। दरअसल आने वाले समय में आप केवल एक मैसेज के जरिए ये पता कर पाएंगे क्योंकि अगले 3 महीनों में सबसे ज्यादा बिकनेवाली दवा पर कंपनियां यूनीक कोड प्रिंट करेंगी। बताया जा रहा है कि इस कदम से बड़े ब्रांड की कम से कम 300 दवा के नकल के कारोबार पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।
दावा तकनीकी सलाहकार बोर्ड (ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड या DATB) ने 16 मई को इस व्यवस्था को लागू करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। डीटीएबी के मुताबिक, दवा कंपनियों के लिए इस व्यवस्था को अभी अनिवार्य नहीं बनाया गया है। इसके तहत देश में बड़े ब्रांड की सबसे अधिक बिकने वाली 300 दवा के लेबल पर 14-अंकों वाला एक नंबर प्रिंट होगा।
बाजार में बिकने वाली दवा के हर पत्ते या बोतल पर अलग-अलग नंबर होगा। दवा के लेबल पर एक मोबाइल नंबर भी प्रिंट किया जाएगा जो दवा की मार्केटिंग करने वाली कंपनी जारी करेगी। 14 अंकों के इस यूनिक नंबर को लेबल पर दिए मोबाइल नंबर पर मैसेज करने पर दवा बनानेवाली कंपनी का नाम-पता, बैच नंबर, निर्माण और एक्सपायरी डेट जैसी जानकारी मिल जाएगी। यानी अब नए तरीकों की बदौलत नकली दवा कारोबार से बीमारों को मुक्ति मिल पाएगी और लोग चालबाजों के शिकंजे में फंसने से बचेंगे।