एम्स में आई स्पेशलिस्ट के तौर पर अधिकृत डॉक्टर सुबोध जैन का कहना है कि आंखों के आई बाल्स को छोड़कर शरीर के सभी हिस्से उम्र के मुताबिक बढ़ते घटते रहते हैं, इसलिए बच्चों की आंंखें आमतौर पर ज्यादा बड़ी दिखती है और उम्र बढ़ने के साथ साथ उसकी आंखें सामान्य दिखने लगती हैं।
कुछ लोगों की दोनों आखों का रंग अलग – अलग होता है जिसे हेटरो क्रोमिया कहा जाता है। ये एक सच्चाई है कि आप लाख चाहें लेकिन आखें खोलकर कभी नहीं छींक सकते। इसके लिए वैज्ञानिक ट्राइजेमिनल नर्व जिम्मेदार हैं। ट्राइजेमिनल नर्व, तंत्रिका तंत्र का वह हिस्सा होती है जो चेहरे, आंख, नाक, मुंह और जबड़े को नियंत्रित करती है. दरअसल छींकने के दौरान अवरोध हटाने का दिमागी संदेश यह तंत्रिका आंखों तक भी पहुंचा देती है. और इसकी प्रतिक्रिया में ही हमारी पलकें झपक जाती हैं।
दुनिया में शतुमुर्ग की आखें उसके दिमाग से बड़ी होती हैं। गोल्डफिश मछली की बात की जाए तो वो अपनी आखें नहीं बंद कर सकती क्योंकि उसकी पलकें नहीं होती। कोई भी व्यक्ति अपनी आंख से केवल तीन रंग देख पाता है। नीला हरा और लाल। बाकी के रंग इन्हीं तीन रंगों की मदद से बनते हैं जिनकी मदद से हम दुनिया के एक करोड़ से ज्यादा रंग देख पाते हैं। इंसान का आधे से ज्यादा दिमाग आंखों को संभालने में ही लग जाता है। एक व्यक्ति की आंख 576 मेगापिक्सल की होती है।
इसे एक जगह फोकस करने में 2 मिलीसेंकेंड का समय लगता है। नीली आंख वालों में मेलेनिन ज्यादा पाया जाता है। दरअसल मेलेनिन का कम और ज्यादा होना ही किसी व्यक्ति की आंख के रंग को तय करता है। एक नवजात बच्चा केवल 15 इंच की दूरी तक ही साफ देख पाता है।
जब हम किसी से बात करते हैं तो आंखें ज्यादा झपकती है, जबकि जब हम कंप्यूटर या स्क्रीन पर काम करते हैं तो आंख कम झपकती है। इसलिए बात करने की अपेक्षा कंप्यूटर पर काम करने से आंखे ज्यादा थक जाती है क्योंकि उन्हें ज्यादा फोकस करना पड़ता है। बाज की नजर एक आम इंसान से ५ गुऩा ज्यादा तेज होती है। मधुमक्खियों की सबसे ज्यादा आंखें होती हैं।