परीक्षा का परिणाम जो इन्होंने तैयार किया था उसका परिणाम 58 साल बाद आ रहा है और आज भी उसपर शोध चल रही है। हाल ही ‘फाइट अगेंस्ट अल्जाइमर डिजीज’ को लेकर जारी हुई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि उस समय जिन बच्चों ने परीक्षा में सवालों का जवाब सही दिया था उन्हें 60 से 70 की उम्र में अल्जाइमर और डिमेंशिया जैसी बीमारी का खतरा उनकी तुलना में बहुत कम था जिनके परीक्षा में कम अंक आए थे। परीक्षा में छात्रों से स्कूली शिक्षा, सामान्य ज्ञान, व्यक्तित्व, स्वास्थ्य, घर की स्थिति से जुड़े सवाल पूछे गए थे। परीक्षा देने वाले बच्चों को ये बताया गया था कि इस परीक्षा का मकसद ये पता करना है कि कौन से छात्र विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में रूचि रखते हैं और इस क्षेत्र में अच्छा कर सकते हैं।
‘प्रोजेक्ट डेटा टैलेंट’ पर वाशिंगटन स्थित अमरीकन इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च में अध्ययन किया गया है। उस समय परीक्षा देने वालों में से 85 हजार लोगों के परिणाम की तुलना 2012-13 मे मेडिकल केयर की रिपोर्ट से की जिसमें निकलकर आया कि परीक्षा परिणामों के आधार पर डिमेंशिया के लक्षण किशोरावस्था से ही दिखने लगा था। जिन बच्चों ने कम अंक हासिल किए उनमें 60 से 70 की उम्र से पहले ही अल्जाइमर और डिमेंशिया के लक्षण दिखने लगे हैं।
73 की उम्र में रिजल्ट से हैरान
बच्चों की परीक्षा लेने वाली जोवान लेविन जिनकी उम्र अब 73 वर्ष है और ह्यूमन रिसोर्स डायरेक्टर के तौर पर काम करने का अनुभव है। वे बताती हैं कि उस वक्त जिन बच्चों ने परीक्षा दी थी उसमें 75 फीसदी बच्चों ने अच्छे अंक हासिल किए थे। परीक्षा में कम नंबर पाने का मतलब ये नहीं था कि उन्हें भविष्य में अल्जाइमर की तकलीफ होगी, इससे सिर्फ एक अंदाज या कयास लगा सकते थे। मैं आगे की सोच रही थी जिससे ये पता चल सके कि अगर ऐसा होता है तो मैं या दूसरे अभिभावक अपने बच्चों के लिए पहले से तैयार रहें। जिन बच्चों ने परीक्षा दी थी उनका फॉलोअप 58 साल बाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजिंग, कोलंबिया यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल सेंटर और यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैलिफोर्निया के सहयोग से होगा।
ऐसे कई सवालों के जवाब देने होंगे
स्टूडेंट से बुढ़ापे की ओर जा चुके पुरुष या महिला से उनके जीवन से जुड़े सवाल पूछे जाएंगे। जैसे क्या आपके माता-पिता सिगरेट पीते थे, आपने सिगरेट पीना कैसे सिखा बचपन और बुढ़ापे में दिमाग को लेकर क्या सोचाते हैं जैसे तमाम सवालों को जवाब देना होगा। अब विशेषज्ञ ये कहने लगे हैं कि इस तरह के शोध को स्कूली शिक्षा में शामिल करना होगा जिससे बुढ़ापे में अल्जाइमर से बचा जा सके।