समुद्र की 100 फीट गहराई में ईंधन बनाने की खोज
डॉ. रजनीश कुमार, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआटी) मद्रास के कैमिकल इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर हैं। अपनी टीम के साथ मिलकर एक ऐसी खोज की है जिसमें क्लैथरेट हाइड्रेट मॉलीक्यूल जो मिथेन की तरह होता है उसका इस्तेमाल ईंधन के रूप में हो सकता है। ये तत्त्व आमतौर पर बहुत अधिक या बहुत कम तापमान में बनता है जैसे समुद्र में 100 मीटर नीचे या ग्लेशियर जैसे क्षेत्रों में। आइआइटी मद्रास की टीम ने लैब में 263 डिग्री सेल्सियस का तापमान पैदा किया जो सामान्यत: समुद्र की गहराई में ही संभव हो पाता है। इस तकनीक से कॉर्बनडाईऑक्साइड पर भी नियंत्रण कर ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के साथ कार्बनडाईऑक्साइड को समुद्र की तलहटी में दबाया जा सकता है।
दिल्ली को पराली के धुंए से बचाने की है तैयारी
डॉ. दिनेश मोहन दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों को प्रदूषण से बचाने के लिए ‘बायोचार’ तकनीक खोजी है जिससे पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को रोका जा सके। इन्होंने खेतों में जमीन के भीतर रिएक्टर तैयार करने का फॉर्मूला बनाया जिसमें पराली को जमीन के भीतर डालकर झोपड़ी बनाने में इस्तेमाल होने वाले कीचड़ से ढक देते हैं। इस प्रक्रिया में 24 से 48 घंटे का समय लगता है। कुछ साल के भीतर पराली जमीन के भीतर सड़ जाती है। इससे भूर्मि की ऊर्वरक क्षमता बढ़ती है। भूमि में पानी की नमी नमी लंबे समय तक बनी रहेगी।
कैंसर सेल्स पर अटैक करती है इनकी दवा
डॉ. संजीब कुमार साहू भुवनेश्वर के इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेस में वैज्ञानिक हैं। कैंसर ड्रग डिलेवरी तकनीक में नैनो टेक्नोलॉजी के एक्सपर्ट हैं। इन्होंने अपनी रिसर्च में पाया कि इलाज के बाद पूरी तरह ठीक हो जाने वाला कैंसर दोबारा इसलिए होता है क्योंकि स्वस्थ कोशिकाओं में भी कैंसर सेल्स रह जाते हैं जो लंबे समय बाद उभरकर सामने आते हैं। ऐसी स्थिति में मैग्नेटिक (चुंबकीय) नैनो पार्टिकल तकनीक कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने के साथ एमआरआइ जांच में मदद करती है। कैंसर रिलैप्स को खत्म करना लक्ष्य है।
60 यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री
डॉ. सी.एन राव भारत रत्न और वैज्ञानिक सी.एन राव कैमेस्ट्री के प्रसिद्ध जानकार हैं। इन्हें 60 विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि मिली है। इनके 1500 से अधिक शोध पत्र और 45 से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी है। मौजूदा समय में देश के प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार परिषद के प्रमुख हैं। 17 साल की उम्र में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से कैमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। 24 साल की उम्र में 1958 के दौर में दो साल नौ महीने में ही पीएचडी की डिग्री पूरी कर ली थी।
फसलों की गुणवत्ता बढ़ाने में लगे हैं
डॉ. राजीव वाष्र्णेय अंतरराष्ट्रीय स्तर के कृषि वैज्ञानिक हैं और इस क्षेत्र में इन्हें बीस वर्षों का अनुभव है। अभी ये ग्लोबल रिसर्च प्रोग्राम के तहत फसलों का जीन बैंक तैयार करने के साथ ब्रीडिंग सेल, बीज, मॉलीक्यूलर बायोलॉजी और जेनेटिक इंजीनियरिंग को लेकर काम कर रहे हैं जिससे कृषि क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाकर किसानों की आय और फसलों की गुणवत्ता को बेहतर किया जा सके। कृषि क्षेत्र को लेकर इनके 325 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।