महाराजा माधोसिंह द्वितीय ब्रितानी युवराज प्रिंस अलबर्ट एडवर्ड की ताजपोशी में शरीक होने जब सन् 1902 में लंदन गए थे तो उनके साथ इष्टदेव राधा-गोपाल भी गए थे। इतिहासकार व कवि प्रभाशंकर उपाध्याय के मुताबिक धर्म भ्रष्ट नहीं हो इसके लिए ‘टॉमस कुक कंपनीÓ का नवनिर्मित जहाज ‘ओलंपियाÓ को डेढ़ लाख रुपए में किराए पर लिया गया था। जहाज में रसोईघर अतिरिक्त बनवाए गए थे। उनमें से एक भगवान का व दूसरा राजा का था। गंगाजल से संपूर्ण जहाज की धुलाई की गई थी। इसके बाद सवा सौ लोगों के लवाजमे, तीस लाख मूल्य के जेवरात के साथ महाराज उसमें सवार हुए।
लंदन में निकाली लड्डू गोपाल की यात्रा
1902 में लंदन पहुंचने के बाद रेलवे स्टेशन से ठहरने के स्थान यानी कैंपडन-हिल तक की यात्रा दो बग्घियों में संपन्न हुईं। एक घोड़ा गाड़ी में राजा और दूसरी में उनके इष्टदेव राधा-गोपाल विराजमान थे। आगे-पीछे राजसी लाव लश्कर सहित जयपुरिया लिबास में सवा सौ लोग, छत्र-चंवर सहित चल रहे थे।
इतिहासकार व कवि प्रभाशंकर उपाध्याय के अनुसार लडï्डू गोपाल की शोभायात्रा का लंदन के अखबारों में विशेष वर्णन किया गया।
दूसरी सुबह लंदन के तीन
प्रमुख अखबारों ‘मार्निंग पोस्ट’, ‘क्रॉनिकल’ व ‘गे्रट थॉट्स’ की सुर्खियां थीं, ‘देवता सहित
एक राजा लंदन मेंÓ। प्रकाशित समाचारों ने समूचे ब्रिटेन में धूम मचा दी थी।
345 किलो वजनी गंगाजली थी साथ
सामानों में पांच फुट तीन इंच ऊंचे, 345 किलो वजन के चांदी के विशालकाय दो कलश ‘गंगाजलीÓ भी थे, जिनमें गंगाजल भरा हुआ था। गंगाजल को पूजा के साथ पेयजल के रूप में काम लिया गया था। ये कलश आज भी जयपुर राजमहल के सर्वत्रोभद्र चौक में रखे हुए देखे जा सकते हैं। इन्हें चांदी के चौदह हजार झाड़शाही सिक्कों को गलाकर, जयपुर के दो सुनारों ने बनाया था। चांदी की सबसे बड़ी वस्तु के रूप में इनको गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज किया गया है।