कॉटन कैंडी बच्चों के स्वास्थ्य से सीधा-सीधा खिलवाड़ है और कॉटन कैंडी का सेवन बच्चों को कैंसर की ओर भी धकेल सकता है। इस बात का खुलासा पूर्व में देश के कुछ राज्यों में की गई जांच में हुआ था। इसके बाद देश के कुछ राज्यों में सरकारों ने कॉटन कैण्डी के उत्पादन और बिक्री पर रोक लगा दी थी, लेकिन इतना सब होने के बाद भी जिले सहित पूरे प्रदेश में कॉटन कैण्डी का उत्पादन और बिक्री बेरोकटोक हो रही है।
तीन राज्यों में है बैन
वर्तमान में देश के तीन राज्य पोण्डुचेरी, हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु में गुडिया के बाल यानी कॉटन कैण्डी का उत्पादन और बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। सोलन, शिमला, बिलासपुर और अन्य शहरों में इनके सैंपल भरे गए थे। इसमें हानिकारक केमिकल पाया गया है। हिमाचल प्रदेश के सोलन में 20 फरवरी 2024 को शहर से सात सैंपल भरे थे, जिन्हें जांच के लिए सीटीएल कंडाघाट भेजा था। कैंडी में कैंसर कारक तत्व पाए गए थे। इसके बाद इसके उत्पादन और बिक्री पर रोक लगा दी गई थी। इसी प्रकार फरवरी में ही तमिलनाडु सरकार ने भी कॉटन कैण्डी में कैंसर कारक तत्व पाए जाने के कारण इस पर रोक लगाई थी। वहीं पोण्डुचेरी में तो इस पर पहले ही रोक लगाई जा चुकी है।
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रोडमाइन बी कैमिकल का उपयोग
तीनों राज्यों में जब कॉटन कैण्डी के सैंपल की जांच की गई थी तो उसमें रोडमाइन बी नाम का एक कैमिकल पाया गया था। चिकित्सक विशेषज्ञों की माने तो इस कैमिकल के कैंसर हो सकता है। ऐसे में तीनों राज्यों में इस पर प्रतिबंध लगाया गया था।
जिले में अब तक नहीं लिए सैंपल
देश के तीन राज्यों में जहां कॉटन कैंण्डी के उत्पादन और बिक्री को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया हैं वहीं प्रदेश में यह अब भी बेरोकटोक बिक रही है। जिले में तो आलम यह है कि स्वास्थ्य विभाग की ओर से कॉटन कैण्डी के सैंपल लेने तक जहमत नहीं उठाई गई है। ऐसे में जिले में कॉटन कै ण्डी के नाम पर बच्चों के स्वास्थ्य के साथ खुलेआम खिलवाड़ किया जा रहा है।
यह है इसका इतिहास
कॉटन कैण्डी का अविष्कार 1897 में अमेरिका के एक दंत चिकित्सक विलिसयम्स जॉन मोरिसन नाम के एक दंत चिकित्सक ने किया था। इसके करीब दस साल के बाद सेंट लुइस वर्ल्ड फेयर में इसे पहली बार प्रदर्शित किया गया और इसे फेयरी फ्लास नाम दिया गया। बाद में 1921 में इसका नाम बदलकर कॉटन कैण्डी किया किया। इसका कारण था कि यह रुई जैसी ही दिखाई देती है। हालांकि आस्ट्रेलिया में अभी भी इसे फेयरी फ्लास के नाम से ही जाना जाता है।
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अभी तक हमारी ओर से कॉटन कैण्डी के सैंपल नहीं लिए गए हैं। जल्द ही सैंपल लिए जाएंगे। सैंपल की जांच के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।
डॉ. धर्मसिंह मीणा, सीएमएचओ, सवाईमाधोपुर।