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ग्राउंड जीरो से पत्रिका: राफेल-व्यापमं नहीं यहां सड़क, शिक्षा ही मुद्दा, 7 विधानसभा 7 रिपोर्टर ने टटोली नब्ज

locationसतनाPublished: Nov 19, 2018 12:57:41 pm

Submitted by:

suresh mishra

जो समस्याएं पिछले चुनावों में रहीं वही आज भी बरकरार

MP election 2018: satna jila me sadak shiksha sabse bada mudda

MP election 2018: satna jila me sadak shiksha sabse bada mudda

सतना। विधानसभा चुनाव के लिए मतदान को महज 9 दिन शेष रह गए हैं। लेकिन, जिले में चुनावी पारा अभी तक नहीं चढ़ पाया है। जिले के सातों विधानसभा क्षेत्र की हमने नब्ज टटोली तो ग्रामीण मतदान को लेकर अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं हुए। स्थानीय समस्याओं पर जानना चाहा तो उनकी भड़ास निकल गई। यहां ग्रामीण राफेल और व्यापमं घोटाले पर चर्चा नहीं करते। 2013 के विधानसभा चुनाव के दौरान मतदाताओं की जो समस्याएं थीं वो इस चुनाव में भी बरकरार है।
ग्रामीण सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोजगारी पर ही चर्चा करते मिल जाते हैं। क्षेत्र में ऐसा एक भी स्कूल नहीं जहां तय पद संख्या के आधार पर शिक्षक पदस्थ हों। सड़क और स्वास्थ्य के साथ बिजली और पानी जैसी समस्याएं भी आम हैं। उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज नहीं है। जहां कॉलेज है वहां प्राध्यापक नहीं। गांवों में तो आवारा मवेश किसानों के दुश्मन बने हैं। पेश है पत्रिका की रिपोर्ट :-
1- सतना: सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य सबका बिगड़ा विकास
शहर में सड़कों की बदहाली और बेतरतीब निर्माण लोगों के लिए मुसीबत बना है। यह स्थिति एकाएक नहीं बनी, बल्कि जनता वर्षों से परेशान है। चिकित्सा के भी मुकम्मल इंतजाम नहीं हैं। इलाज के लिए नागपुर, जबलपुर जाना पड़ता है। जिले की सबसे बड़ी रेफरल इकाई में चालू की गई ट्रामा यूनिट महज शिगूफा साबित हो रही है। भरहुत नगर के रमेश सिंह कहते हैं कि उच्च शिक्षा का कोई अच्छा केंद्र नहीं है। इससे प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में छात्र बड़े शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। बांधवगढ़ कॉलोनी के ज्ञानेंद्र सिंह कहते हैं कि फ्लाइओवर, ओवरब्रिज मेंटीनेंस, रीवा रोड निर्माण, जलावर्धन, सीवर लाइन सहित अन्य निर्माण कार्य चल रहे हैं। कुछ निर्माण कार्य तो नियत अवधि के दो साल बाद भी पूरे नहीं हो पाए हैं। रीवा रोड पर रात को नो पार्किंग का बोर्ड हटते ही निकलना मुश्किल होता है। धूल का गुबार लोगों को बीमार कर रहा है। लोग अस्थमा सहित अन्य बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। अतिक्रमण के कारण सड़कें सिकुड़ चुकी हैं। बेतरतीब खड़े वाहन ट्रैफिक व्यवस्था ध्वस्त करते हैं। शिक्षा व्यवस्था भी चौपट हो चुकी है। रोजाना लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
2- चित्रकूट: डकैतों की दहशत बरकरार, नहीं मिटा कुपोषण का कलंक
भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट की ख्याति देश-विदेश तक फैली है। पर, इस धार्मिक नगरी का उद्धार आज तक नहीं हो सका। यहां के वाशिंदों में अब तक डकैतों की दहशत बरकरार है। कुपोषण का कलंक भी अब तक नहीं मिट सका। जैतवारा में कदम रखते ही एक युवा से पूछा कि क्या जरूरतें हैं इस इलाके की। सवाल पूरा भी नहीं हुआ था कि जवाब आया, किसी ने किया ही क्या है? कस्बे से जुड़े देहात इलाकों में सड़कें तक तो पक्की नहीं बनीं। स्कूलों से मास्टर एेसे भागते हैं जैसे तूफान आने वाला हो। अस्पताल में डॉक्टर नहीं मिलते हैं। पीने का पानी चाहिए तो पहले सैकडा़ें कदम चलकर पसीना बहाना पड़ता है। रोजगार के नाम पर ठेंगा भी नहीं। बिरसिंहपुर की ओर रुख करने पर पता चला कि कुछ देहात अब भी एेसे हैं जहां मुख्य मार्ग से जाने के लिए कच्चे रास्ते ही सहारा है। बिजली पर्याप्त नहीं मिलने से सिंचाई भी प्रभावित रहती है। यहां से मझगवां पहुंचे तो वहां के हाल भी कुछ एेसे ही मिले।
3- रैगांव: यहां प्रसव केंद्र पर ताला, बिना शिक्षकों का एक्सीलेंस स्कूल
1998 का चुनाव जिन मुद्दों को लेकर लड़ा गया था आज 20 साल बाद 2018 का चुनाव भी उन्हीं मुद्दों को लेकर लड़ा जा रहा है। क्षेत्र के लोग अभी भी सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी प्राथमिक सुविधाओं के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। अस्पताल में डॉक्टर नहीं तो विद्यालय में शिक्षक नहीं हैं। क्षेत्र के इकलौते प्रसव केंद्र पर स्वास्थ्य महकमे द्वारा स्टाफ की कमी के चलते ताला डाल दिया गया। प्रसव के लिए गर्भवती को 19 किमी दूर सतना ले जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं। ग्रामीणों की इन समस्याओं को लेकर सत्ता पक्ष तो दूर विपक्ष में बैठे माननीयों ने भी आवाज नहीं उठाई। खामियाजा क्षेत्र के लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
4- नागौद: जगजाहिर अपना घर न देते तो पेड़ के नीचे ही लगता स्कूल
16 पंचायतों की 84 गांवों वालों परसमनिया पठार विकास से दूर है। आज भी बच्चों को पढऩे के लिए स्कूल की छत नहीं है। जो है भी वह घटिया निर्माण के कारण एक साल में ही गिरने लगी है। इलाज की व्यवस्था नहीं। पठार के नीचे नागौद बेल्ट में जाएं तो बरगी नहर से सिंचाई की राह तकते किसानों की आस टूट चुकी है। भरौली के जगजाहिर सिंह बताते हैं, पहले गांव का विद्यालय परसमनिया में लगता था। जब वहां के विद्यालय का उन्नयन हो गया तो गांव के बच्चों का नाम वहां से काट कर भरौली में अलग से लगाने को कह दिया गया। लेकिन, विद्यालय का भवन न होने से गांव के 30 के लगभग बच्चे पेड़ के नीचे पहुंच गए। अतिथि शिक्षक पेड़ के नीचे कक्षा लगाने लगे। बारिश में पढ़ाई पूरी तरह ठप हो जाती थी। इसलिए मैंने अपने घर को नि:शुल्क स्कूल के लिए दे दिया। ग्रामीणों ने हल्ला मचाया तो पिछले साल किसी तरह से 8 लाख रुपए के लगभग राशि स्वीकृत कर दी गई पर भवन का काम आज तक स्वीकृत नहीं हुआ।
5- मैहर: सड़क पर दौड़ते भारी वाहन और अतिक्रमण बड़ा मुद्दा
मैहर के लिए सबसे बड़ा मुद्दा बीच कस्बे से होकर गुजरते भारी वाहन हैं। ओम प्रकाश द्विवेदी कहते हैं कि बाइपास शुरू होने के बाद भी भारी वाहन कस्बे के बीच से होकर गुजरते हैं। पत्थर लेकर गुजरने वाले डंपर व हाइवा भी रहवासियों के लिए भारी पड़ रहे हैं। इससे सड़कों की स्थिति काफी खराब है। अधिकतर ग्रामीण सड़कें साल-दो साल के अंदर बनी हैं। लेकिन भारी वाहनों के कारण परखच्चे उधड़ चुके हैं। वेद प्रकाश कहते हैं कि मैहर अतिक्रमण की चपेट में है। हर प्रमुख चौराहे पर ठेले गुमटी वाले अतिक्रमण किए हुए हैं। इससे बाजार में कई बार यातायात बाधित होता है। स्थानीय लोग इसको लेकर नाराजगी जाहिर करते हैं। पर सुनने वाला कोई नहीं। विकास कहते हैं कि शहर की मुख्य सड़क मुख्यमंत्री अधोसंरचना के तहत विकसित की गई थी, लेकिन अभी से उसकी स्थिति खराब हो गई है। जगह-जगह गड्ढे देखने को मिल जाएंगे। इससे लोगों को चलने में परेशानी होती है।
6- अमरपाटन: बेरोजगारी बड़ा मुद्दा, उद्योग के नाम पर लगी एक फैक्ट्री भी बंद
क्षेत्र की जनता ने एक से बढ़कर एक दिग्गज नेता चुनकर विधानसभा भेजे पर उनकी उम्मीदों के अनुसार विकास नहीं हुआ। यहां बेरोजगारी व पलायन बड़ा मुद्दा है। युवा जयप्रकाश ने बताया कि उद्योग धंधे न होने से लोगों को काम की तलाश में बाहर जाना पड़ता है। उनके पास बैठे रामनरेश ने कहा कि क्षेत्र के विधायक उद्योग मंत्री भी रह चुके हैं, लेकिन उद्योग के नाम पर एक शराब फैक्ट्री लगवाई थी, वह भी बंद हो गई है। शिक्षा व स्वास्थ्य की व्यवस्था भी बेटपरी है। भीषमपुर से आए सत्येंद्र ने बताया कि कहने को तो 100 बेड का अस्पताल है, लेकिन डॉक्टर नहीं मिलते। महिला डॉक्टर न होने से उपचार के लिए सतना-रीवा जाना पड़ता है। रामनगर और ताला में कॉलेज खोल दिए गए, लेकिन स्टाफ व भवन ही नहीं है। इससे यहां अध्ययनरत बच्चों का भविष्य अधर में है। पेयजल और अतिक्रमण भी यहां बड़ी समस्या है। वार्ड-१ के कैलाश सेन ने बताया कि बस्ती में टंकी है, लेकिन पाइपलाइन नहीं डाली गई।
7- रामपुर बाघेलान: कॉलोनियों तक नहीं पहुंचा विकास, ऐरा प्रथा भी समस्या
बैरिहा निवासी उपेंद्र सिंह ने कहा, गांव में थोड़ा बहुत विकास हुआ हैै। लेकिन, एेसा कोई बड़ा काम नहीं हुआ जिससे जनता के मुद्दे बदल जाएं। जनता को सड़क, बिजली, स्वास्थ्य एवं गांव में शिक्षा मिले और क्या चाहिए। बकिया गांव से निकली मुख्य सड़क शानदार दिखी पर विकास गांव की कॉलोनियों तक नहीं पहुंच पाया। गांव की अंदरूनी सड़कें आज भी कच्ची हैं। बैलो बकिया के राजेश सिंह ने कहा कि ऐरा प्रथा सबसे बड़ी समस्या है। मनकहरी सीमेंट फैक्ट्री के आसपास के गांवों में बेरोजगारी मुख्य मुद्दा दिखा। आइटीआइ करने के बाद नौकरी तलाश रहे विवेक पाण्डेय ने कहा कि गांव में फैक्ट्री होने के बाद भी क्षेत्र के युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा। क्षेत्र में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, तीन पीएचसी तथा आधा दर्जन उप-स्वास्थ्य केन्द्र हैं। पर यहां की चार लाख आबादी प्राथमिक इलाज के लिए क्षेत्र में सक्रिय झोलाछाप चिकित्सकों पर निर्भर है। गांव-गांव स्कूल खोले गए। लेकिन शिक्षकों की पदस्थापना नहीं की गई।
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