रैगांव विधानसभा क्षेत्र: 19 किमी का सफर
रैगांव जाने के लिए 11.45 बजे बस स्टैंड पहुंचा। ढाई घंटे बाद रैगांव जाने वाली बस स्टैंड पहुंची। देखते ही देखते 40 सीट क्षमता वाली बस में ७५ से अधिक यात्री सवार हो गए। जैसे ही मैं अंदर पहुंचा, कंडक्टर और हेल्पर ने मशक्कत के बाद गेट लगा दिया। करीब पांच वर्ष बाद बस से यात्रा है। अंदर खड़ा होना मुश्किल था। दोपहर 2 बजे बस रवाना हुई। किसी तरह पीछे एक सीट मिली। आसपास बैठे यात्रियों से पूछा कि आज इतनी भीड़ क्यों हैं? नारायणपुर जा रही पास खड़ी महिला बोल उठी, पहली बार बस चढ़ रहे हो क्या? एेसी भीड़ रहती है। सतना से १९ किमी है। बस में 1.20 घंटे लगते हैं।
रैगांव जाने के लिए 11.45 बजे बस स्टैंड पहुंचा। ढाई घंटे बाद रैगांव जाने वाली बस स्टैंड पहुंची। देखते ही देखते 40 सीट क्षमता वाली बस में ७५ से अधिक यात्री सवार हो गए। जैसे ही मैं अंदर पहुंचा, कंडक्टर और हेल्पर ने मशक्कत के बाद गेट लगा दिया। करीब पांच वर्ष बाद बस से यात्रा है। अंदर खड़ा होना मुश्किल था। दोपहर 2 बजे बस रवाना हुई। किसी तरह पीछे एक सीट मिली। आसपास बैठे यात्रियों से पूछा कि आज इतनी भीड़ क्यों हैं? नारायणपुर जा रही पास खड़ी महिला बोल उठी, पहली बार बस चढ़ रहे हो क्या? एेसी भीड़ रहती है। सतना से १९ किमी है। बस में 1.20 घंटे लगते हैं।
चित्रकूट विधानसभा क्षेत्र: 82 किमी की बस यात्रा
सुबह 10 बजे चित्रकूट जाने के लिए सतना बस स्टैंड पहुंचा तो बस के आगे खड़े होकर मझगवां, चित्रकूट चिल्ला रहे एक व्यक्ति पर नजर पड़ी। उससे पूछा चाचा बस कितने बजे चलेगी। सामने से जवाब आया सवा 12 बजे। बस पर नजर दौड़ाई तो चकाचक बस की सभी सीटें खाली थीं। डेढ़ साल बाद आज बस में चढऩे जा रहा हूं, ऐसे में थोड़ी झिझक भी हुई। मैंने कंडक्टर सीट पर अपना बैग रखा और ड्राइवर भूरा महाराज से बातें करने लगा। करीब 12.20 बजे बस रवाना हुई। ओवरब्रिज, कोठी तिराहा, मझगवां में रुकती हुई करीब तीन घंटे में 82 किमी तय कर बस चित्रकूट पहुंची।
सुबह 10 बजे चित्रकूट जाने के लिए सतना बस स्टैंड पहुंचा तो बस के आगे खड़े होकर मझगवां, चित्रकूट चिल्ला रहे एक व्यक्ति पर नजर पड़ी। उससे पूछा चाचा बस कितने बजे चलेगी। सामने से जवाब आया सवा 12 बजे। बस पर नजर दौड़ाई तो चकाचक बस की सभी सीटें खाली थीं। डेढ़ साल बाद आज बस में चढऩे जा रहा हूं, ऐसे में थोड़ी झिझक भी हुई। मैंने कंडक्टर सीट पर अपना बैग रखा और ड्राइवर भूरा महाराज से बातें करने लगा। करीब 12.20 बजे बस रवाना हुई। ओवरब्रिज, कोठी तिराहा, मझगवां में रुकती हुई करीब तीन घंटे में 82 किमी तय कर बस चित्रकूट पहुंची।
नागौद सीट: यहां बस से अच्छी ऑटो-टैक्सियों की सवारी
सतना बसस्टैंड से नागौद जाने के लिए सुबह 11 बजे बस पर चढ़ा। 32 सीटर बस में मबुश्किल 15 से 20 सवारी थे। पांच मिनट बाद ड्राइवर ने बस स्टार्ट की और थोड़ी-थोड़ी बढ़ाने लगा। 26 साल बाद बस का सफर करने में थोड़ी हड़बड़ाहट थी। अब मैं अंदर बस देखने लगा। सीट के आपसपास गंदगी पसरी थी। कांच तो दोनों हाथ से खोलना पड़ रहा था। सीट कवर जब से चढ़ा था, तब से नहीं धोया गया था। किसी तरह 11.15 बजे बस रवाना हुई। ओवर ब्रिज पर कुछ और सवारियां भरते हुए कोठी तिराहे पर 15 मिनट के लिए रुकी। यहां लगभग सीट भर चुकी थी। सितपुरा में कौशल्या मिश्रा बैठीं। उनका कहना है कि यात्रियों को सुविधाएं कभी नहीं दी गईं। महिला सीट सुरक्षित होने के बाद भी महिलाओं को नहीं दी जाती। लोगों ने बताया कि बस से बेहतर टैक्सियों की यात्रा है। करीब 38 मिनट के सफर में 25 किमी दूरी तय कर नागौद बस स्टैंड पहुंच गया।
सतना बसस्टैंड से नागौद जाने के लिए सुबह 11 बजे बस पर चढ़ा। 32 सीटर बस में मबुश्किल 15 से 20 सवारी थे। पांच मिनट बाद ड्राइवर ने बस स्टार्ट की और थोड़ी-थोड़ी बढ़ाने लगा। 26 साल बाद बस का सफर करने में थोड़ी हड़बड़ाहट थी। अब मैं अंदर बस देखने लगा। सीट के आपसपास गंदगी पसरी थी। कांच तो दोनों हाथ से खोलना पड़ रहा था। सीट कवर जब से चढ़ा था, तब से नहीं धोया गया था। किसी तरह 11.15 बजे बस रवाना हुई। ओवर ब्रिज पर कुछ और सवारियां भरते हुए कोठी तिराहे पर 15 मिनट के लिए रुकी। यहां लगभग सीट भर चुकी थी। सितपुरा में कौशल्या मिश्रा बैठीं। उनका कहना है कि यात्रियों को सुविधाएं कभी नहीं दी गईं। महिला सीट सुरक्षित होने के बाद भी महिलाओं को नहीं दी जाती। लोगों ने बताया कि बस से बेहतर टैक्सियों की यात्रा है। करीब 38 मिनट के सफर में 25 किमी दूरी तय कर नागौद बस स्टैंड पहुंच गया।
रामपुर बाघेलान: टूटे कांच, उखड़ी फर्श वाली बस में ‘आरामदेय’ यात्रा
तीन साल बाद शुक्रवार को बस में सफर करने का मौका मिला। दोपहर एक बजे बसस्टैंड से गोरइया-मझियार जाने वाली बस में बैठा। 24 सीटर मिनी बस की टूटी फर्श और पीछे कांच की जगह लगे फटे पुराने गत्ते हालत बयां कर रहे थे। सड़क अच्छी होने से सफर आरामदेह था। हालांकि बीच में छह किमी हिचकोले भी खाने पड़े। 30 किमी में 35 स्टॉप पर रुकते हुए बस करीब सवा घंटेमें मझियार पहुंची।
तीन साल बाद शुक्रवार को बस में सफर करने का मौका मिला। दोपहर एक बजे बसस्टैंड से गोरइया-मझियार जाने वाली बस में बैठा। 24 सीटर मिनी बस की टूटी फर्श और पीछे कांच की जगह लगे फटे पुराने गत्ते हालत बयां कर रहे थे। सड़क अच्छी होने से सफर आरामदेह था। हालांकि बीच में छह किमी हिचकोले भी खाने पड़े। 30 किमी में 35 स्टॉप पर रुकते हुए बस करीब सवा घंटेमें मझियार पहुंची।
मैहर सीट: रूट पर बसों की भरमार, पर मनमानी दौड़
करीब 10 साल बाद 11.40 बजे मैहर जाने के लिए बस में बैठा। अंदर 15.20 सवारी थीं। सेमरिया चौराहे तक आने में 10 मिनट लग गए। यहां भी बस रुकी, फिर गहरानाला, बाइपास, सतना नदी से पहले दो बार रुकी। मैं बस का जायजा लिया तो फर्श उखड़ी और कांच टूटे मिले। कंडम बस में 35 किमी का सफर करीब पौने दो घंटे में पूरा हुआ।
करीब 10 साल बाद 11.40 बजे मैहर जाने के लिए बस में बैठा। अंदर 15.20 सवारी थीं। सेमरिया चौराहे तक आने में 10 मिनट लग गए। यहां भी बस रुकी, फिर गहरानाला, बाइपास, सतना नदी से पहले दो बार रुकी। मैं बस का जायजा लिया तो फर्श उखड़ी और कांच टूटे मिले। कंडम बस में 35 किमी का सफर करीब पौने दो घंटे में पूरा हुआ।
अमरपाटन: बसें तो पर्याप्त पर आहत कर रही कर्मचारियों की बदतमीजी
हाइवे किनारे बसा अमरपाटन आवागमन के मामले में समृद्ध है। शुक्रवार को हकीकत जानने मैं करीब एक साल बाद दोपहर 12 बजे सतना से अमरपाटन की बस में सवार हुआ। चंद दूर चलते ही एक महिला बस के कंडक्टर से उलझ गई। रामनगर कहकर बैठाए थे, अब कहते हो बस अमरपाटन तक जाएगी। दूसरे यात्री ने बताया, रूट पर बसें तो हर 20 मिनट में मिल जाती हैं पर कर्मचारियों का रवैया आहत कर देता है। राज्य परिवहन की बसों में ऐसा नहीं था। 45 किमी की यात्रा 80 मिनट में तय की। बस स्टैंड में नत्थूलाल ने बताया, मौहरिया के लिए ऑटो ही सहारा है।
हाइवे किनारे बसा अमरपाटन आवागमन के मामले में समृद्ध है। शुक्रवार को हकीकत जानने मैं करीब एक साल बाद दोपहर 12 बजे सतना से अमरपाटन की बस में सवार हुआ। चंद दूर चलते ही एक महिला बस के कंडक्टर से उलझ गई। रामनगर कहकर बैठाए थे, अब कहते हो बस अमरपाटन तक जाएगी। दूसरे यात्री ने बताया, रूट पर बसें तो हर 20 मिनट में मिल जाती हैं पर कर्मचारियों का रवैया आहत कर देता है। राज्य परिवहन की बसों में ऐसा नहीं था। 45 किमी की यात्रा 80 मिनट में तय की। बस स्टैंड में नत्थूलाल ने बताया, मौहरिया के लिए ऑटो ही सहारा है।
सतना विधानसभा क्षेत्र: उखड़ी सड़क पर कंडम बस की यात्रा
मैं सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक बसस्टैंड आने-जाने वाले यात्रियों के बीच रहा। यहां बस में चढऩे-उतरने वाले करीब 300 मुसाफिरों से बात की। बड़ी ही दिलचस्प कहानी सामने आई। अमरपाटन विधानसभा के ताला के लिए सफर करने वाले यात्री आदित्यनाथ द्विवेदी ने बताया कि 60 किमी. के सफर में पूरा दिन गुजर गया है। सुबह 8 बजे बस में चढ़े और 12 बजे सतना पहुंचे हैं। 12 से 4 के बीच जल्दी-जल्दी खरीदारी कर बस में फिर सवार हो गए है। यह जर्जर सड़कों पर हिचकोले खिलाती हुई रात 8 बजे गांव पहुंचाएगी। आधी-अधूरी धूलनुमा सड़कों ने गांव और शहरों के बीच दूरियां बना दी है। डिग्री कॉलेज से बीएससी कर रहे रामपुर बाघेलान के रमेश सिंह ने बताया कि सड़क की हालत बहुत ही खराब है। घर जाने के लिए कॉलेज से एक घंटे पहले निकलना पड़ता है। जर्जर सड़क पर कंडम बसों में यात्री करना, जिंदगी को दावं पर लगाने जैसा है।
मैं सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक बसस्टैंड आने-जाने वाले यात्रियों के बीच रहा। यहां बस में चढऩे-उतरने वाले करीब 300 मुसाफिरों से बात की। बड़ी ही दिलचस्प कहानी सामने आई। अमरपाटन विधानसभा के ताला के लिए सफर करने वाले यात्री आदित्यनाथ द्विवेदी ने बताया कि 60 किमी. के सफर में पूरा दिन गुजर गया है। सुबह 8 बजे बस में चढ़े और 12 बजे सतना पहुंचे हैं। 12 से 4 के बीच जल्दी-जल्दी खरीदारी कर बस में फिर सवार हो गए है। यह जर्जर सड़कों पर हिचकोले खिलाती हुई रात 8 बजे गांव पहुंचाएगी। आधी-अधूरी धूलनुमा सड़कों ने गांव और शहरों के बीच दूरियां बना दी है। डिग्री कॉलेज से बीएससी कर रहे रामपुर बाघेलान के रमेश सिंह ने बताया कि सड़क की हालत बहुत ही खराब है। घर जाने के लिए कॉलेज से एक घंटे पहले निकलना पड़ता है। जर्जर सड़क पर कंडम बसों में यात्री करना, जिंदगी को दावं पर लगाने जैसा है।