कथक नृत्यांगना प्रीति सिंह: अंतरमन में बसीं हैं मेरी गुरु कथक नृत्यांगना प्रीति सिंह कहती हैं कि नृत्य के क्षेत्र में आज वो जो कुछ भी हैं सिर्फ गुरु की वजह से। मैं उन्हें अंतरमन से महसूस करती हंू। मेरी गुरु विद्याहरि देश पाण्डेय मेरे रोम-रोम में बसीं हैं। मेरे जीवन में उनकी बहुत गहरी छाप है। जब भी मंच पर नृत्य करती हंू तो हरपल उन्हें अपने पास पाती हंू। एेसा जुड़ाव तो मारने के बाद ही खत्म होगा। उन्होंने मुझे पूरी ईमानदारी और शिद्दत से नृत्य सीखाया। आज भी मैं नृत्य से जुड़े हर निर्णय की राय उनसे लेती हंू। उनके मार्गदर्शन में ही आगे बढ़ती हंू। उन्होंने मुझे समझाया कि मैं कितने भी ऊपर क्यों न पहुंच जाऊं पर अपना व्यतित्व हमेशा सहज और सरल रखूं। बचपन से आज तक उनका हाथ मेरे सिर पर बना हुआ है। एेसे गुरुओं का साथ पाना ही अपने आप में सौभाग्य का ***** है। मैंने उनसे जो कुछ भी सीखा वही आज अपने शिष्यों को प्रदान कर रही हूं।
अंबुज सिंह बघेल: मेरे गुरु मेरे पिता
कराते खिलाड़ी अंबुज सिंह बघेल बताते हैं कि उनके गुरु आरपी सिंह उनके पिता हैं। उन्होंने कभी भी अपने पिता को गुरु पर हावी नहीं होने दिया। इसी का नतीजा है कि वह मेरे लिए हमेशा कठोर रहे, मुझे सामने वाले से 21 होना सिखाया। कहीं भी 19 से 20 नहीं किया। नतीजा, मैं बारीकियों को अपने स्तर से सीख सका। उनका विश्वास और जज्बा ही मुझे हर पल आगे बढऩे को प्रेरित करता है। मुझे याद है बचपन में जब मैं उनसे कराते सिखता था तो वे तब तक नहीं रुकते थे जब तक कोई किक मेरे अभ्यास में न आ जाए। कराते तकनीक के साथ चीजों को इतनी बार रिपीट करवाते थे जब तक वह चीज हाथ पैर में न जाए। मुझे फ ाइट के समय कुछ सोचना ही नहीं पड़ता था और स्कोर अपने आप बन जाते। उन्होंने मुझे सिखाया कि असंभव कुछ भी नहीं। लगे रहो और बस लगे रहो। प्रैक्टिस मेकस मैन परफेक्ट अर्थात अभ्यास ही व्यक्ति को पूर्ण बनाता है। इसी का नतीजा है कि मैं शुरुआत में एक सामान्य खिलाड़ी था और सामान्य से खिलाड़ी को अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनाने का श्रेय सिर्फ मेरे गुरु को जाता है।
कराते खिलाड़ी अंबुज सिंह बघेल बताते हैं कि उनके गुरु आरपी सिंह उनके पिता हैं। उन्होंने कभी भी अपने पिता को गुरु पर हावी नहीं होने दिया। इसी का नतीजा है कि वह मेरे लिए हमेशा कठोर रहे, मुझे सामने वाले से 21 होना सिखाया। कहीं भी 19 से 20 नहीं किया। नतीजा, मैं बारीकियों को अपने स्तर से सीख सका। उनका विश्वास और जज्बा ही मुझे हर पल आगे बढऩे को प्रेरित करता है। मुझे याद है बचपन में जब मैं उनसे कराते सिखता था तो वे तब तक नहीं रुकते थे जब तक कोई किक मेरे अभ्यास में न आ जाए। कराते तकनीक के साथ चीजों को इतनी बार रिपीट करवाते थे जब तक वह चीज हाथ पैर में न जाए। मुझे फ ाइट के समय कुछ सोचना ही नहीं पड़ता था और स्कोर अपने आप बन जाते। उन्होंने मुझे सिखाया कि असंभव कुछ भी नहीं। लगे रहो और बस लगे रहो। प्रैक्टिस मेकस मैन परफेक्ट अर्थात अभ्यास ही व्यक्ति को पूर्ण बनाता है। इसी का नतीजा है कि मैं शुरुआत में एक सामान्य खिलाड़ी था और सामान्य से खिलाड़ी को अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनाने का श्रेय सिर्फ मेरे गुरु को जाता है।
सत्यम केशरवानी: मेरे अंदर छिपी खूबी को गुरु ने खोजा
सीए सत्यम केशरवानी का कहना है कि उनके जीवन में गुरु नितिन धरेश्वर का अत्यधिक प्रभाव रहा। वे अकाउंट के पहले शिक्षक रहे हैं। उनका मुझसे विशेष स्नेह रहा है। उनकी हर किसी में छिपी हुई ख़ूबियां देखने की आदत के कारण मैं उनका विशेष सम्मान करता हंू। उनकी इसी आदत के कारण उन्होंने मेरे अंदर वह ख़ूबियां देखी जो मुझे भी नई पता थीं। उन ख़ूबियों को निखारने में मेरी मदद की। मुझे एक बड़े भाई की तरह डांट और संभाल कर अकाउंट की मेरे जीवन में ऐसी नींव रखी कि मेरी रुचि पहले इस विषय और आगे चलकर इस पेशे से जुड़ गई। अगर मैं चार्टर्ड अकाउंटेंट बन सका हूं, तो उसमें मेरे गुरु का ही विशेष योगदान है।
सीए सत्यम केशरवानी का कहना है कि उनके जीवन में गुरु नितिन धरेश्वर का अत्यधिक प्रभाव रहा। वे अकाउंट के पहले शिक्षक रहे हैं। उनका मुझसे विशेष स्नेह रहा है। उनकी हर किसी में छिपी हुई ख़ूबियां देखने की आदत के कारण मैं उनका विशेष सम्मान करता हंू। उनकी इसी आदत के कारण उन्होंने मेरे अंदर वह ख़ूबियां देखी जो मुझे भी नई पता थीं। उन ख़ूबियों को निखारने में मेरी मदद की। मुझे एक बड़े भाई की तरह डांट और संभाल कर अकाउंट की मेरे जीवन में ऐसी नींव रखी कि मेरी रुचि पहले इस विषय और आगे चलकर इस पेशे से जुड़ गई। अगर मैं चार्टर्ड अकाउंटेंट बन सका हूं, तो उसमें मेरे गुरु का ही विशेष योगदान है।