उन्होंने कहा कि इस्लाम इस चीज को जरूरी करार नहीं देता कि आप इसी उम्र में शादी करें। यह सिर्फ इस बात को स्पष्ट करता है कि बालिग और नाबालिग होने का जो मयार है इस उम्र में तय होना शुरू हो जाता है। उन्होंने कहा कि जहां तक बात सुप्रीम कोर्ट के फैसले की है तो सुप्रीम कोर्ट हिन्दुस्तान की एक अदलिया है। फैसला मानना भी हमारे लिए जरूरी है इसलिए इस तरीके के काम किए जाएं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ऊपर भी अमल हो जाये और इस्लामी नुक्ता ए नजर से भी उनका कोई फैसला न टकराये।
जाहिर सी बात है कि आम तौर पर इस उम्र में शादी नहीं हो पाती। क्योंकि इस उम्र में मुकम्मल तौर पर अकली तौर पर आैर जहनी तौर पर जिस्मानी तौर पर अगर जो बालिग हो गए हैं वो तैयार नहीं हो पाते और फिर बहुत सारी नावनुक्फे की जिम्मेदारी है। जैसे शौहर का बीवी का खर्च उठाना है, इसके अलावा भी बहुत सारी बातें हैं जिसकी बिना पर आम तौर पर इस उम्र में शादी नहीं की जा सकती। हमें कानून का भी अहतराम और पालन करना चाहिए और जरूरी है ये हिन्दुस्तान में रहते हुए। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि एक धार्मिक होने के एतबार से हमें जरूरी है कि पहले हम अपने धर्म का पालन करें।
साथ ही उन्होंने कहा कि हम अपने धर्म का पालन इस तरह करें, हिंदुस्तान का जो कानून है वो उससे न टकराये। वहीं हमें हिंदुस्तान का कानून खुद इस चीज की इजाजत देता है कि हम अपने धर्म में रहते हुए अपनी मजहबी चीजों की रक्षा करें। साथ ही उसमें रहते हुए हम अपने मजाहिब के उपर हमारी किताबों के जरिये और जो हमारे रसूलों, ग्रन्थों के जरिए हमें जानकारी पहुंची है। उसके एतबार से हम अमल करें और हिन्दूस्तान का कानून हमें खुद इस बात की इजाजत देता है।