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सत्य की सुगंध स्वयं ही फैल जाया करती है: पूर्णमति माता

locationसागरPublished: Apr 25, 2019 01:28:22 am

Submitted by:

vishnu soni

आत्मबोध शिविर

The fragrance of truth itself spreads  

सत्य की सुगंध स्वयं ही फैल जाया करती है: पूर्णमति माता

बंडा. गुरू मंगलधाम में आयोजित आत्मबोध शिविर को संबोधित करते हुए ज्येष्ट आर्यिका पूर्णमति माता ने कहा कि पुद्गल का गुण है गंध। यह घ्राण का विषय है। नाक से गंध लेते हैं, किन्तु रसना से गंध को खाते नहीं। यदि खाते भी हैं तो पुद्गल को। जिस पुद्गल में स्पर्श, रस, गंध, वर्णादि गुण भरे हैं, गंध का भोग या उपभोग बंध का कारण है, जिससे किंचित भी आत्मिक सुख नहीं मिलता, किन्तु दुर्गंध से बचते है और सुगंध के लिए नाक फूलाकर गंध लेते हैं। काष विभाव भावों की दुर्गंधी से बचने के लिए स्वभाव की गंध पा लेते, पर यह सच है कि आत्म स्वभाव गंध से परे है। यहां स्वभाव की गंध से तात्पर्य है। स्वभाव की अनुभूति हो जाती तो सौगंध खाने की जरूरत ही क्यों पड़ती। यदि तू सच है तो सौगंध की आवश्यकता ही नहीं, क्योंकि वैसे ही सत्य सुगंध से भरा है, सुवासित है। जैसे- फूलों की खुशबू को पवन स्वयं उड़ाकर बिखराता है। फूल को अपनी खुशबू वितरित नहीं करनी पड़ती। वैसे ही सत्य की सुगंध स्वयं फैल जाती है।
आर्यिकाश्री ने कहा कि सुगंध शब्द से सौगंध बना हैै। सौगंध खाने का मतलब कहीं न कहीं तुम असत्य हो अन्यथा सौगंध के वचनों से सफाई देने की क्या जरूरत थी। वैसे भी शब्द कभी भी पूर्ण सत्य को कह नहीं पाते। अत: सच्चे साधक सत्य वचन से भी परे होकर निजात्मा की अनंत गहराई में डूबकर उत्तम सत्य धर्म की अनुभूति करते हैं। हे आत्मन। परद्रव्य जो पुदगल है। उसका गुण यह गंध है, पर गुण तुम्हारे किस काम के। यदि किसी के खाते में करोड़ों रूपये जमा हैं तो वह तुम्हारे किस काम के। तुम तो निराहार स्वरूपी हो, फिर सौगंध खाना तो दूर गंध भी नहीं खा सकते, क्योंकि पूरे पुद्गल में से अकेले गंध गुण को अलग नहीं किया जा सकता। गुण निकालने पर पदार्थ रह ही नहीं सकता, क्योंकि पदार्थ गुण से अव्यतिरिक्त है। वैसे भी अन्य द्रव्य के गुणों पर दृृष्टि रखना व्यभिचार है।
आर्यिकाश्री ने कहा कि अतिचार, अनाचार, व्यभिचार और दुराचार से दूर हो जाओ और समझो कि गंध जब खाने में आती ही नही ंतो फिर क्यों लपकते हो। यह पुरानी आदत है तुम्हारी, कि तुम्हें अपनी श्रेष्ठ वस्तु भी भाती नहीं और पर की जघन्य वस्तु ही अच्छी लगती। जो पाता है वह भाता नहीं और जो भाता है वह पाता नहीं। इसलिए जीवन में सुख साता नहीं। परद्रव्य की ओर जाओगे तो पामरता पाओगे परम पदार्थ(परमात्मा) की ओर जाओगे तो पावनता पाओगे और स्व की ओर आओगे तो अमरता पाओगे। अत: हे प्रिय आत्मन सौगंध मत खाओ, खाना ही है तो ज्ञानामृत का भोजन करो। तत्वज्ञान का जल पीओ और अजर अमर हो जाओ। यही बात तो गुरूवर विद्यासागर महाराज बताते हैं। शिविर का संचालन ब्रम्हचारी नीलेश पटारी एवं सहयोग अशोक शाकाहार ने किया।
कलश स्थापना कल, निकलेगी शोभायात्रा
बंडा. ज्येष्ट आर्यिका पूर्णमति माता, शुभ्रमति माता, साधुमति माता, विषदमति माता, विपुलमति माता, मधुरमति माता, केवल्यमति माता, सतर्कमति माता एवं उनके संघस्थ माताजी की ही तरह कठोर आराधना एवं तपस्चर्या में रत ब्रम्हचारिणी ऋतु दीदी, योगिता दीदी, ज्योति दीदी, बिन्दु दीदी, पिंकी दीदी, सारिका दीदी, भारती दीदी की ग्रीष्म कालीन वाचना हेतु मंगल कलश की स्थापना 26 अप्रैल शुक्रवार को गुरू मंगलधाम के परिसर में की जायेगी। अशोक शाकाहार ने बताया कि ग्रीष्म कालीन वाचना के पूर्व मंगल कलश की शोभायात्रा पाश्र्वनाथ जैन बड़े मंदिर से प्रात: 6 बजे प्रारंभ होगी। जो मुख्य मार्ग से हाती हुई गुरू मंगलधाम में पहुंचेगी। अभिषेक, शांतिधारा एवं आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की संगीतमय महापूजन का आयोजन किया जायेगा। मंगलकलश स्थापना करने का परम सौभाग्य दानदातारों को प्राप्त होगा। संपूर्ण आर्यिका संघ को श्रीफल अर्पित कर समस्त नगरवासी आशीर्वाद लेगें। आचार्यश्री के संयम स्वर्ण महामहोत्सव पर निर्मित कीर्ति स्तम्भ का जीर्णोद्धार का कार्य भी डॉ. फूलचंद जैन, मुन्नालाल खटोरा आदि उपस्थित थे।

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